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एक दिव्यांग शम्स के ‘फास्टेस्ट पैरा स्विमर’ बनने की कहानी

Shams Aalam

Shams Aalam

‘फास्टेस्ट पैरा पलेजीक स्विमर’ इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड, दोस्तों इस रिकॉर्ड की पीछे की कहानी मैं आपको बताता हूं। शशांक कुमार जो कि  स्विमिंग के पटना में कोच हैं, उन्होंने मुझे बताया कि हर साल मिश्रीलाल शीतकालीन तैराकी प्रतियोगिता गंगा नदी में होती है। इस साल 8 दिसंबर 2019 को होने वाली है। जब उनका फोन आया, तो शायद दो या तीन दिसंबर था।

मैंने टिकट चेक किया ट्रेन का लेकिन टिकट नहीं थी। फ्लाइट की टिकट चेक किया तो बहुत महंगी थी लेकिन मैंने ठान लिया था कि मुझे जाना है क्योंकि मैंने यह सोच लिया था और विजुअलाइज कर लिया था कि जब यह रिकॉर्ड बनेगा तो क्या होगा इसका क्या असर होगा, इसीलिए मैंने सोचा कि मुझे किसी भी हालत में इस रिकॉर्ड को अटेंड ज़रूर करना है।

यकीन मानिए दोस्तों जैसा कि आप जानते हैं, मैं यहां गुड़गांव में अपने अब्बा के साथ अकेला रहता हूं। 7 तारीख को शाम को निकल गया। नई दिल्ली स्टेशन पहुंचा और वहां से संपूर्ण क्रांति एक्सप्रेस की जनरल टिकट ले ली, क्योंकि उस ट्रेन में हैंडीकैप डिब्बा नहीं होता है तो जनरल टिकट ही लेना पड़ा और किसी तरीके से एक कंपार्टमेंट में चढ़ गया।

पहले तो लोगों ने मदद की और किसी तरीके से अंदर ले लिया उनको लगा शायद मेरा टिकट कंफर्म है और मेरे साथ में कोई होगा लेकिन थोड़ी देर के बाद ट्रेन खुली तो लोग कहने लगे भाई आप तो दिव्यांग हैं आपको दिव्यांग कोच में जाना चाहिए, हैंडीकैप डब्बे में जाना चाहिए।

अंतरराष्ट्रीय पैरा स्वीमर मों. शम्स आलम

ट्रेन में तो आप जानते हैं‌ अलग-अलग किस्म के लोग मिलते हैं। कुछ लोगों ने कहा अरे रहने दो भाई अब बेचारा चढ़ गया है, तो क्या करेगा सुपरफास्ट ट्रेन है और कुछ घंटे का सफर है। मैं अपने व्हीलचेयर पर ही बैठे हुए था लेकिन दोस्तों मैं आपको यह बता दूं कि 12 से 15 घंटे का सफर व्हील चेयर पर बैठे हुए रहना और ऐसी सिचुएशन में कि ना हीं तो आप वॉशरूम यूज़ कर सकते हैं क्योंकि वॉशरूम एक्सेसिबिलिटी नहीं होता है ट्रेन के अंदर और ना ही किसी को कुछ बोल सकते है, तो वह जो तकलीफ होती है उसको मैं बयां नहीं कर सकता।

इस बीच कहीं ना कहीं मेरे दिमाग में वह चल रहा था जो और कोई नहीं देख पा रहा था। वहां पर जो लोग थे वे सिर्फ यही देख रहे थे कि एक आदमी है जो व्हील चेयर पर बैठा हुआ है, लाचार और मजबूर है लेकिन मैं देख रहा था कि जब मैं कल स्विमिंग कंप्लीट कर लूंगा, तो यह कितने अखबारों में आएगा। कितने सारे लोग पढ़ेंगे कितने सारे लोगों को इससे हौसला मिलेगा। कितने लोग इससे मोटिवेट होंगे।

मेरे दिमाग में यही चल रहा था क्योंकि मैं जानता हूं मेरे जैसे बहुत सारे जो दिव्यांग लोग हैं, हम लोग जिनको अपाहिज समझते हैं कि ये तो कुछ नहीं कर सकते हैं। यह हमारे कुछ भाई-बहन जो दिव्यांग हैं वह भी समझते हैं कि दिव्यांगता के बाद हमारी ज़िंदगी खत्म हो गई है। अब हम अपने घर से निकल नहीं सकते हम अब अपने घर वालों पर बोझ बन गए हैं। अब हम कुछ कर नहीं सकते हमारी ज़िंदगी खत्म हो गई है।

मेरे दोस्तों देखो अगर आपका हौसला बुलंद हो, आपके अंदर अगर ज़ज्बा हो और आप अगर एक ज़िंदादिली रखते हैं, तो आप कुछ भी कर सकते हैं। ट्रेन में अकेले सफर करने से लेकर नदी के अंदर नहाना, स्विमिंग करना और रिकॉर्ड बनाना यह हर एक चीज़ आप कर सकते हैं। इसके अलावा भी वो सारे काम जो आप करना चाहते हैं कर सकते हैं।

दिव्यांगता के बाद हमारी ज़िंदगी खत्म नहीं हो जाती है, बस हमें अपनी ज़िंदगी को जीने का एक नया और अलग अंदाज ढूंढना पड़ता है। जिस दिन आप वह तरीका ढूंढ लेते हैं यकीन मानिए पूरी दुनिया आपकी फैन हो जाती है। पूरी दुनिया के लिए आप प्रेरणास्रोत बन जाते हैं।

खैर, मैं आगे बताता हूं। सफर चल रहा था, कैसे-कैसे करते हुए पटना पहुंचा। इसके बाद किसी तरीके से स्टेशन से प्लेटफार्म नंबर 4 से प्लेटफार्म नंबर एक की तरफ आया। वहां आने के बाद थोड़ा ढूंढा तो एक एक्सेसिबल वॉशरूम मिला 12 से 14 घंटे के सफर के बाद मैं वॉशरूम में गया और फ्रेश हुआ।

मैं वहां सुबह पहुंच गया तकरीबन सुबह के 6 से 7 बज रहे थे। फ्रेश होने के बाद आकर के वेटिंग रूम में गया वहां किसी ने कुछ नहीं बोला। मैंने थोड़ी देर अपना मोबाइल चार्ज किया। पटना के वेटिंग रूम में बहुत अच्छी पेंटिंग बनी हुई थी। उस मधुबनी पेंटिंग को देखकर दिल गार्डन-गार्डन हो गया। ऐसा लगा कि मैं अपने गांव में आया हूं वहां की पेंटिंग बहुत ही बेहतरीन तरीके से बनी हुई थी।

मैंने कुछ देर आराम किया और फिर निकल गया अपने सफर पर बाहर निकला वहां से रिक्शा पकड़ा और कहा कि मुझे जाना है पटना के लॉ कॉलेज घाट, रिक्शावाले ने कहा ₹300 रुपया लगेगा जाने का मैंने कहा बहुत नजदीक है भाई। मैंने चेक किया है मोबाइल के जीपीएस में मुश्किल से 4 या 5 किलोमीटर है उसने कहां नहीं भैया इतना ही पैसा लगेगा।

फिर मैंने उसे छोड़ दिया। थोड़ा-सा और आगे बढ़ा तो और दो-तीन लोग आए फिर मैं वहां पर ओला चेक कर रहा ओला भी नहीं मिली। उस वक्त तो खैर एक भैया ने बोला कि ₹200 लगेंगे लेकिन एक और सवारी भी आएंगी। पहले उनको छोडूंगा फिर आपको छोड़ दूंगा।

ठीक है, भाई मेरे पास वक्त है चलो छोड़ दो इसी तरीके से से मैं पटना के लॉ कॉलेज घाट पहुंचा। वहां पहुंचने के बाद देखा तो किसी का अता-पता नहीं था सिर्फ बैनर लगा हुआ था फिर हमने शशांक जी को फोन किया तो उन्होंने कहा कि आप वही रूकिए हम लोग थोड़ी देर में आ रहे हैं।

अब मेरी कमर जवाब दे रही थी व्हील चेयर पर बैठे-बैठे वहां पर भी लेटने की कोई जगह नहीं थी। सुबह के 9 बज रहे थे और आहिस्ता-आहिस्ता अब कुछ खिलाड़ी आ रहे थे। तभी एक खिलाड़ी जो अपनी कार से आए और वहां मुझे पहचान लिया, उन्होंने कहा सर हम आपको जानते हैं और फिर मेरी बात हुई उनसे, तो उन्होंने देखा कि मैं शायद बहुत देर से बैठा हूं और मेरी कमर दर्द हो रहा है।

उन्होंने कहा कि सर आप मेरी गाड़ी में कुछ देर आराम कर लीजिए। मैंने उनका शुक्रिया कहा और थोड़ी देर के लिए मैं गाड़ी आराम करने लगा। तकरीबन एक डेढ़ घंटे आराम करने के बाद मेरी नींद खुली और तब तक सारे पार्टिसिपेंट आ चुके थे। बिहार स्विमिंग एसोसिएशन के सेक्रेटरी पांडे जी और दूसरे लोग सब आ चुके थे।

शशांक जी ने मेरी पहचान पांडे जी से कराई और बताया कि यह इस प्रतियोगिता में भी भाग लेना चाहते हैं। इस तरीके से स्विमिंग शुरू हुई। हम नाव पर बैठकर नदी के उस पार गए और फिर वहां से स्विमिंग शुरू हुई। सभी लोगों ने शुरू की मुझे नाव पर ले जाने के लिए मेरे दोस्त जाबिर अंसारी और बिहार स्विमिंग एसोसिएशन के वॉलिंटियर्स ने काफी मदद की।

इस तरीके से मैंने स्विमिंग करना स्टार्ट किया। जाबिर फिर अपने मोबाइल से मेरी पूरी वीडियो बनाते रहे स्विमिंग की और आखिरकार 2 किलोमीटर की स्विमिंग मैंने 12 मिनट 23 सेकेंड में पूरी कर ली। मुझे बहुत खुशी हुई और वहां पर मौजूद सभी लोगों ने मुझे बधाई भी दी।  स्विमिंग खत्म हो चुकी थी। लोगों में सर्टिफिकेट और अवार्ड बंट चुका था। हमने मिलकर फोटो खिंचवाई और फिर वहां से चल दिए।

बाहर आकर मैंने और जाबिर ने एक होटल में बैठकर खाना खाया और फिर जाबिर में मुझे रिक्शे में बैठा दिया और मैं पटना स्टेशन के लिए रवाना हो गया। पटना स्टेशन आया शाम को फिर वही ट्रेन और फिर से वही सफर।

मैं पटना स्टेशन पर पहुंचा और यहां पर हैंडीकैप का रिजर्वेशन काउंटर ढूंढ रहा था, दोस्तों इतनी परेशानी हुई वहां पर कि मैं क्या बताऊं। वहां पर जो आराम करने के लिए जगह है उसके बाजू में एक काउंटर है अंदर की तरफ जहां पर जाने के लिए सीढ़ियां हैं। व्हीलचेयर वाला आदमी वहां तक नहीं पहुंच सकता है।

किसी तरीके से मैंने कुछ लोगों से मदद मांगी तो लोगों ने मुझे उठा कर के ऊपर चढ़ाया और फिर बड़ी दिक्कत से वहां से टिकट ली। इसके बाद मैं नीचे आया। पटना में यह दिक्कत देख कर मुझे बहुत अफसोस हुआ कि कैसे दिव्यांग लोग यहां पर पहुंचते होंगे लेकिन कोई बात नहीं दोस्त, कहते हैं ना कि जब आपका हौसला जवान हो तो आप कुछ भी कर सकते हैं। दिक्कत आपके सामने बहुत छोटी हो जाती है।

फिर मैं ट्रेन में बैठ गया और सफर शुरू हो गया, अब मैं काफी संतुष्ट था। मेरे चेहरे पर खुशी थी कि मैं जो चाहता था वह हो गया अब जब पेपर में आएगा और रिकॉर्ड बन जाएगा तो मुझे और भी खुशी होगी। जब लोग पढ़ेंगे तो उनको बहुत अच्छा लगेगा और मैं उम्मीद करता हूं कि यह जो कहानी मैंने आपको बताई आपको प्रेरणादायक लगी होगी। मुझे ज़रूर बताइए कि आपको कैसा लगा?

ट्रेन चल चुकी थी फिर से वैसे ही मैं बैठा हुआ था लेकिन इस बार मैं इंडिया का ट्रैक सूट पहने हुआ था और जब लोगों ने मुझे देखा कि मैं इंडिया के ट्रैक सूट पहने हुए हूं तो मुझसे पूछेन लगे कि क्या आप की टिकट कंफर्म नहीं हुई? आपको जगह नहीं मिली आप तो खिलाड़ी लगते हैं।

इतने में कुछ लोगों ने मुझसे मेरा नाम पूछा और एक लड़के ने अपने मोबाइल पर फौरन ही मेरा नाम गूगल किया। गूगल पर सर्च किया और कहा यह तो आप ही लग रहे हैं यह वीडियो आप ही की है आप ही का नाम मोहम्मद शम्स आलम है?

मैंने कहा, हां मेरा ही नाम है और यह वीडियो मेरी ही है। उसने कहा आप तो बहुत फेमस हैं आपका नाम तो विकिपीडिया पर भी है सुनकर खुशी हुई और फिर ऐसे ही बातचीत करते हुए दिल्ली तक का सफर पूरा हो गया। दिल्ली उतरा वहां से मेट्रो पकड़कर मैं गुड़गांव आ गया और उसके बाद मैं ऑफिस चला गया।

इस तरीके से दोस्तों मेरा यह दो दिन का सफर और यह रिकॉर्ड पूरा हुआ। इस चीज़ को देखकर आज बहुत खुशी होती है अपने आप पर कि अगर मैं उस दिन हार मान गया होता और यह सोचता कि मेरी टिकट कंफर्म नहीं है। मैं कैसे जाऊंगा? तो शायद आज रिकॉर्ड नहीं बनता और आज आप लोग इस कहानी को पढ़ नहीं रहे होते और शायद आज आप मुझे कांग्रेचुलेशन भी नहीं बोल रहे होते।

बहुत-बहुत शुक्रिया दोस्तों इसको पढ़ने का और इस सफर में आप लोगों के साथ का मैं हमेशा शुक्रगुजार रहूंगा। आप लोग बस ऐसे ही अपने दिल से दुआ देते रहिए और एक ही ख्वाहिश है कि जितने भी दिव्यांग दोस्त हैं हमारे उन सब का साथ दीजिए। उनको समझिए कि उनकी क्या तकलीफ है और फिर अगर कोई आगे बढ़ना चाहता है, तो उसकी मदद कीजिए।

हममें भी वह जोश और जज्बा है कि हम अपना अपने माता-पिता का अपने मुल्क का नाम रोशन करें और बिल्कुल हम कर सकते हैं। बहुत-बहुत शुक्रिया मेरे तमाम दिव्यांग भाइयों से मेरी गुज़ारिश है कि आप इसको जरूर पढ़ें। मुझे बहुत खुशी होगी कि यदि आने वाले वक्त में कोई और इस रिकॉर्ड को तोड़ता है और इससे बहुत अच्छा रिकॉर्ड बनाता है।

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