वैसे तो लोकतंत्र में जनता को ही मालिक कहा गया है, जो अपने मत के अधिकार से नेताओं को चुनती है और लोगों के मतों के आधार पर जनता की सरकार बनती है लेकिन हाल के उदाहरण कुछ अलग ही हैं।
सरकार किसकी और कितनी साल चलती है, उसका निर्णय इस पर निर्भर करता है कि किसके पास कितने बड़े रिज़ॉर्ट और फाइव स्टार होटल हैं और किसके पास कितने बड़े वकील हैं।
विधायकों को रिज़ॉर्ट में रखने का यह तमाशा जैसे राजनीति में ‘न्यू नॉर्मल’ बन गया है, जहां सरकारें विधानसभा में नहीं, बल्कि रिज़ॉर्ट पर चलती हैं। रिज़ॉर्ट में सरकार जनता के लिए नहीं, बल्कि अदालतों के आदेश के आधार पर चलती हैं।
राज्य में बढ़ते कोरोना के मामलों के बीच सत्ता परिवर्तन का यह कैसा खेल?
जब राज्य में तीस हज़ार से ज़्यादा कोरोना के मामले हैं और 550 से ज़्यादा मौतें हो गई हैं, वहां के विधायक मुगल-ए-आज़म और शोले देखने में व्यस्त हैं और होटल्स की चमक-धमक में पार्टी कर रहे हैं। आधे विधायक राज्य से दूर बैठकर अदालत के फैसले का इंतज़ार कर रहे हैं।
राज्य के मुख्यमंत्री, पूर्व उप-मुख्यमंत्री को नाकारा कह रहे हैं और विधायक कह रहे हैं कि हमें भाजपा के नेता, भाजपा में शामिल होने के लिए करोड़ों रुपये का ऑफर दे रहे हैं।
राजनीति में अब दो दल किसी कानून पर बहस नहीं करते हैं, बल्कि 5 साल तक यही बहस चलती रहती है कि किसके विधायक बिकने के लिए तैयार हैं और कौन से विधायक को बचाने के लिए रिज़ॉर्ट में रखकर कैद करने की ज़रूरत है।
जनता द्वारा चुने गए नेताओं के सम्मान पर मज़ाक
जनता द्वारा चुने गए नेताओं के सम्मान पर जिस तरह का मज़ाक किया जा रहा है और जिस तरह से पार्टियां अपने विधायक को अपनी पार्टी में रखने के लिए विश्वास नहीं जीत पा रही हैं, वह वाकई शर्मनाक है।
बागी काँग्रेसी नेता सचिन पायलट ने यह घोषणा करने के बावजूद कि वो भाजपा में शामिल नहीं होंगे, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कड़ी बातचीत की और उन पर भाजपा के साथ घोड़ों के व्यापार में शामिल होने का आरोप लगाया था। गहलोत ने आरोप लगाया कि काँग्रेस सरकार को गिराने की साज़िश के तहत उनके पूर्व डिप्टी सीएम खुद डील कर रहे थे।
जब सत्ता पक्ष ने उनकी अयोग्यता की मांग की थी तो स्पीकर सी.पी. जोशी ने पायलट और 18 अन्य असंतुष्ट काँग्रेस विधायकों को नोटिस जारी किया था। गहलोत ने कहा था,
अच्छी अंग्रेज़ी बोलना, अच्छी टेलीविज़न बाइट देना और सुंदर होना राजनीति में सब कुछ नहीं था। देश, आपकी विचारधारा, नीतियों और प्रतिबद्धता के लिए आपके दिल के अंदर क्या है, सब कुछ माना जाता है। सोने की छुरी पेट में उतारने के लिए नहीं होती है।
अंतिम पड़ाव पर कैसे उलझा मामला?
स्पीकर के नोटिस के खिलाफ राजस्थान उच्च न्यायालय में लंबी बहस के बाद न्यायालय ने अध्यक्ष से कहा कि वो सचिन पायलट सहित 19 बागी काँग्रेस विधायकों को जारी की गई अयोग्यता नोटिस को आगे ना बढ़ाएं और शुक्रवार तक इंतज़ार करें।
राज्य विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी ने सुप्रीम कोर्ट में उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दे दी, जिसमें उन्होंने शुक्रवार को अपने फैसले तक विद्रोहियों के खिलाफ कोई कार्रवाई करने को कहा। विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि वो संवैधानिक संकट की ओर बढ़ रहे हैं।
गौरतलब है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सोमवार को विधानसभा सत्र बुलाने वाले थे लेकिन सचिन पायलट समेत उनके खेमे के 19 विधायकों की सदस्यता स्थगित करने के आदेश के बाद मामला उलझ गया है।
भले ही इसको नेता एक संवैधानिक संकट बता रहे हों लेकिन वकीलों और रिज़ॉर्ट्स के भरोसे चल रही सरकार में ऐसा लगता है कि लोकतंत्र का मज़ाक बनाया जा रहा है और जनता का मत करने का अधिकार खतरे में हैं।
संदर्भ- coronaclusters.in, ज़ी न्यूज़