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राम का नाम लेकर कैसी देशभक्ति दिखाना चाहते हैं नेपाल के प्रधानमंत्री?

lord ram dispute in nepal

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हाल के दिनों में भारत-नेपाल संबंध पूर्व की तरह समान्य नहीं रहे हैं। कभी नेपाली नागरिकता, तो कभी सीमा-विवाद के मसले या फिर भारतीय मीडिया का नेपाल में प्रतिबंधित होना इसकी बानगी पेश करते हैं। हलिया नेपाली प्रधानमंत्री की भूमिका दोनों देशों के संबंधों में खटास पैदा कर रही है।

हाल ही में नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने सोमवार को विवादित बयान देते हुए कहा, “भगवान राम का जन्म नेपाल में हुआ था।” इस बयान को नेपाल के प्रधानमंत्री का व्यक्तिगत बयान बताकर पल्ला झाड़ने की कोशिश हो रही है। असल में नेपाली प्रधानमंत्री वही कर रहे हैं, जो भारत हाल के सालों में करता आ रहा है।

राष्ट्रवाद एक देश की बपौती है क्या?

वैसे भी ‘राष्ट्रवाद’ किसी एक देश की बपौती नहीं है। हर देश अपने हित में राष्ट्रवाद शब्द का इस्तेमाल करते‌ हैं। राष्ट्रवाद के कंधे पर विकास के लिए की जाने वाली कोशिश हमेशा बलि चढ़ी है। इस राजनीति का इतिहास भी हमारे सामने मौजूद है।

भारत-चीन के बीच हुए सीमा विवाद के दौरान नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली चर्चा के केंद्र में आ गए। नेपाल में ओली प्रधानमंत्री मोदी की नकल कर रहे हैं। खासतौर पर उन्हें मोदी का राष्ट्रवाद बहुत पसंद आया है।

इसी के चलते उन्होंने लिपुलेख, लिम्पियाधुरा और कालापानी इलाके को नेपाल के नक्शे में दिखा दिया। नतीजा, दशकों से भारत-नेपाल के बीच चले आ रहे मधुर रिश्तों में खटास आने लगी। फिर से मधुर रिश्तों की दिशा में कब परवान चढ़ेगा, यह कहना मुश्किल है।

नेपाल‌ का ऐसा रवैया क्यों?

नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली। फोटो साभार- सोशल मीडिया

ओली यहीं नहीं ठहरे, सोमवार को उन्होंने कहा कि भगवान राम का जन्म नेपाल में हुआ था। इस बयान पर ना केवल नेपाल के बड़े हिस्से में उनकी आलोचना हुई, बल्कि भारत में इस बाबत कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की गई। कई लोग नेपाल विदेश नीति के उग्र होने के पीछे भारतीय प्रभाव का कम होना और चीन के प्रति नेपाल के झुकाव को ज़िम्मेदार मानते हैं।

भारत को यह समझना होगा कि नेपाल पहले की तरह का राज्य नहीं है। वह एक लोकतांत्रिक राज्य है और उसकी अपनी लोकतांत्रिक ज़रूरतें हैं।

नेपाल “समृद्ध नेपाल, सुखी नेपाली” के राजनीतिक निहितार्थ के लिए एशिया और दुनिया की बदलती राजनीति में अपनी भूमिका चाहता है। इसलिए वह भारत और चीन के प्रति नेपाल की विदेश नीति के रणनीतिक उदेश्य “समान दूरी” से बदलकर “समान निकटता” बना रहा है।

2017 में नेपाल के प्रधानमंत्री के रूप में चुनकर आए ओली को पता है कि खुद को “देशभक्त नेपाली” कहलवाकर आने वाले चुनाव में अपने राजनीतिक भविष्य को सुरक्षित रखने का यह अच्छा तरीका है। साथ ही वो नेपाल के अधिकांश नागरिकों के हितों को नव परिभाषित करने और लोगों के आत्म-गर्व को बढ़ाने के लिए नेपाल के भौगोलिक लाभ को एक संचयी शक्ति के रूप में इस्तेमाल कर नेपाल को पुर्नर्जीवित करने में असफल होते जा रहे हैं।

नेपाल की ‌संसद में हिंदी पर‌ प्रतिबंध लगेगा

भारत विरोधी रुख अपनाने वाले नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली अब संसद में हिंदी भाषा को प्रतिबंधित करने पर विचार कर रहे हैं। सत्तारुढ़ नेपाल कम्यूनिस्ट पार्टी में मचे घमासान और देश में सरकार के खिलाफ लोगों के गुस्से से ध्यान भटकाने के लिए पीएम ओली ने अब उग्र राष्ट्रवाद की दिशा में आगे बढ़ने का निर्णय लिया है।

नेपाली सरकार के लिए हिंदी भाषा को बैन करना आसान नहीं होगा। नेपाली के हिमालई देश में सबसे ज़्यादा मैथिली, भोजपुरी और हिंदी बोली जाती है। नेपाल के तराई क्षेत्र में रहने वाली ज़्यादातर आबादी भारतीय भाषाओं का ही प्रयोग करती है। ऐसी स्थिति में अगर नेपाल में हिंदी को बैन करने के लिए कानून लाया जाता है तो तराई क्षेत्र में इसका विरोध देखने को मिल सकता है।

जिस तरह नेपाल अपनी शासकीय नीति का दायरा बढ़ा रहा है, उससे ज़ाहिर होता है कि नेपाल अपनी जनता में राष्ट्रवादी उफान पैदा करके अपनी नेपाली अस्मिता को मज़बूत करके हर समस्या का समाधान खोज रहा है। भारत को नेपाल के साथ अपने दोस्ताना सम्बन्ध को नए सिरे से समझने और परिभाषित करने होंगे, क्योंकि नेपाल के साथ भारत के सांस्कृतिक संबंध ज़्यादा मज़बूत हैं मगर वे भावनाओं के आधार पर खड़े हैं।

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