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ओडिशा में 20 आवारा कुत्तों को ज़हर क्यों दे दिया गया?

dogs killed in odisha

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ओडिशा पशु कल्याण कार्यकर्ताओं ने ब्रम्हांन्द मलिक (61) और भारत मलिक (40) दोनों के गिरफ्तारी की मांग की है। इन्होंने कथित रूप से 19 जून को 20 से ज़्यादा आवारा कुत्तों को ज़हर देकर मार दिया।

ज़हर देकर 20 कुत्तों की ले ली गई जान

बता दें कि मामला ओडिशा के गाँव नहंगा का है जो कि भनुरिया ग्राम पंचायत के अंतर्गत आता है। यहां बीते 19 तारीख को ब्रम्हांन्द और उसके भतीजे भारत ने 20 से ज़्यादा आवारा कुत्तों को सिर्फ इसलिए ज़हर दे दिया, क्योंकि उनमें से किसी एक कुत्ते ने उनकी बकरी को काट लिया था।

उन्होंने बछनाग (strychnine) जो कि ज़हरीले पेड़ के तौर पर जाना जाता है, उस पेड़ की छाल को पानी में उबाल कर उसे बकरी और मुर्गे के मांस में मिलाकर जगह-जगह, यहां-वहां फैला दिया जिसको खाने से बेज़ुबान कुत्तों की मौत हो गई।

इन कुत्तों के शवों को 21 जून को भनुरिया ग्राम सरपंच गगनबिहारी सेठी और कुछ वार्ड सदस्यों द्वारा देखा गया। वहीं अपराधियों के पड़ोसियों ने भी बताया किस तरह उन लोगों ने आवारा कुत्तों को मारने के लिए मांस पकाया था। पड़ोसियों का कहना था, “उनकी बकरी को काट लेने की वजह से वे उदास और बेहद गुस्सा थे और उन कुत्तों को मार देना चाहते थे।”

वहीं स्थानीय दल विजू युवा वाहिनी के कार्यकर्ता ने नहंगा पुलिस स्टेशन में आईपीसी की धारा 428, 429 (जानवरों के प्रति क्रूरता बरतने पर) के अंतर्गत दोनों ही आरोपियों के खिलाफ शिकायत दर्ज़ करवाई।

हालांकि स्थानीय पशु चिकित्सिक ने पहले ही जांच कर सैम्पल इकट्ठे कर लिए हैं, जिससे यह पता लगाया जा सके कि कुत्तों को मारने के लिए किस तरह का ज़हर उपयोग किया गया है।

प्रतीकात्मक तस्वीर, (फोटो साभार: YKA मीडिया)

आरोपियों को गिरफ्तार न करने का पुलिस पर लग रहा है आरोप

वहीं पशु कल्याण कार्यकर्ता पूर्वी पात्रा ने आरोप लगाया कि पुलिस के लिए उन्हें पकड़ना आसान था, “साफ नज़र आ रहा है वे लोग कितने बीमार दिमाग थे, कैसे वे इतने सारे जानवरों को ज़हर देकर मार सकते हैं? लेकिन पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने का कोई भी प्रयास करती नज़र नहीं आ रही है।”

वहीं नहंगा पुलिस इंस्पेक्टर रंजना प्रधान ने कहा, पुलिस उन दोनों को गिरफ्तार करने के पूरे प्रयास में लगी हुई है। पुलिस का कहना है, “हम उन्हें निश्चितरूप से गिरफ्तार करेंगे और साथ ही उनपर कड़ी-से-कड़ी कार्रवाई भी की जाएगी, बस एक बार लैब रिपोर्ट से साफ हो जाए कि किस तरह का ज़हर उन मृत कुत्तों के शवों में पाया गया है।”

बता दें कि स्ट्रिकनीन (बछनाग) के जिस ज़हरीले पेड़ की बात की जा रही है, इसके पत्ते और तने दोनों ही बहुत ज़हरीले होते हैं और यह सबसे ज़हरीले पेड़ों में से एक माना जाता है।

मूक प्राणियों को लेकर इतना क्रूर क्यों है इंसान?

सोचने वाली बात है कि क्या इतना सरल होता है इन खबरों को खबरों की तरह पढ़ते चले जाना? जहां एक ओर हम दूसरे देशों में भेदभाव के खिलाफ चल रही मुहिमों के लिए अपनी आवाज़ें उठाते हैं और हैशटैग मूवमेंट में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते नज़र आते हैं, वहां इस तरह की घटनाएं हमें आखिर कहां ले जाकर खड़ा करेंगी?

एक तरफ हम भेदभाव के प्रति आवाज़ उठाने की बात करते हैं, वहीं दूसरी तरफ हमारी यह छवि हमें हकीकत का आईना दिखा रही होती है।

जब मानसिकता इतनी क्रूर हो जाए कि इंसान मूक प्राणियों से बदला लेने पर उतारू हो जाए, तो आप अंदाज़ा लगाइए उन लोगों के साथ क्या क्रूरती होती होगी जिसके पास सवाल-जवाब करने के लिए ज़ुबान है।

हमारा भारत सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है। हमारी संस्कृति और हमारे मूल्य मनुष्यों, नदियों और पेड़ों से लेकर पशु-पक्षी तक सबको पूज्य बनाती है लेकिन यह कौन-सी संस्कृति है और कौन-सी शिक्षा है? जो हमें जानवरों से भी कहीं ज़्यादा गया गुज़रा बना रही है।

लगातार हो रही हैं ऐसी घटनाएं

यह कोई पहली या दूसरी घटना नहीं है, अप्रैल में भुवनेश्वर में ही एक महिला द्वारा एक गर्भवती फीमेल डॉग को पीटने का वीडियो सामने आया था। इसके अलावा अब तक का सबसे भयावह दृश्य हथनी को विस्फोटक खिला देना, और वो तस्वीर तो जहन से हटती ही नहीं है, जहां हाथियों की सूंड को सिर्फ इसलिए आग लगा दी गयी थी कि किसान उन्हें अपने खेतों से भगा देना चाहते थे।

ऐसी किसी भी घटना को उठाकर देख लिया जाए तो आप पाएंगे हम इंसानों ने उनकी सीमाओं का उल्लंघन किया है उन मूक प्राणियों ने हमारी सीमाओं का कभी नहीं और ऐसी कितनी ही घटनाएं रोज़ कहीं-ना-कहीं घट रही होती हैं।

कुछ दिनों पहले विस्फोटक से भरा अनानास खाने से हुई हथिनी की मौत के बाद की तस्वीर, (फोटो साभार: सोशल मीडिया)

क्या गिरफ्तारी और सज़ा इस मानिसकता को खत्म कर पाएगी?

मैं ऐसे कितने ही लोगों को जानती हूं जिनके लिए मच्छर मारना पाप है लेकिन किसी कुत्ते-बिल्ली को मारना शान का बात है और इनमें से दो-चार ही घटनाएं सामने आ पाती हैं। वैसे भी जानवरों के मरने का किसी पर क्या फर्क पड़ जाएगा यह मानसिकता बहुत गहरी हो चुकी है।

सिर्फ गिरफ्तारी और सज़ा समाज को इस मानसकिता से नहीं उबार सकती है। एक बकरी को बचाने के लिए यदि कोई 20 असहाय कुत्तों की जान ले सकता है, तो वह किसी भी सूरत में पशु प्रेमी नहीं हो सकता।

कल ऐसे ही लोग अपने गाय, घोड़ों को बचाने के लिए अपनी ही बकरियों को ज़हर देते नहीं घबराएंगे। उम्मीद है जल्द ही लैब रिपोर्ट आएगी और इस तरह के लोग जो किसी पिंजरे के ही काबिल हैं उन्हें वहां पहुंचा दिया जाएगा।

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