आज बिहार में लोग ऑक्सीजन के अभाव में मर रहे हैं। इसका जिम्मेदार कौन..? 3 महीने के समय में अगर यह व्यवस्था कर ली गई होती तो शायद ऐसी स्थिति से आसानी से निपटा जा सकता था लेकिन सरकार की नज़र में लोगों की जान की कोई कीमत नहीं है।
मैं बिहार के समस्तीपुर ज़िले से हूं और यहां की स्थिति बहुत ही भयावह होती जा रही है। ज़िले के विभिन्न हिस्सों मे पिछले दो दिनों में चार-पांच मौतें देखने को मिली हैं। प्रदेश के कई हिस्सों से भी समाचार चैनलों के माध्यम से जो खबरें मिल रही हैं, वे निश्चित रूप से डरावनी और झकझोरने वाली है।
ये मौतें हमारे बिहार के मेडिकल क्षेत्र के इंफ्रास्ट्रक्चर में कमी के कारण हो रही हैं। बताया जा रहा है कि ये मौतें ऑक्सीजन की कमी और अव्यवस्था के चलते हो रही हैं।
सरकार बिल्कुल चुनावी मूड में आ गई है। जान बूझकर जनता को मौत के मुंह में धकेला जा रहा है। जनता को सबसे बड़ा सुरक्षा देने वाली मेडिकल सिस्टम का इतना बुरा हाल है कि वर्णन नहीं किया जा सकता है। लोग तड़प-तड़पकर मरने को विवश हैं और सरकार जश्न मना रही है कि हमने विकास किया है।
अरे साहब! यह कौन सा विकास है जो आपके प्रदेश की जनता को नहीं बचा पा रही है? 15 सालों में अस्पतालों को व्यवस्थित तक कर पाना आपसे संभव नहीं हो सका।
जनता के मन में असुरक्षा की भावना है। लानत है आपके विकास मॉडल पर! ना स्वास्थ्य सिस्टम, ना शिक्षा, और नाही रोजगार यह कैसा है बिहार का विकास मॉडल। जहां लोग अपनों को अपने सामने तड़पते हुए मरते देख रहा हो।
हमने मार्च में एक मॉडल दिया था जिसके तहत कोरोना के मद्देनज़र सदर अस्पताल के अंदर ज़िले के विधायक एवं सांसद निधि से फंड जारी कर कम-से-कम 50-60 बेड वाला व्यवस्थित ICU यूनिट का निर्माण किया जाए। माननीय विधायक एवं सांसद निधि से फंड भी प्राप्त हुए लेकिन पता नहीं फंड का पैसा कहां चला गया।
मैं बिहार का स्थाई निवासी हूं मगर मुझे इस व्यवस्था पर भरोसा नहीं है। बिहार की लचर व्यवस्था का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि जब चमकी बुखार हुआ था, तब बदइंतज़ामी सर चढ़कर बोल रही थी।
स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे के ज़िले में अस्पताल की स्थिति बद से बदतर है। मीडिया के माध्यम से कुछ दिन पहले एक खबर मिली थी कि उनके घर से कुछ दूर एक कोरोना मरीज़ ने सड़क पर चलते-चलते दम तोड़ा दिया।
व्यवस्था के नाम पर बिहार के अस्पतालों में सिर्फ नींबू पानी पिलाया जा रहा है। ना खाने की व्यवस्था और ना रहने की व्यवस्था। मरीज़ की मौत होने के बाद भी उनके शव को जीवित मरीज़ों के साथ रखा जा रहा है। स्वास्थ्य व्यवस्था के नाम पर सिर्फ कागज़ी खानापूर्ति चल रही है।