Site icon Youth Ki Awaaz

क्या जनगणना में आने वाले आंकड़े सही होते हैं?

This image is of someone taking census

Census - Sex Ratio

ज़हन में ‘विश्व जनसंख्या दिवस’ आते ही बहुत सारे सवाल उठने शुरू हो जाते हैं। यदि मैं अपनी बात करूं तो पर्यावरण रक्षा के संदर्भ में जो पहला सवाल होता है, वो यह कि बढ़ती आबादी की ज़रूरतों की पूर्ति के लिए खड़ी की जा रही विकास की इमारतें क्या वाकई में एनवायरनमेंट फ्रेंडली हैं?

मसला यह भी है कि जिस सवा सौ करोड़ की आबादी की दुहाई मोदी जी देते हैं, क्या वाकई में साल 2011 की समाजिक, आर्थिक और जाति जनगणना के मुताबिक देश की आबादी उतनी ही है? यदि आप इसे लेकर आस्वस्थ नहीं हैं, तो यकीन मानिए इस देश में सच को झूठ और झूठ को सच केवल आंकड़ों में हेरा फेरी के ज़रिये कर दिया जाता है।

बात साल 2011 की है, जब मैं झारखंड के दुमका ज़िले के विभिन्न प्रखंडों में एक प्रगनक (जनगणना कर्मी और मेरे बॉस) के साथ बतौर टैबलेट पीसी ऑपरेटर, सुदूर ग्रामीण इलाकों में जनगणना के आकंड़ों को एकत्रित करने जाता था। शुरुआत में कुछ रोज़ तो हम प्रगनक के साथ ग्रामीण इलाकों में गए मगर जैसे-जैसे दिन बीतने लगे, हमने गाँव जाना छोड़ दिया।

मेरे प्रगनक ने मुझे कहा कि मैं गाँव में सबको जानता हूं कि किसे घर में कितना “बेटा-पुतहू” है। तुम सुबह मेरे डेरा पर आना और हमलोग घर पर ही बैठकर जनगणना के आंकड़ों को टैबलेट पीसी में अपडेट कर देंगे। उन्होंने बोला कि सरकार को तो सब बेवकूफ बनाते हैं, फिर हम क्यों राजा हरिश्चंद्र बनने जाएं?

यहीं से जनगणना के फर्ज़ी आंकड़ों को एकत्रित करने का काम शुरू हो गया। यह सिर्फ झारखंड के दुमका ज़िले की बात नहीं है। मेरे तमाम साथी अलग-अलग राज्यों में हैं, जिन्होंने इस काम को किया है। उनका कहना है कि हमने भी धूप में ग्रामीण इलाकों में घूमने के डर से घर पर ही बैठकर जनगणना के फर्ज़ी आंकड़ों को टैबलेट पीसी में अपडेट किया है।

मेरे प्रगनक तो मुझे हड़काकर मुझसे जनगणना के गलत आंकड़े अपडेट कराते थे। अब गलत आंकड़े का क्या मतलब है? इसका मतलब यह है कि मान लीजिए किसी के घर में बच्चे का जन्म हुआ है और प्रगनक ने बगैर गाँव गए अपने घर से ही टैबलेट पीसी में घर के सदस्यों का नाम अपडेट कर दिया फिर जिन नए बच्चों का जन्म हुआ है, उनका नाम छूट जाएगा। अब आप सोचिए देशभर में यह आंकड़ा कितना बढ़ जाएगा।

अब इसके पीछे चाहे जो भी वजह हो मगर यह काम तो गलत ही है ना? मैं मानता हूं कि सरकारों ने अब शिक्षकों से जनगणना जैसे कार्य कराने कम कर दिए हैं मगर पहले तो धड़ल्ले से ऐसे काम शिक्षकों से ही कराए जाते थे। ऐसे में मान सकता हूं कि उनके मूल काम को छोड़कर जब उनसे यह सब कराया जाता है, तो वे यह कहकर गलत को भी जस्टिफाई कर देते हैं कि हम शिक्षक हैं और हमारा काम है पढ़ाना। सरकार हमसे जनगणना कराएगी तो शत-प्रतिशत सही काम हम कैसे करेंगे?

बहरहाल, आपको बता दूं कि साल 2011 की सामाजिक, आर्थिक और जाति जनगणना के लिए जिन भी शिक्षकों का चयन किया गया था, उन्हें लगभग 18 हज़ार रुपये इस काम के लिए दिए गए थे। फिर वे कैसे कह सकते हैं कि हमसे शत प्रतिशत सही काम की उम्मीद ना की जाए? घर पर बैठकर किसी के परिवार के सदस्यों का नाम जनगणना की सूचि में शामिल कर देना कितना उचित है?

आप सोचिए यदि हर गाँव से जनगणना सूचि में 10 लोगों का भी नाम छूट जाता है, तो देशभर में यह आंकड़ा किस तरह से गड़बड़ हो जाएगा? फिर लाल किले की प्राचीर से पीएम साहब यह कैसे कह सकते हैं कि सवा सौ करोड़ की आबादी वाले देश में हमने इन योजनाओं के ज़रिये क्रांति लाने का काम किया है।

हद तो तब हो गई जब ‘आयुष्मान भारत योजना’ में किन लोगों का नाम जोड़ा जाए, इस बात को सुनिश्चित करने के लिए भी साल 2011 की सामाजिक, आर्थिक और जाति जनगणना को पैमाना रखा गया । ऐसा इसलिए क्योंकि जनगणना में लोगों से यह भी पूछा जाता था कि आपका मकान कच्चा है या पक्का। तो सरकार ने मान लिया कि जिनका मकान कच्चा है वे गरीब हैं और उन्हें आयुष्मान भारत योजना के तहत स्वास्थ्य लाभ दे दिया।

अंत में यही कहना चाहूंगा कि यह एक जांच का विषय है। राज्यों के मुख्यमंत्रियों को संज्ञान लेते हुए इस बात की तह तक जाने की ज़रूरत है कि साल 2011 की सामाजिक, आर्थिक और जाति जनगणना में ग्रामीण और शहरी इलाकों से एकत्रित किए गए आकड़े क्या वाकई में सही हैं या फर्ज़ी?

Exit mobile version