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“सोनू सूद द्वारा ज़रूरतमंदों की मदद प्रसन्न नहीं, चिंतित करती है”

वैश्विक महामारी कोरोना के बीच कई ऐसी घटनाएं घट रही हैं, जो इतिहास के पन्नों में सदा के लिए दर्ज़ हो जाएगी। इन असाधारण घटनाओं में से एक है दिल्ली-मुंबई से मज़दूरों का पैदल पलायन।

इस दौरान सोनू सूद एक तारणहार की तरह उभरते हैं। बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के मज़दूरों को केवल घर ही नहीं भेजते हैं, बल्कि सम्मान के साथ घर भेजते हैं। सम्मान के साथ लिखना ज़रूरी है, क्योंकि जब ये मज़दूर पैदल चलकर अपने-अपने राज्य पहुंचे तो उन्हें बॉर्डर पर रोक दिया गया।

लॉकडाउन के दौरान ही घर पहुंचे प्रवासी मज़दूरों पर बरेली में कीटनाशक का छिड़काव कर उन्हें सैनिटाइज़ किया गया।

दरअसल, सम्मान उन्हें दिया जाता है जिनके पॉकेट में पैसा हो। जिसके पेट में अन्न ना हो और देह पर वस्त्र ना हो, इन फटेहाल लोगों को कैसा सम्मान? भले ही जिनके देह पर वस्त्र है, वे इन मज़दूरों का बनाया हुआ हो, भले ही जिनके सिर पर छत है, वह छत इन मज़दूरों का बनाया हुआ हो, भले ही जिनके घर में अनाज है, वह अनाज इन मज़दूरों का उगाया हुआ हो लेकिन हैं तो ये फटेहाल तो फटेहाल को कैसा सम्मान!

ऐसी स्थिति में सोनू सूद ने मज़दूरों को बस में बैठाकर खुद से विदा किया और रास्ते के लिए भोजन का भी प्रबंध किया। अत: मुझे सम्मान लिखना आवश्यक जान पड़ा।

लोगों ने सोनू की खूब वाहवाही की और वो शाबाशी के पात्र बनें। यह बिल्कुल धार्मिक सीरियल जैसा था, जहां राक्षसों से त्रस्त मनुष्यों के लिए देवता का आगमन दिखाया जाता है या हिन्दी सिनेमा में जब आस-पास कोई मददगार ना हो तभी हीरो का आगमन होता है।

सोनू सूद की एंट्री बिल्कुल हीरो वाली होती है, जहां लागातार इन्हें ट्विटर पर मदद गुहार की जाती है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि उन्होंने लोगों की भरसक मदद की है।

अब उन्नीस तारीख 2020 को ट्विटर पर सोनू सूद के पास फिर एक निवेदन आया। अंकित राजगढ़िया का निवेदन है, “सर इस महिला के पति की मौत हो गई, मकान मालिक ने निकाल दिया है, एक महीने से सड़क के किनारे पड़ी है। दो बच्चे भूख से बिलख रहे हैं, सरकार से इन्हें उम्मीद नहीं।”

सोनू सूद के आश्वस्त किया इनके सिर पर छत होगी

ट्विट के जवाब में सोनू सूद का आश्वासन। फोटो साभार- सोशल मीडिया

मुझे यह संदेश खुशी नहीं देती है। मैं नहीं कह पाऊंगी वाह! सोनू सूद वाह! मुझे यह ट्वीट चिंतित करती है। लॉकडाउन के दौरान उन्होंने जो मदद की है, वह एक असाधरण स्थिति थी। हालांकि उस दौरान भी वह ज़िम्मेदारी सरकार की थी जिसे निभाने में केंद्र और संबंधित राज्य सरकारें पूर्णत: असफल रही जिससे पूरी व्यवस्था की पोल खुल गई।

उस असाधारण स्थिति में सोनू सूद आगे आए। उनका विनम्र आभार लेकिन वह एक तात्कालिक मदद था।  क्या वह तात्कालिक मदद चिरस्थायी व्यवस्था में तब्दील हो गई है?

क्या नीतीश कुमार और सुशील मोदी कुंभकरण की नींद में हैं? प्रदेश की सरकार की ज़िम्मेदारी कोई और निभा रहा है। लोग अपनी समस्या सोनू सूद को बता रहे हैं। किसी सरकार के लिए इससे बड़ा दुर्भाग्य और शर्मिदंगी कुछ और ना होगा।

किसी सरकार को वैधता वहां की जनता से मिलती है, क्योंकि जनता उन्हें चुनकर अपना प्रतिनिधि बनाती है ताकि वह सरकार जनता की समस्या का समाधान करे। जब वह जनता अपनी समस्या सरकार से ना कहकर किसी और से कहना शुरू करे, तो सरकार की वैधता पर सवाल उठता है। सरकार की असफलता की वजह से मज़दूर बिहारियों के बीच सोनू सूद स्वत: वैधता प्राप्त कर रहे हैं।

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