Site icon Youth Ki Awaaz

ऑनलाइन शिक्षा व्यवस्था में डिसेबल्ड स्टूडेंट्स को नज़रअंदाज़ क्यों किया जा रहा है?

a person working on a laptop, online

Representational image.

कोरोना के कारण जब पूरे देश में लॉकडाउन हुआ तो शिक्षा व्यवस्था की भी हालत खराब हो गई। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि स्टूडेंट्स की पढ़ाई को पूरा कैसे किया जाए? इसको लेकर कई सुझाव आए, जिसमें एक सुझाव ऑनलाइन क्लासेस का भी आया। फिर क्या, देखते-ही-देखते स्टूडेंट्स के जीवन में ऑनलाइन क्लासेस का प्रवेश हो गया।

प्रतीकात्मक तस्वीर, तस्वीर साभार: गेटी इमेजेज

जब सवाल उठे कि कॉलेज परीक्षाएं कैसे लें? तो जवाब में ऑनलाइन परीक्षाओं का भी सुझाव आ गया लेकिन कई स्टूडेंट्स का यह भी मानना है कि उन्हें परीक्षा देने में दिक्कत हो रही है, क्योंकि बहुतों के पास अच्छी इंटरनेट व्यवस्था नहीं है। इस बीच देश के नामी प्राइवेट कॉलेजों और यूनिवर्सिटीज़ ने परीक्षाएं ले लीं और कुछ ने बच्चों को पास भी कर दिया।

स्टूडेंट्स को करना पड़ रहा है तमाम दिक्कतों का सामना

इस बीच किसी ने यह नहीं सोचा कि डिसेबल्ड स्टूडेंट्स यानी डिफरेंटली एबल लोगों का क्या होगा? अब बात आती है देश के कॉलेजों से लेकर विश्वविद्यालयों की, जैसे दिल्ली विश्वविद्यालय यहां के ज़्यादातर स्टूडेंट्स का यह मानना है की वेबसाइट ढंग से नहीं चलती है। ऐसे में स्टूडेंट्स को तमाम तरह की परेशानियां उठानी पड़ती हैं, जिसका अंदाज़ा भी‌ नहीं लगाया जा सकता है।

प्रतीकात्मक तस्वीर, तस्वीर साभार: पिक्साबे

इस मुद्दे पर मैंने भी अपने करीबी दोस्तों से बात की। एक का तो कहना है कि डीयू की वेबसाइट का विज्ञापन पुष्पक विमान जैसा है और गति कछुए की चाल जैसी बहुत धीमी है। यह सुनकर मैं भी हैरान हो गया।

डिसेबल्ड स्टूडेंट्स को क्यों किया जा रहा है नज़रअंदाज़?

हाल ही में डीयू ने ओपन बुक टेस्ट के संबंध में मॉक टेस्ट कराने का निर्णय लिया गया लेकिन वह भी ढंग से सफल नहीं हो पाया। इस दौरान सबसे बड़ी चुनौती की बात यह सामने आई कि जो स्टूडेंट्स देख नहीं सकते या डिसेबल्ड हैं, उनका काम इस सिस्टम से कैसे हो पााएगा? ऐसे में उनका होगा क्या?

ज़्यादातर बच्चे वापस अपने घर भी जा चुके हैं, तो वह वापस कॉलेज जाकर परीक्षा कैसे देंगे? वह भी एक महामारी के दौर में जब देशभर में कोरोना के मामले हद से ज़्यादा हो चुके हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर

कई स्टूडेंट्स के पास इंटरनेट की व्यवस्था नहीं है, तो कईयों के पास नया फोन और लैपटॉप खरीदने का पैसा नहीं हैं। ऐसे में उनका क्या होगा? यह सारे उदाहरण इस बात पर रौशनी डालते हैं कि हमारी शिक्षा का मौलिक अधिकार भी खतरे में है।

इतना ही नहीं बल्कि स्टूडेंट्स को पहले प्रश्न-पत्र पोर्टल से डाउनलोड करना होगा फिर आंसर लिखकर वहीं पर अपलोड करना होगा। इस बीत कई तरह की तकनीकी दिक्कतें भी आ सकती हैं। ऐसे में साइट पर ऐसा भी हो सकता है कि आपकी साइट क्रैश भी हो जाए।

डिसेबल्ड स्टूडेंट्स को पड़ती है स्क्राइब की ज़रूरत

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि एक डिसेबल्ड स्टूडेंट को एक स्क्राइब की ज़रूरत पड़ती है। स्क्राइब यानी जो व्यक्ति डिसेबल्ड स्टूडेंट की परीक्षा देने में मदद करते हैं। उदाहरण के तौर पर अगर किसी व्यक्ति का हाथ टूट गया है और उसे लिखने में कोई परेशानी हो रही हो तो स्क्राइब उसकी परीक्षा लिखने में मदद कर सकता है।

मौजूदा हालात में हमें सोशल डिस्टेंसिंग का भी पालन करना है ऐसे में इतनी सारी चुनौतियां से एक साथ कैसे निपटा जाए? इससे निपटने के लिए कुछ करना ज़रूरी है।

परीक्षा देने में साधारण स्टूडेंट्स को भी कई कठिनाई हो ही रही हैं। कई जगहों पर स्टूडेंट्स को पिछले सेमेस्टर के मार्क्स के आधार पर पास कर दिया गया है। इन सब में कॉलेज प्रशासन की गलती सामने उभर कर आई है। उन्हें भी सोच-समझकर ही सही निर्णय लेना चाहिए था ताकि बच्चों को परीक्षा देने में परेशानी ना आए।

Exit mobile version