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प्रकृति का महत्व ना समझने का परिणाम तो नहीं है कोरोना वायरस?

wild animals

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संयुक्त राष्ट्र की एक संस्था है यूएन इन्वायरमेंट प्रोग्राम ऐंड इंटरनेशनल लाइवस्टॉक रिसर्च इन्स्टीट्यूट। नाम से ही साफ है कि यह पर्यावरण संबंधी मामलों पर शोध करती है। कोरोना वायरस संक्रमण पर भी शोध करते हुए इस संस्था ने कुछ ऐसे निष्कर्ष निकाले हैं जो मानव जाति और पर्यावरण के संतुलन एवं सामंजस्य पर सवाल खड़े करता है।

ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, कोरोना वायरस जैसे खतरनाक संक्रमण के लिए पर्यावरण को लगातार पहुंचने वाला नुकसान, प्राकृतिक संसाधनों का लगातार दोहन, जलवायु परिवर्तन और जंगली जीवों का उत्पीड़न जैसी वजहें ज़िम्मेदार होती हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर, तस्वीर साभार: पिक्साबे

क्या हैं रिपोर्ट के मुख्य बिन्दु?

विशेषज्ञों का क्या कहना है?

संयुक्त राष्ट्र के वैज्ञानिकों का मानना है कि पिछले कुछ वर्षों में जानवरों और पक्षियों से इंसानों में फैलने वाली बीमारियां लगातार बढ़ी हैं।

स्वाइन फ्लू, बर्ड फ्लू, डेंगू, चिकनगुनिया, इबोला, सार्स आदि बीमारियों का स्रोत किसी-ना-किसी जानवर से ही हैं। विज्ञान की भाषा में ऐसी बीमारियों को ‘ज़ूनोटिक डिज़ीज़’ कहा जाता है। पिछ्ले कुछ शताब्दियों से ‘ज़ूनोटिक डिज़ीज़’ ने इंसानी दुनिया में बहुत तबाही मचाई है।

प्रतीकात्मक तस्वीर, तस्वीर साभार: पिक्साबे

मांस का बढ़ता उत्पादन भी है एक कारण

यूएन इन्वायरमेंट प्रोग्राम की एग्ज़िक्यूटिव डायरेक्टर इंगर एंडर्सन का कहना है कि पिछले 100 वर्षों में इंसान नए वायरसों की वजह से होने वाले कम-से-कम छह तरह के खतरनाक संक्रमण झेल चुका है।

उनका कहना है, “मध्यम और निम्न आय वर्ग वाले देशों में हर साल कम-से-कम 20 लाख लोगों की मौत गिल्टी रोग, चौपायों से होने वाली टीबी और रेबीज़ जैसी ज़ूनोटिक बीमारियों के कारण हो जाती है। इतना ही नहीं, इन बीमारियों से ना जाने कितना आर्थिक नुकसान भी होता है।”

इंगर एंडर्सन ने कहा, “पिछले 50 वर्षों में मांस का उत्पादन 260% बढ़ गया है। कई ऐसे समुदाय हैं जो काफी हद तक पालतू और जंगली जीव-जंतुओं पर निर्भर हैं। हमने खेती बढ़ा दी है और प्राकृतिक संसाधनों का दोहन भी बेतहाशा किए जा रहे हैं। हम जंगली जानवरों के रहने की जगहों को नष्ट कर रहे हैं और उन्हें मार रहे हैं।”

प्रतीकात्मक तस्वीर, तस्वीर साभार: पिक्साबे

इन्सानों के लिए एक चेतावनी है कोरोना वायरस

कोरोना वायरस ने दुनिया के सभी बड़े देशों को और उनकी अर्थव्यवस्थाओं को धराशायी कर दिया है। किसी भी महामारी ने इतिहास में जितनी जानें ली हैं उससे कहीं ज़्यादा लोगों को अपनी करतूतों पर विचार करने को मजबूर किया है।

प्रकृति और उससे प्राप्त संसाधनों को जिस गति से मानव ने दोहन किया है, ऐसी महामारी उसी का नतीजा है। जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग भी इसी रवैये के द्योतक हैं।

कोरोना वायरस ने लोगों को इंसानियत की उस मूल भावना के सामने वापस लाकर खड़ा कर दिया है, जिससे हम भागदौड़ वाली ज़िंदगी के कारण दूर हो चुके थे।

पृथ्वी और उसके संसाधनों का अनैतिक दोहन करते-करते हम इतने आगे निकल चुके थे कि यह समझना भी हमारे लिए मुश्किल हो गया था कि हम अपने ही अंत की तरफ बढ़ रहे हैं लेकिन शायद अब इस महामारी और संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के बाद इंसानों को यह समझ आ पाएगा कि प्रकृति के प्रति गैर-ज़िम्मेदारी और लापरवाही का स्वभाव मनुष्यों का अंत साबित हो सकता है।

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