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काश महामारी में बिहार सरकार बच्चों तक पर्याप्त राशन पहुंचा पाती!

कोविड-19 के संक्रमण को रोकने के लिए जो देशव्यापी लॉकडाउन किया गया, उसका काफी बुरा असर समाज के अलग-अलग तबकों पर देखा गया है। लाखों की तादाद में लोग बेरोज़गार हो गए। कईयों की आमदनी घट गई। गरीब तबके के लोगों को आज दाना-पानी के लिए तरसना पड़ रहा है।

बिहार से गाँव कनेक्शन की रिपोर्ट है कि बच्चों को मध्यान भोजन नहीं मिल रहा है, जिसके चलते हालात गंभीर हैं। कई बच्चे ऐसे भी हैं, जिनका दिनभर का खाना मिड डे मील से ही पूरा होता हैं।

बिहार में बच्चों की हालत खराब

देश की तुलना में बिहार में बच्चों की पोषण की स्थिति खराब है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस)-4 (2015-16) के अनुसार, यहां 5 साल से कम उम्र के करीब 48.3 फीसदी बच्चे शरीरिक रूप से कुपोषित हैं। इसमें 43 फीसदी से अधिक उम्र के अनुसार कम वजन के हैं। जबकि 20.8 फीसदी का वजन उनकी लंबाई की तुलना में कम है।

शिशु मृत्यु दर 48 है। 5 साल से कम उम्र के 58 बच्चे दम तोड़ देते हैं। ऐसी स्थिति में मिड डे मील काफी बड़ी भूमिका निभा सकता है। अगर सब बच्चों को पौष्टिक मध्याह्न भोजन मिलता है, तो उनकी शारीरिक स्थिति में काफी अच्छा बदलाव होगा।

मध्याह्न भोजन योजना पहले से ही विवादों में रही है

बिहार हो या उत्तर प्रदेश, मध्यान्ह भोजन योजना को लेकर कई खबरें हैं जो योजना की सफलता एवं गुणवत्ता पर सवालिया निशान खड़ी करती हैं। इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर ज़िले में पत्रकार पवन जायसवाल की स्टोरी को याद किया जाना चाहिए, जिन्होंने मध्यान भोजन योजना पर काफी अच्छी स्टोरी कि थी लेकिन प्रशासन द्वारा उन पर मुकदमा चलाया गया, जो कि गलत था। बाद में उन्हें इस संदर्भ में क्लीन चिट दी गई।

स्कूली बच्चों के मध्यान भोजन से अलग बिहार सरकार ने राशन कार्ड धारकों को 5 किलो चावल और दाल मुफ्त में देने का ऐलान मार्च में किया था, जिसकी शुरुआत अप्रैल में होनी थी। कारवान द्वारा इस पर विस्तृत रिपोर्ट की गई है, जिससे पता चलता है कि राज्य में राशन की वितरण की व्यवस्था ठीक नहीं है।

लोगों तक मुफ्त में राशन पहुंचा ही नहीं है। कुछ लोगों को इसके लिए थोड़े बहुत पैसे देने पड़े। नियम के मुताबिक राशन नहीं मिला। या फिर जिन लोगों को मुफ्त में राशन मिला उनकी संख्या बहुत कम हैं।

बिहार में हर साल चमकी बुखार की चपेट में सैकड़ों बच्चे आते हैं। शरीर में शर्करा का प्रमाण काफी निचले स्तर पर चला जाता है, जिससे कई और समस्याएं उत्पन्न होती हैं। ऐसी गंभीर स्थिति में उस बच्चे की जान बचाना एक मुश्किल काम होता है। दरअसल, चमकी बुखार कुपोषण के कारण होता है और कुपोषण गरीबी के कारण होता है।

बिहार और उत्तर प्रदेश को अन्य राज्यों से सीखना पड़ेगा

जहां तक मध्याह्न भोजन की बात है बिहार, उत्तर प्रदेश और अन्य हिंदी प्रदेश के राज्यों को महाराष्ट्र और दक्षिण भारत की राज्यों की व्यवस्था से सीखने की ज़रूरत है। ऐसे तो पूरे देश में शिक्षा एवं आरोग्य के क्षेत्र में सरकार द्वारा काफी कम पैसा खर्च किया जाता है।

उत्तर भारतीय राज्यों की स्थिति इस संदर्भ में और भी खराब हैं। क्वारंटाइन सेंटर की जो तस्वीरें सामने आ रही हैं, वे इसी तरफ इशारा करती हैं। अस्पतालों की स्थिति भी इतनी अच्छी नहीं है कि वहां से कोई उम्मीद दिखे।

किसी धर्म विशेष का द्वेष, उग्र राष्ट्रवाद, देशप्रेम या फिर किसी का देशद्रोही होना या ना होना हमारे और आपके मुद्दे नहीं हैं। विकास, रोज़गार, शिक्षा, आरोग्य और सामाजिक समता आदी बातों पर बात करें।

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