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क्या समझौता मॉडल के तहत हुआ है मध्य प्रदेश में मंत्रिमंडल का विस्तार?

मध्यप्रदेश मंत्रिमंडल का बहुप्रतीक्षित विस्तार हो गया और इसमें भाजपा और भाजपा में विलीन हुए कांग्रेस के पूर्व विधायक अपने-अपने तरीके से कुर्सियां पा गए। मुख्यमंत्री होते हुए भी शिवराज सिंह अपनी पसंद के लोगों को मंत्री नहीं बना सके जबकि सौ दिन पहले भाजपा में शामिल हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपेक्षा से अधिक समर्थक मंत्रिमंडल में शामिल करा लिए।

क्या उपचुनावों को ध्यान में रखकर हुआ है मंत्रिमंडल का विस्तार?

मेरे हिसाब से यह मंत्रिमंडल समझौता मॉडल का मंत्रिमंडल है अर्थात् अब जिसे अपनी कुर्सी बचना है वह विधानसभा के उपचुनावों में अपने हिसाब से नतीजे लाकर दे।

कांग्रेस की कमलनाथ सरकार में ज्योतिरादित्य सिंधिया के कुल छह मंत्री थे लेकिन भाजपा की शिवराज सरकार में उनके एक दर्जन से अधिक समर्थक मंत्री हैं। इस लिहाज से आप इसे महाराज की सरकार भी कह सकते हैं।

यह ज्योतिरादित्य सिंधिया का ही कमाल है कि उन्होंने अपने अनुभवी समर्थकों के साथ नौसिखिए समर्थकों को भी मंत्री बंनाने में कामयाबी हासिल कर ली। उनको ग्वालियर-चंबल में भाजपा के क्षत्रप माने जाने वाले नरेंद्र सिंह तोमर भी उन्हें नहीं रोक पाए जिनकी ताकत निश्चित रूप से सिंधिया के मजबूत होने से कमज़ोर होनी तय है।

मध्य प्रदेश का नया मंत्रिमंडल, तस्वीर साभार: सोशल मीडिया

सीनियर नेताओं को मंत्री पद ना मिलने से बढ़ सकता है असंतोष

इसके अलावा जो भारतीय जनता पार्टी के सीनियर विधायक हैं उन्हें मंत्री पद ना मिलना चाहे वे इंदौर से हों या मालवा से या फिर बुंदेलखंड से, यह एक नया असन्तोष उतपन्न करेगा। भारतीय जनता पार्टी को यह याद रखना चाहिए कि सिंधिया उनके साथ इसी असन्तोष की वजह से हैं।

नए मंत्री मंडल में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के कितने समर्थक हैं, यह देखें तो मुश्किल से 4 या 5 ही चेहरे ऐसे दिखाई देंगे। इसके अलावा शेष सभी राजनीतिक विवशता की वजह से ही मंत्री बनाए गए हैं।

ऐसे चेहरों को मजबूरी में मंत्री बनाया गया है जो अपने साथ विधायक लेकर कांग्रेस की सरकार बिगाड़ने का सामर्थ्य रखते हैं। इसके अलावा जो कमज़ोर लगे उन्हें छोड़ दिया गया, मगर किसी को कम नहीं आंकना चाहिए। भाजपा को ग्वालियर-चंबल संभाग से 16 सीटों पर उपचुनाव भी लड़ना है।

मंत्रियो पर होगा उपचुनाव जिताने का दारोमदार

मालवा की कोई चार-पांच सीटें ही हैं, इसलिए पिछले कमलनाथ मंत्रिमंडल में जहां भिंड, मुरैना, शिवपुरी और अशोकनगर का कोई प्रतिनिधित्व नहीं था, वहीं अब इन जिलों में कम से कम दो मंत्री हैं।

इन मंत्रियों पर खुद जीतने के अलावा आस-पड़ोस की सीटें जिताने की ज़िम्मेदारी भी होगी। सिंधिया को इन नए मंत्रियों की मौजूदगी से परोक्ष लाभ यह होगा कि वे अब मुख्यमंत्री की तरह ही चुनावी घोषणाएं कर सकेंगे।

शिवराज सिंह मंत्रिमंडल में दो उपमुख्यमंत्री बनाए जाने की अटकलें निराधार साबित हुईं, क्योंकि भाजपा हाईकमान ने इसे स्वीकार नहीं किया। समझा जाता है कि अब विधानसभा उपचुनावों के नतीजे आने के बाद मौजूदा मंत्रिमंडल, मुख्यमंत्री और ज्योतिरादित्य सिंधिया के भविष्य को नए सिरे से मूल्यांकन के लिए कसौटी पर कसा जाएगा।

सिंधिया यदि अपने आंचल की सोलह में से सोलह सीटें ले आए तो उन्हें उत्तीर्ण माना जाएगा। शेष सीटों को जीताने का ज़िम्मा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के ऊपर रहेगा, हालांकि यह सीटें भी सिंधिया के समर्थकों की ही हैं।

भाजपा में भी पनप सकता है अंदरूनी असंतोष

भाजपा के सामने अब पार्टी के अंदरूनी असंतोष को समाप्त करना बड़ी चुनोती होगी। इसके अलावा जिन सीटों पर कांग्रेस पिछले चुनाव में जीत कर आई थी उनमे से लगभग70% सभी सीट पर जीत की वजह भारतीय जनता पार्टी के बागी नेता ही थे अब क्या वो पार्टी के साथ हैं? यह तो समय ही बताएगा।

इसके अतिरिक्त शिवराज सिंह चौहान जी का यह कथन कि 12th के बच्चों को जनरल प्रमोशन देने से योग्य व्यक्ति हतोत्साहित होते हैं। यह राजनीति में लागू नहीं होता शायद समय-समय पर राजनीति यह सिद्ध करती है कि राजनीति में तिकड़म और दलाली प्रथा बजाय ईमानदारी के ज़्यादा सफल है।

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