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“कोरोना से लड़ने में सामाजिक भेदभाव पैदा करता है मानसिक तनाव”

जसलीन भल्ला, जिनकी आवाज़ आज देश में सबसे अधिक सुनी जा रही है। कोरोना वायरस संकट को लेकर जसलीन भल्ला की आवाज़ में रिकार्ड किया गया संदेश आज कॉलर ट्यून के रूप में हर कोई सुन रहा है। जिसमें कहा जा रहा है,

“नमस्कार, कोरोना वायरस या कोविड 19 से आज पूरा देश लड़ रहा है। पर याद रहे, हमें बीमारी से लड़ना है, बीमार से नहीं। उनसे भेदभाव न करें, उनकी देखभाल करें।”

समाज का हर व्यक्ति फोन करते समय पहले इस संदेश को ज़रूर ही सुनता है लेकिन किसी व्यक्ति के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही हैं। वह वही कर रहा है जो उसने अपने सांस्कॄतिक सोशलाइजेशन से सीखा है। परिणाम यह है कि दिल्ली में कोरोना के बढ़ते मामलों को लेकर जब सरकार घरों में सर्वे करने जा रही है, तो लोग अपनी जानकारी देने से कन्नी काट कर रहे हैं।

उनके अंदर यह डर घर कर गया है कि उनके घर में किसी को कोरोना निकला और अगर वे किराए का मकान पर हैं, तो मकान मालिक मकान खाली करा लेंगे या मोहल्ले के लोग उनसे बातचीत करना ही बंद कर देंगे। उनका यह भय इसलिए भी है कि कई जगहों पर यह हो रहा है। दिल्ली ही नहीं देश में कई लोगों के साथ यह व्यवहार किया जा रहा है।

प्रतीकात्मक तस्वीर

कोरोना मरीज़ो के साथ समाजिक भेदभाव करने से बचना होगा

समाज का यही व्यवहार कोरोना पॉजिटिव लोगों के साथ-साथ उनके घर के लोगों के अंदर मेंटल एन्जाइटी पैदा कर रहा है जो कोरोना पॉजिटिव लोगों के स्वस्थ्य होने में बहुत बड़ी समस्या पैदा कर सकता है। बहुत हद तक कर भी रहा होगा।

इसका कोई सामाजिक अध्ययन अभी तक सामने नहीं आया है लेकिन यह परेशानी का सबब तो बना हुआ है। अगर सरकारें इस समस्या पर जल्द ही लगाम नहीं लगा पाती हैं तब वह कोरोना संक्रमण पर पूरा नियंत्रण शायद कभी नहीं कर पाएंगी।

वजह लोग अपनी जानकारी छुपाकर स्वयं को क्वारंटाइन करके ठीक होने का प्रयास तो करेंगे लेकिन उनसे किसी को संक्रमण हुआ है या नहीं इसका पता कभी नहीं चलेगा और संक्रमण फैलता ही रहेगा।

“मोहल्ले के लोगों के व्यवहार में आया है बदलाव”

बीते 15 जून को मेरे भाई साहब ने अपने दफ्तर में अपना कोरोना टेस्ट करवाया, उनको माइनर कोरोना पॉजिटिव पाया गया। सावधानी के कारण घर के बाकी सदस्यों ने भी अपना टेस्ट कराया, मगर सभी का रिपोर्ट निगेटिव रहा है।

भाई साहब ने खुद को क्वारंटाइन कर लिया और हमने सावधानी रखते हुए सरकार को सूचित किया। घर को सेनेटाइज़ करने के साथ-साथ हमने सेनेटाइज़र स्प्रै भी स्टाक कर लिया और तमाम एतियात बरतने शुरू कर दिए। खाने-पीने का समान दूध-सब्जी भी खरीद कर रख लिया ताकि बाहर निकलना ही ना पड़े। हमने सोचा हमारे कारण से संक्रमण ना हो इसलिए सावधानी बरतनी ज़रूरी है।

एमसीडी वालों ने जब घर के बाहर पोस्टर लगा कर चिन्हित किया कि इस घर में एक व्यक्ति कोरोना पॉजिटिव है और घर के लोग क्वारंटाइन है। उसके बाद मोहल्ले के लोगों के व्यवहार में अचानक से बदल गया।

यह स्थिति तब है जब मेरे आस-पड़ोस का समाज पढ़े-लिखे लोगों का समाज है। मोहल्ले के लोगों के इस बदलाव को मैंने और भाई साहब ने इग्नोर किया।

प्रतीकात्मक तस्वीर

सामाजिक भेदभाव पैदा करता है मानसिक तनाव

यह सामाजिक व्यवहार उस रात भाई साहब के नींद में खलल डालने का सबब ज़रूर बन गया, जिसके वजह से हमलोग भी जागे रहे। भाई साहब को समझाया आपको इस बीमारी से सकारात्मक रूख से लड़ना होगा निगेटिव अप्रोच आपको मेंटल एन्जाएटी देगा। भाई साहब से रात के तीन बजे अपने डॉक्टर से बात की उन्होंने भी यही समझाया, उसके बाद भाई साहब सोने गए और इन बातों से अपना ध्यान हटाया।

आज हम लोगों के सेल्फ क्वारंटाइन का 13वां दिन है और भाई साहब पूरी तरह से स्वस्थ है। उनके साथ हम बाकी लोग भी ठीक हैं लेकिन तीन-चार दिन पहले सब्जी खत्म होने पर मोहल्ले के लोगों का नाकारात्मक व्यवहार देखने को मिला वह परेशान करने वाला था। यही नहीं कूड़ा इकठ्ठा करने वाला व्यक्ति भी यह कहते हुए मिला कि मैं अभी आपका कूड़ा नहीं ले सकता आप सरकारी गाड़ी में अपना कूड़ा डालना।

प्रतीकात्मक तस्वीर

सब्जीवालों ने तो डर से मोहल्ले में मेरे घर के सामने ही आना बंद-सा कर दिया है। यह हालत उस दिल्ली के उस मोहल्ले की है जहां मैं अपने भाई साहब के साथ साल 2010 से रहता आ रहा हूं। है ना कमाल की समाजिकता, मैं जानता हूं इसका कुछ नहीं किया जा सकता है। कोरोना से लड़ने में सामाजिक भेदभाव एक तरह का मानसिक तनाव पैदा करता है।

हमलोग अभी एमसीडी के चिपकाएं पोस्टर के अनुसार तीस दिनों तक क्वारंटाइन में है क्योंकि उन्होंने जांच के दो दिन के बाद से अपनी गिनती की है। हमलोग फिट है और तीन दिन के बाद समान्य रूप से अपनी दैनिक गतिविधियों में सक्रिय भी हो जाएंगे।

समाज को दोहरा रवैया अपनाने से बचना होगा

महत्वपूर्ण सवाल यही है कि सरकार इस बीमारी से जीतोड़ तरीके से लड़ रही है और समाज इस बीमारी को घर में छुपाकर रखने को मज़बूर कर रहा है। फिर कोरोना महामारी से हमसे-आपसे मिलकर बना समाज, राज्य और राष्ट्र कैसे लड़ेगा? लोग कैसे भयमुक्त होकर अपनी टेस्टिंग कराने के लिए स्वयं आगे आएंगे और पॉजिटिव होने पर सेल्फ क्वारंटाइन होने को प्रेरित होंगे।

जब तक समाज का प्रत्येक व्यक्ति रोज़ कॉलर ट्यून में, “नमस्कार, कोरोना वायरस या कोविड-19 से आज पूरा देश लड़ रहा है। पर याद रहे, हमें बीमारी से लड़ना है, बीमार से नहीं। उनसे भेदभाव न करें, उनकी देखभाल करें।” सुनकर भी दोहरा व्यवहार करेंगा। तब तक समाज, राज्य या देश कभी भी कोरोना महामारी के संकट से नहीं ऊबर सकेगा।

सरकार को इस दिशा में कठोर कार्यवाही करनी चाहिए, नहीं तो हम इस महामारी से अपने घर में सबसे पहले हार जाएंगे। हम सभी को यह समझना होगा सामाजिकता के अभाव में कोरोना से लड़ना एक बेईमानी है।

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