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बाघ धीरे-धीरे दुनिया से विलुप्त क्यों होते जा रहे हैं?

29 जुलाई को हर साल पूरा विश्व अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस के रूप में मनाता है। 2010 में रूस के शहर सेंट पीटर्सबर्ग में बाघों की आबादी वाले देशों (भारत, भूटान, नेपाल, रूस, थाईलैंड, इंडोनेशिया, चीन, बांग्लादेश, कंबोडिया, वियतनाम, मलेशिया, लाओ) ने बाघ शिखर सम्मेलन का आयोजन किया।

इस सम्मेलन में गंभीर चर्चा की गई कि बीसवीं सदी की शुरूआत के बाद में जंगली बाघों की संख्या में 95% से अधिक की गिरावट आई है और अगर ऐसा ही चलता रहा तो अगले 5 सालों में एक भी बाघ इस धरती पर नहीं बचेगा। निर्णय लिया गया कि 2022 तक बाघों की संख्या दोगुनी करने का प्रयास सभी देश मिलकर करेंगे

उसी वर्ष से 29 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस के रूप में मनाया जाने लगा ताकि बाघों के संरक्षण के प्रति विश्व में जागरूकता फैले। इस दिन संपूर्ण विश्व में सरकारें, विशेषज्ञ और पर्यावरण प्रेमी आम लोगों तक जागरूकता फैलाने का काम करते हैं।

तस्वीर साभार: सोशल मीडिया

विभिन्न माध्यमों के प्रयोग से चर्चाएं व प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं और अनजान लोगों को इस संबंध में जागरूक करने हेतु फिल्मों, पोस्टर आदि का प्रयोग भी किया जाता है।

बाघ के बारे में कुछ ज़रूरी बातें

बाघ अपनी प्रजाति का सबसे बड़ा पशु है। इसके शरीर का रंग लाल और पीले रंग का मिश्रण होता है लेकिन इसकी पहचान है काले रंग की पट्टियां जो इसके पूरे शरीर पर होती है। आमतौर पर एक वयस्क बाघ 12 फीट लंबा और 300 किलोग्राम वजनी हो सकता है। बाघ का वैज्ञानिक नाम Panthera Tigris है।

बाघ शिकार के लिए सुनने के बजाय मुख्य रूप से दृष्टि और ध्वनि पर भरोसा करते हैं, वे आमतौर पर अकेले शिकार करना पसंद करते हैं। बाघ सामान्यतः दिन में शिकार करते हैं और उसका मुख्य शिकार चीतल, जंगली सूअर और गौर के बच्चे होते हैं। एक मादा बाघ हर 2 साल में दो से चार बच्चों को जन्म देती है लेकिन उनमें से 50% बच्चे विभिन्न कारणों से वयस्क होने से पहले ही मर जाते हैं।

एक वयस्क बाघ करीब 20 वर्ष तक जी सकता है। एक समय बाघों का निवास तिब्बत, श्रीलंका और अंडमान द्वीप छोड़कर संपूर्ण एशिया में था लेकिन अब वे मुख्यतः 13 देशों में पाए जाते हैं जिसकी करीब 70% आबादी भारत में ही है।

धीरे-धीरे विलुप्त हो रहे हैं बाघ

बाघ एक अत्यंत संकटग्रस्त प्राणी है, IUCN के आधार पर इसे विलुप्त प्राय ( endangered) प्रजाति घोषित किया गया है। अब तक ज्ञात बाघों की 9 किस्मों में तीन विलुप्त हो चुके हैं। भारत में रॉयल बंगाल टाइगर ज़्यादातर पूर्वी क्षेत्रों में पाया जाता है। भारत सरकार ने बाघ को राष्ट्रीय पशु का दर्जा दिया है।

वर्तमान में बाघों की संख्या करीब 3900 है जो कि काफी कम है और इसके मुख्य कारण है:

पारिस्थितिकी तंत्र और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है बाघ

बाघ पारिस्थितिकी तंत्र और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। बाघ श्रेष्ठ शिकारी के रूप में पर्यावरण को स्वस्थ रखने में मदद करते हैं। पारिस्थितिकी तंत्र में अगर बाघ ना हो तो घास खाने वाले जंतुओं की संख्या बढ़ जाएगी जिससे की मानव जाति के लिए भोजन और जल का संकट उत्पन्न हो जाएगा। इन वजहों से बाघों का संरक्षण हमारा दायित्व एवं कर्तव्य है।

तस्वीर साभार: गेटी इमेजेज

पिछले चार दशकों में सरकारें और विशेषज्ञ बाघ संरक्षण की ओर छोटे-छोटे कदम बढ़ा रहे हैं, उसी का फल है कि भारत समेत एशिया के 12 देशों में बाघों की संख्या में वृद्धि दर्ज़ की गई है। भारत में बाघ संरक्षण हेतु 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर लांच किया था और उसके बाद बाघों की संख्या का अनुमान हर साल लगाया जाने लगा।

दुनियाभर में चल रहा है बाघों के संरक्षण का काम

28 जुलाई 2020 को पर्यावरण मंत्रालय ने बाघ जनगणना की डिटेल्ड रिपोर्ट जारी की है। जिसके अनुसार भारत में वर्तमान मे 2967 बाघ हैं। पिछले 4 वर्षों में बाघों की संख्या में 741 बाघों इज़ाफा हुआ है। यह खबरें थोड़ी सुकूनदायक है। निकट भविष्य में बाघ संरक्षण केंद्रों में पहली बार LIDAR तकनीक से चारा और पानी का पता लगाया जाएगा ताकि मानव और बाघों के बीच झड़प को कम किया जाए।

इसके अलावा दुनियाभर के विशेषज्ञ और पर्यावरण प्रेमी बाघ संरक्षण के लिए लगातार प्रयासरत हैं। बाघों के प्राकृतिक आवासों को संरक्षित करने का प्रयास जारी है। कैमरा ट्रैप, जीपीएस, डीएनए सैंपलइन आदि के आधार पर बाघों और उनके शिकार पर निगरानी की जा रही है।

अवैध शिकार और बाघों के अंगों के व्यापार को खत्म करने के लिए सरकार कड़े कानून बनाने को प्रतिबद्ध है। यह सब किया जा रहा है लेकिन व्यक्तिगत स्तर पर हम क्या कर सकते हैं जिससे यह शानदार जीव भविष्य में धरती पर बिचरते रहे। यह सोचना हमारा काम है।

बाघ की तस्वीर

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सोर्स लिंक: वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ, wwf.org, PIB, बिजनेस स्टैंडर्ड, विकिपीडिया, धीब्री ब्लॉग

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