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आसान भाषा में समझिए किन परिस्थितियों में लागू होता है ‘दल बदल कानून’

राजस्थान में चल रही सियासी उठापठक में सचिन पायलट समेत 19 विधायकों को अयोग्यता का नोटिस दिया गया है। राजस्थान विधानसभा स्पीकर सीपी जोशी के निर्णय के विरोध में सचिन पायलट हाईकोर्ट पहुंच गए।

इन सबके बीच हमारे मन में यह सवाल भी शोर करने लगता है कि किसी भी सरकार पर संकट आने के साथ ही दल-बदल कानून की चर्चा क्यों शुरू हो जाती है? यह क्या है और कब-कब लागू होता है?

राजीव गाँधी सरकार द्वारा 52वां संविधान संशोधन किया गया। इसके माध्यम से संविधान में 10वीं अनुसूची जोड़ी गई और दल-बदल विरोधी कानून बनाया गया।

दल-बदल कानून की ज़रूरत क्यों पड़ी?

1980 के दशक में हरियाणा में अवसरवादी राजनीतिक चरम पर थी। कभी भी किसी भी विधायक के पार्टी बदलने की खबर आ जाती। जनता के मत का जैसे कोई मोल ही नहीं था। हाल ऐसा था कि तत्कालीन राज्यपाल जीडी तापसे को कहना पड़ा कि राज्य में विधायक इस तरह पार्टियां बदल रहे हैं जैसे कोई कपड़े बदलता है।

दल-बदलुओं की बढ़ती संख्या के साथ ही राजनीतिक अस्थिरता भी तेज़ी आ गई। सदन के प्रति लोगों के विश्वास में भी कमी दिखने लगी। ऐसे में इस पर लगाम लगाने के लिए कानून बनाने की मांग उठने लगी। नतीजन, वर्ष 1985 में संविधान में 52वां संशोधन हुआ और दल-बदल कानून बना। इसके तहत दल-बदल के आधार पर पीठासीन अधिकारी विधायकों या सांसदों को अयोग्य ठहरा सकता है।

दल-बदल कानून कब-कब लागू होगा?

अशोक गहलोत और सचिल पायलट। फोटो साभार- सोशल मीडिया
  1. यदि सांसद/विधायक जिस राजनीतिक दल से निर्वाचित हुआ है, उस राजनीतिक दल की सदस्यता स्वयं छोड़ दे।
  2. यदि सांसद/विधायक सदन में पार्टी द्वारा जारी व्हिप के विरुद्ध मतदान कर दे।
  3. यदि निर्दलीय सांसद/विधायक किसी दल की सदस्यता प्राप्त कर ले।
  4. यदि मनोनीत सदस्य मनोनयन के 6 महीने के बाद किसी दल की सदस्यता स्वीकार कर ले।

दल-बदल कानून में कुछ अपवाद भी हैं। इसे ठीक तरह से समझने के लिए इन्हें जानना भी ज़रूरी है।

  1. दल-बदल कानून स्पीकर पर लागू नहीं है, इसलिए स्पीकर का मत पार्टी के निर्देश से संचालित नहीं होगा।
  2. यदि किसी राजनीतिक दल के निर्वाचित 2/3 या उससे अधिक सदस्य किसी दूसरे दल से जुड़ जाएं, ऐसी स्थिति में भी दल-बदल कानून नहीं लागू होगा।
  3. यदि किसी सदस्य को दल द्वारा स्वयं बर्खास्त कर दिया जाए तो वह सांसद/विधायक बना रहेगा।

दल-बदल कानून और न्यायिक पुनरावलोकन

वैसे तो दल-बदल कानून में यह साफतौर पर लिखा गया है कि इस संबंध में स्पीकर का निर्णय ही अंतिम होगा लेकिन उच्चतम न्यायालय ने “किहोतो होलोहान” वाद में नया निर्धारण किया है।

कोर्ट ने कहा कि स्पीकर द्वारा किसी सदस्य को अयोग्य घोषित करना सदन की प्रक्रिया का हिस्सा नहीं है। बल्कि यह एक अर्धन्यायिक मामला है। इसलिए न्यायपालिका इसकी समीक्षा करेगी। इसके बाद से सदस्यों की अयोग्यता का न्यायिक पुनरावलोकन होता है।

क्या है विशेषज्ञों का मत?

विशेषज्ञ मानते हैं कि दल-बदल कानून के कारण संसद को बहुत नुकसान पहुंचा है। सांसद पार्टी लाइन के निर्देशों से इस कदर जकड़ जाते हैं कि उनके विचार तक स्वतंत्र नहीं रह जाते हैं। सांसद अयोग्यता के डर से सदन के समक्ष स्वतंत्र अभिव्यक्ति नहीं कर पाते हैं।

जबकि संविधान के अनुसार, सांसद या विधायक सदन में मुक्त रूप से अपने विचार व्यक्त कर सकते हैं। दल-बदल कानून सरकार में स्थायित्व के लिए लाया गया था लेकिन अपनी खामियों के चलते यह सदन और वहां होने वाली चर्चा को प्रभावित कर रहा है।

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