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क्या वेब सीरीज़ के बहाने गालियों और अश्लील कंटेट को किया जा रहा है ग्लैमराइज़?

“अबे सा*** भो*** तू अपने आपको तीसमार खां समझता है क्या?” या फिर “बहिन*** तुझे क्या पड़ी है उसके मामले में टांग अड़ाने की?” यही नहीं कुछ और “मा***** मैंने एक बार कह दिया कि मुझे तुझसे बात नहीं करनी है, तो मतलब नहीं करनी।” और “खुद को ज़्यादा साणा मत समझ। मैं कोई चू*** नहीं हूं, जो तेरी बातों में आऊं” जैसे फूहड़ डायलॉग वेब सीरीज़ के नाम पर परोसे जा रहे हैं।

“डूड इट्स नॉट अ स्लैंग, इट्स न्यू जेनरेशन टॉकिंग स्टाइल”

बहरहाल आजकल हममें से लगभग हर कोई हर दिन अपने आसपास, चलते-दौड़ते, उठते-बैठते ऐसे शब्दों से दो-चार होता रहता है। यह सब सुनने में बुरा भी लगता है लेकिन हम या आप कह कुछ नहीं कह पाते। अगर कुछ कहें, तो जबाव मिलता है, “डूड इट्स नॉट अ स्लैंग। इट्स न्यू जेनरेशन टॉकिंग स्टाइल।”

यह सुनने में बड़ा अजीब लग सकता है लेकिन आज की दुनिया का यह कड़वा सच है। दरअसल बात-बात पर माँ-बहन की गालियां देने का यह चलन आज की न्यू जेनरेशन की न्यू लैंग्वेज का अहम हिस्सा बनता जा रहा है।

प्रतीकात्मक तस्वीर

गालियों का यह चलन नया नहीं है

सदियों से हमारी बातचीत के दौरान गालियों का उपयोग होता रहा है। एक तरह से कहें, तो यह हमारी भाषा-बोली का एक अभिन्न लेकिन अनचाहा अंग रहा है। एक पुरानी कहावत है कि “कोस-कोस पर बदले पानी और चार कोस पर वाणी” अब इस वाणी के साथ ही गालियों का स्वरूप भी बदलता रहा है।

फर्क सिर्फ इतना है कि पहले के ज़माने में गाली देना असभ्य व्यवहार माना जाता था। सभ्य और संभ्रात घरों में गालियों का प्रयोग वर्जित माना जाता था लेकिन आज का न्यू जेनरेशन गालियां देकर खुद को “कूल” समझता है।

उसके लिए बात-बात में गालियां का उपयोग करना “टशन” बन गया है। इसकी एक बड़ी वजह हैं “वेब सीरीज़ जो युवाओं के बीच तेज़ी से लोकप्रिय हो रही हैं।

लॉकडाउन में बढ़ी है बेव सीरीज़ की डिमांड

लॉकडाउन में मनोरंजन के प्लेटफॉर्म के तौर पर ओटीटी का चलन बढ़ा है। ओटीटी यानी “ओवर द टॉप” का उपयोग बिना किसी केबल या सैटेलाइट चैनल के इंटरनेट के माध्यम से दर्शकों को डायरेक्ट फिल्म या टीवी के कंटेट को उपलब्ध करवाने के संदर्भ में किया जाता है।

पिछले कुछ सालों से भारत में सक्रिय विदेशी ओटीटी प्लेटफॉर्म ऑरिजिनल सीरीज़ लाकर भारतीय हिंदी दर्शकों के बीच पैठ बनाने की कोशिश कर रहे थे।

आम दिनों के मुकाबले लॉकडाउन में लोग वेब सीरीज़ अधिक देख रहे हैं। खास तौर से युवाओं को ये बेव सीरीज़ काफी भा रही हैं। ज़्यादातर बेव सीरीज़ में गालियों, अश्लील दृश्यों, नकारात्मक विचारों की भरमार है।

प्रतीकात्मक तस्वीर

ऐसे में युवा ना केवल इनसे प्रभावित हो रहे हैं, बल्कि आम जिंदगी में भी धड़ल्ले से ऐसी भाषा का प्रयोग कर रहे हैं। यह स्थिति एक बेहतर समाज के निर्माण की दिशा में बेहद घातक साबित हो सकती है।

भारत में ऐसी बेव सीरीज़ की शुरुआत सबसे पहले नेटफ्लिक्स पर अनुराग कश्यप और विक्रमादित्य मोटवानी के निर्देशन में आयी “सेक्रेड गेम्स” से हुई। बोल्ड व अनसेंसर्ड कंटेट, भरपूर गालियों, सनसनीखेज़ तथा उत्तेजक दृश्यों से भरपूर इस बेवसीरीज़ को बड़ी कामयाबी मिली।

उसके बाद तो विभिन्न ओटीटी प्लेटफॉर्म पर जैसे इस तरह की बेवसीरीज़ की बाढ़ आ गई। आज नेटफ्लिक्‍स के अलावा अमेज़ॉन, ज़ी5 आदि पर सैकड़ों ऑनलाइन वेब सीरीज़ों की भरमार है।

वेब सीरीज़ में महिलाएं होती हैं विशेष टार्गेट

इन सभी बेवसीरीज़ की कहानी भले अलग है। सांस्‍कृतिक पृष्‍ठभूमि भी भिन्न है लेकिन एक चीज़ सबमें कॉमन है और वह है “गालियों की भरमार।” उनमें से भी  98% गालियां महिलाओं से जुड़ी होती हैं या किसी की माँ-बहन को गाली दी जाती हैं।

इनमें से लगभग हर सीरीज़ में महिलाओं को बस एक ऑब्जेक्ट की तरह प्रस्तुत किया गया। जिसके तहत पुरुषों को रिझाना और उनकी शारीरिक ज़रूरतों को पूरा करना।

इससे ना सिर्फ महिला हिंसा को बढ़ावा मिलता, बल्कि महिलाओं की सामाजिक स्थिति भी प्रभावित होती है। विभिन्न क्‍लीनिकल रिसर्च बताते हैं कि गाली देने से सहने की शक्ति बढ़ जाती हैं। इंसान अपना गुस्सा ज़ाहिर कर पाता है। भीतर की कुंठा और हताशा को बाहर निकालने का यह एक कारगर मेकैनिज्‍़म है।

ऐसे में सवाल उठता है कि सारा गुस्सा सिर्फ महिलाओं को निशाना बना कर ही क्यों? क्‍या इस समाज में केवल पुरुष ही अपना गुस्‍सा निकालने के हकदार हैं? क्या ऐसा नहीं है कि गालियां देकर हम सामने वाले व्यक्ति के साथ मानसिक व यौनिक हिंसा कर रहे होते हैं। यह गालियां महिला-विरोधी होने के साथ ही मानसिक व यौनिक हिंसा भी कर रही होती हैं। जिसकी प्रतिक्रिया में बहुत सी हिंसक घटनाएं देखी जा सकती हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर

वेब सीरीज़ से क्या उम्मीद थी?

बेव सीरीज़ की शुरुआत में यह उम्मीद थी कि सेंसर और बाज़ार के दबाव से फिल्मकारों की जो रचनात्मकता दबी रह जाती थी, उन्हें वेब सीरीज़ के रूप में एक प्लेटफॉर्म मिलेगा जो बहुत जल्द ही एक भ्रम साबित हुआ। सच तो यह है कि यथार्थ दिखाने की सराहना की जा सकती है लेकिन यथार्थ के नाम पर हम आज सिर्फ अपने दिमाग में कूड़ा ही जमा कर रहे हैं।

गालियां बेशक हमारे समाज की सच्चाई हैं लेकिन जिस तरह से इन वेब सीरीज़ और फिल्मों में दिखाया जा रहा है उस तरह से नहीं। यहां गालियों को महिमामंडित किया जा रहा है, ग्‍लैमराइज़ किया जा रहा है और उनके बहाने जमकर अश्लीलता परोसी जा रही है।

कुछ लोगों की राय है कि वेब सीरीज़ में अश्लीलता दिखाना गलत नहीं है, क्योंकि लोग इसी प्रकार की चीज़ों को पसंद करते हैं। अब ऐसे में सवाल यह उठता है कि रचनात्मकता के नाम पर “कुछ भी” दिखाने की छूट तो नहीं मिलनी चाहिए।

इसकी भी कुछ निश्चित सीमा व शर्तें होनी चाहिए। इसका एक अलग प्लेटफार्म होना चाहिए जिस पर वही लोग हों जो इन सब चीज़ों में रुचि रखते हैं। होना तो यह चाहिए कि इनका प्रचार यूट्यूब से लेकर टीवी आदि पर ना किया जाए। ऐसा करने से बच्चों पर इसका गलत असर पड़ता है।

क्या कहते हैं फिल्म समीक्षक?

प्रसिद्ध फिल्म समीक्षक अजय ब्रह्मात्ज भी कहते हैं,

”ओटीटी प्लेटफॉर्म की सीरीज़ में यकीनन बेवजह गालियां ठूंसी जा रही हैं। संवादों में संबोधन और विशेषण के लिए गालियों का चलन हो गया है। लेखकों और निर्देशकों को दृश्य और किरदार को प्रभावशाली दिखाने के लिए यह आसान तरीका लगता है।”

वह आगे कहते हैं कि वेब सीरीज़ में अभी मुख्यरूप से अपराध, हिंसा और सेक्सपूर्ण कंटेंट देखने और दिखाने का ट्रेंड है। इसलिए उसके चित्रण में निर्देशक पूरी छूट ले रहे हैं। इधर चर्चा में आई कामयाब सीरीज़ों पर नज़र डालें तो ज़ाहिर हो जाएगा कि दर्शक भी यही पसंद कर रहे हैं। वेब सीरीज़ के दर्शकों ने इसे सामान्य मान लिया है लेकिन कोई भी ट्रेंड ज़्यादा समय तक नहीं टिकता। एक समय के बाद दर्शक इस तरह कंटेट से ऊब जायेंगे और कहानियां भी दूसरे विषयों पर शिफ्ट होंगी। फिर लेखन और निर्देशन में बदलाव आयेगा।

ओटीटी पर अच्छे कंटेट की नहीं है कमी?

ऐसा नहीं है कि वेब सीरीज़ पर केवल अश्लील या गालियों से भरपूर सामग्री ही मौजूद हैं। हाल-फिलहाल में नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम, ज़ी-5 तथा हॉटस्टार जैसे ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर कई ऐसी सीरीज़ भी आई हैं। जिन्हें कंटेट और प्रस्तुति के लिहाज़ से बेहतरीन कहा जा सकता है। उनका एक अच्छा-खासा दर्शक वर्ग भी है।

हाल ही में रिलीज़ हुई वेबसीरीज़ पंचायत, आर्या, चमन बहार, पाताल लोक, बुलबुल, हंड्रेड, कोड एम, द फैमिली मैन, लिटिल थिंग्स आदि कुछ ऐसी बेवसीरीज़ हैं जो गालियों या अश्लील कंटेट की वजह से नहीं बल्कि अपने बोल्ड, ऑरिजिनल या हल्के-फुल्के सब्जेक्ट्स और बेहतरीन एक्टिंग की वजह से दर्शकों के बीच चर्चा में रही हैं।

इनके अलावा, ब्रीद, लाखों में एक, द फाइनल कॉल, चॉपस्टिक, राजमा-चावल, ताजमहल, बारिश आदि की गिनती भी बढ़िया और साफ-सुथरी अभिव्यक्ति वाली वेबसीरीज़ की लिस्ट में शामिल की जा सकती हैं।

ज़रूरत है, तो बस बेहतर कंटेट को बढ़ावा देने और इस तरह की बेव सीरीज़ के अनुकूल दर्शक वर्ग को बढ़ाने की। वरना वह दिन दूर नहीं जब हमारे बच्चे घर से बाहर नहीं दोस्तों और सहयोगियों के बीच ही नहीं, घर के भीतर भी गालियों का उपयोग करते नज़र आएंगे।

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