Site icon Youth Ki Awaaz

रेलवे के निजीकरण से जनता को क्या नफा-नुकसान होगा?

woman guard standing on a train

इस समय पूरा विश्व एक वैश्विक महामारी से जूझ रहा है लेकिन भारत महामारी और चरमराती अर्थव्यवस्था, दोनों से जूझ रहा है। इस सबके बीच भारतीय रेलवे ने 109 रूटों पर ट्रेन चलाने के लिए निजी कंपनियों से रिक्वेस्ट फॉर क्वालीफिकेशन (RFQ) मांगे हैं। रेलवे बोर्ड के चेयरमैन का कहना है कि अप्रैल 2023 में निजी रेल सेवाएं शुरू भी हो जाएंगी।

रेलवे का मानना है कि निजी क्षेत्र की कम्पनियों के निवेश से रेलवे अर्थव्यवस्था को मदद पहुंचा सकता है। यह यात्री ट्रेनों में निजी निवेश का पहला प्रयास है और इससे लगभग 30 हज़ार करोड़ रूपये का निवेश होगा। रेलवे ने अपने इस फैसले को सही ठहराने के लिए जो दलीलें दी, वे इस प्रकार हैं-

प्रतीकात्मक तस्वीर, तस्वीर साभार: पिक्साबे

कितना निजी और कितनी सरकारी?

निर्धारित रूटों पर गाड़ियां शुरू करने वाली निजी कंपनी को रेलवे को तय हॉलेज चार्ज, ऊर्जा चार्ज और कुल आय में हिस्सा देना होगा। यह दरें टेंडर के ज़रिए तय की जाएंगी।

पूरे देश के रेलवे नेटवर्क में 109 रूटों पर निजी ट्रेनें दौड़ेंगी। इसके लिए रेलवे प्रशासन अपनी ओर से सिर्फ़ गार्ड और ड्राइवर देगा। बाक़ी सभी क्षेत्र के कार्य निजी कंपनियां खुदकरेंगी।

आखिर यह फैसला अभी क्यों लिया गया?

इसका जवाब साफ तौर पर यह है कि लॉकडाउन से बेहतर मौका इस फैसले के लिए सरकार के पास नहीं था। उन्हें मालूम है कि अभी जनता अपनी परेशानियों और महामारी से जूझ रही है। स्वास्थ्य क्षेत्र और अर्थव्यवस्था की सच्चाई सबके सामने है।

जनता की इस लाचारी का फायदा उठाते हुए सरकार रेलवे के निजीकरण की शुरुआत कर चुकी है। विपक्ष और जनता के पास विरोध करने के लिए सोशल मीडिया के अलावा और कोई रास्ता अभी सम्भव नहीं है।

रेलवे के निजीकरण से जनता को क्या नफा-नुकसान होगा?

पिछ्ले साल तेजस एक्सप्रेस निजी रेल के प्रयोग के तौर पर शुरु की गई थी। तेजस एक्सप्रेस दिल्ली-लखनऊ औए मुम्बई-अहमदाबाद रूट पर चली। इसका किराया इस रूट की राजधानी एक्सप्रेस से भी ज़्यादा है।

अब आप सोचिए अगर एक ट्रेन का यह हाल है, तो जब धीरे-धीरे पूरा रेलवे ही निजी कर दिया जाएगा तब तो शायद भारत की गरीबी की स्थिति देखते हुए ट्रेन की सुविधा ही गरीबों से छीन ली जाएगी। एक यात्री के तौर पर आपके लिए रेलवे में सफर करना महंगा हो जाएगा कुल मिलाकर बात इतनी-सी है।

एक पढ़े लिखे बेरोज़गार नागरिक के तौर पर आपके पास रेलवे की नौकरी पाने के आसार काफी कम हो जाएंगे। रेलवे के वर्तमान कर्मचारी के तौर पर यह आपकी आजीविका पर एक प्रश्न भी चिन्ह है। हालांकि सरकार कह रही है कि रेलवे कर्मचारियों पर इसका असकर नहीं होगा।

इसके अलावा हाल ही में देखा गया कि कैसे देशभर में लॉकडाउन के दौरान मज़दूरों को ट्रेन की सुविधाएं ढंग से नहीं मिल पाई जबकि रेलवे अभी सरकारी हाथों में है। ज़रा सोचिए यदि रेलवे निजी हाथों में चला गया ऐर अपनी मनमानी करने लगा, तो फिर समाज के गरीब तबका कहा जाएगा? जिसके लिए ट्रेन ही एक सुलभ और सस्ती यात्रा का माध्यम है।

ऐसे में, सवाल उठता है कि क्या रेलवे के निजीकरण के बाद क्या रेल सबके लिए इतनी सुलभ और सस्ता रह पाएगा?

पहले से बदहाल रेलवे निजीकरण के बाद क्या सुधर जाएगा?

अभी ज़्यादा दिन नहीं हुए जब सरकार ने ट्रेनों से प्रवासी मज़दूरों को घर पहुंचाने का ज़िम्मा उठाया था। कई ट्रेनें 80-90 घण्टे लेट चल रही थीं  और रास्ता भटक जा रही थीं।

ट्रेनों में गर्मी, भूख, प्यास से मरने वालों की तस्वीरें हम सभी ने देखी, आहें भरी और स्क्रॉल कर दी लेकिन उन मौतों के पीछे एक लचर रेलवे व्यवस्था का ही हाथ है।

निजीकरण के बाद यह व्यवस्था पूंजीपतियों के हाथों में होगी और तब स्थिति और भयावह होगी। सरकार का मक़सद ही देश में कॉर्पोरेट को फायदा पहुंचाना है। इससे कर्मचारियों के शोषण की व्यवस्था और मज़बूत होगी।

लॉकडाउन के दौरान ट्रेन में चढ़ने के लिए लाइन में लगे प्रवासी मज़दूर

लॉकडाउन को तीन महीने से ज़्यादा हो चुका है। अनलॉक वन और टू आने के बाद भी अभी आम ज़िंदगी पटरी पर नहीं लौट पाई है। ऐसे में, लॉकडाउन के पूरी तरह से खुलने का इंतज़ार किए बिना रेलवे ने एक बड़ा फैसला किया है।

इस फैसले का प्रभाव आम जनता के रेल यात्रा, रोज़गार, पलायन जैसे महत्वपूर्ण पक्षों पर पड़ेगा। निजी कंपनियों के असंवेदनशील होने के नायाब नमूने हम दशकों से देख रहे हैं। इसके बाद भी यदि सरकार निजीकरण को धराशायी अर्थव्यवस्था का एक मात्र उपाय मानती है, तो यह सरकार पूंजीवादी है इसमें कोई दो राय नहीं हैं।

Exit mobile version