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मुख्यधारा के मीडिया में क्यों नहीं हो रही है बाढ़ पर कोई चर्चा?

assam 2020 floods woman walks in waist-high water

वैश्विक स्तर पर कोरोना वायरस के फैलाव से जहां जन जीवन प्रभावित हुआ है, वहीं बढ़ी मात्रा में लोगों ने अपनी जान को भी गंवाया है। भारत भी इस महामारी से बुरी तरह जूझ रहा है। इसी बीच उत्तर-पूर्वी राज्य असम नई परेशानियों और मुसीबतों से घिर गया है। वह है सैलाब, बाढ़, भारी बारिश आदि जिससे असम के लाखों लोगों के जीवन बद से और बदतर हो गए हैं।

इस महामारी के दौरान जहां सरकार लोगों को घरों में रहने के लिए उत्तेजित कर रही है ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ जैसे नियमों का पालन करने को कह रही है। ऐसे में, असम के लोग घर से बेघर हो गए हैं। जान और माल से हाथ धो बैठे हैं।

बाढ़ से प्रभावित लोग, तस्वीर साभार: गेटी इमेजेज

करीब 24 से 25 लाख लोग ऐसे हैं जो अब तक बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित हो चुके हैं और लगभग 36 से ज़्यादा लोगों की मौत की खबर भी आ चुकी है। वहीं हज़ारों की तादाद में ना सिर्फ इंसान, बल्कि जानवर भी लापता हैं या मर गए हैं।

हालांकि असम में बाढ़ का आना नया नहीं है बारिश के मौसम शुरू होते ही असम से बाढ़ की खबर आना शुरू हो जाती है। आखिर क्यों हर साल असम में बाढ़ आती है? सरकार तो बदलती है लेकिन असम बाढ़ का मुद्दा वही रहता है, क्यों?

किन कारणों से आती है बाढ़?

हर साल असम में बाढ़ आती है बावजूद इसके कुछ नहीं बदलता है। इस साल हालत और ज़्यादा गंभीर बताएं जा रहे हैं। असम भारत का उत्तर-पूर्वी राज्य में आता है जिसमें लगभग 33 ज़िले शामिल हैं।

बाढ़ आने के कारण को हम दो स्तर से देख सकते हैं। एक प्राकृतिक और दूसरा मानव-निर्मित, प्राकृतिक स्तर पर हम नदी, बारिश और जलवायु परिवर्तन जैसे विषयों को देख सकते हैं और मानव निर्मित जो हम खुद पैदा करते हैं, जैसे बांध बनाना और उसका टूट जाना, प्रकृति से खिलवाड़ करना आदि शामिल है।

बाढ़ के बाद के हालात, तस्वीर साभार: गेटी इमेजेज

बढ़ते प्रदूषण और तापमान से तिब्बत के पठार पर जमी बर्फ और हिमालय के ग्लेशियर तेज़ी से पिघल रहे हैं। जिससे नदियों का जल स्तर बढ़ रहा है। असम में बाढ़ आने का सबसे बड़ा कारण असम की ब्रह्मपुत्र नदी है। यह तिब्बत, भारत तथा बांग्लादेश से होकर बहती है। यह एक ‘ट्रांसनैशनल रिवर’ है। इसका एक लंबा इतिहास है।

आखिर क्यों असम बाढ़ प्रदेश बना हुआ है?

हमें बाढ़ को समझने के लिए नदी को समझना होगा उसके इतिहास को समझना होगा, क्योंकि इस नदी को लेकर ‘जियो पालिटिक्स’ होती रही है। हर साल दूसरे देशों से पानी छोड़ा जाता है जिससे बांध टूट जाते हैं और बाढ़ आ जाती है।

असम का उत्तरी हिस्सा भूटान और अरुणाचल प्रदेश से लगा हुआ है। दोनों ही पहाड़ी इलाके हैं। पूर्वी हिस्सा नागालैंड से मिलता है। पश्चिमी हिस्सा पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश से मिलता है। असम का दक्षिणी हिस्सा त्रिपुरा, मेघालय और मिजोरम से मिलता है। इस असम में तिब्बत से निकलने वाली कई नदियां अरुणाचल प्रदेश आती हैं, जो बाढ़ लाती हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर

हर बार बाढ़ का यह मुद्दा वहीं रहता है। सवाल वही रहते हैं इसका स्थिर इलाज क्यों नहीं हो पाया है? सरकार बाढ़ को लेकर क्यों गंभीर नज़र नहीं आती? सरकार बाढ़ प्रभावितों का आंकलन कर ही रही होती है। इतने में दूसरी बाढ़ आ जाती है। क्या हमें असम को एक बाढ़ प्रदेश के रूप में ही स्वीकार करना होगा?

जानवर कैसे हो रहे हैं प्रभावित?

असम की बाढ़ से ना सिर्फ इंसान मुश्किलों में है, बल्कि वन्य जीवन भी बड़े स्तर पर प्रभावित हो रहे हैं और मर रहे हैं, क्योंकि असम प्रदेश के 33 ज़िलों में से 24 जिले बाढ़ प्रभावित हैं। देश का महत्वपूर्ण ‘नेशनल पार्क काजीरंगा’ जो कि असम में है, वह 85 फीसदी पानी में डूब चुका है। जानवर डूब रहें हैं। असम सरकार के 10 गैंडों के साथ 100 के आस-पास हिरनों की पानी में डूबने से मौत हो गई है।

लोगों के बचाव में जुटे अधिकारियों के मुताबिक, प्रशासन पहले ही कोरोना संकट के चलते काफी दबाव में है। बाढ़ ने संकट को और बढ़ा दिया है। बाढ़ ने जंगल और रिहाइशी, दोनों इलाकों में मुसीबत पैदा की है। जानवर भी खासे परेशान है। डूबकर मर रहे हैं। उनको भी बचाया जाना ज़रूरी है।

लोगों के जीवन हो गया है अस्त व्यस्त

असम बाढ़ से जहां लोग मर रहे हैं, वहीं बचे हुए लोगों के पास कुछ नहीं बचा है। घर और सामान्य ज़रूरत का सामान सब नष्ट हो गया। असम एक पहाड़ी इलाका है जहां ज़्यादातर लोग खेतीबाड़ी करते हैं। बाढ़ आने से खेत और फसल सब बर्बाद हो गई है। असम सरकार के अनुसार, 50 हज़ार, 276 राहत शिविर कैम्पों में रुके हुए हैं।

कोरोना काल के इस संकट में ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ का होना कैसे संभव होगा? वहीं, एक लाख हेक्टेयर भूमि की फसल बर्बाद हो गई है। लोगों का रोज़गार खत्म हो गया। भुखमरी का वायरस और फैल गया है।

प्रतीकात्मक तस्वीर

हालांकि NDRF और SDRF संस्थाएं काम कर रही हैं। कुछ NGO काम कर रहे हैं। ऐसे में, सरकार की ज़िम्मेदारी और बढ़ जाती है। सरकार कितनी चिंतित हैं और क्या-क्या योजना बना रही है? यह एक बड़ा सवाल है, क्योंकि शिविर कैम्पों में रुके हुए लोगों को कितनी सुविधाएं वक्त पर मिल पा रही है? यह सवाल है जिनपर विचार किया जाना ज़रूरी है।

मुख्यधारा के मीडिया में क्यों नहीं हो रही है असम बाढ़ की चर्चा

बाढ़ से असम के हालात काफी गम्भीर है। लोग और जानवर मर रहे हैं। बाढ़ ने फसल और घरों को बर्बाद कर दिया है लेकिन मुख्यधारा के मीडिया से असम बाढ़ और उससे जुड़े तमाम सवाल गायब क्यों है? यह वही असम है जिसको नागरिकता संशोधन कानून को लेकर बहस का मुद्दा बनाया गया था लेकिन बाढ़ के मामले में असम पर बात नहीं हो रही है, आखिर क्यों?

हर साल असम में बाढ़ आती है लेकिन मुख्यधारा का मीडिया तमाम तरह के राजनीतिक, विभाजनकारी, हिन्दू और मुस्लिम जैसे मुद्दों में उलझा रहता है। मुख्यधारा मीडिया की कवरेज को देखें को असम की खबरें बिल्कुल ना के बराबर हैं। अखबार के पेज पर असम की कितनी खबरों को प्रकाशित किया गया है?

मीडिया ने कितने सवालिया ढंग से देखा है कि कितने लोगों को सुविधा मिल पा रही है? सरकार जो दावे कर रही है, वह कितने सही हैं? लोगों को किन-किन परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है? सरकार ने कितने लोगों को बचा लिया है और कितने लोगों को शिविर कैम्प की सुविधा दे दी गई है? क्या असम के लोगों से सही संपर्क हो पा रहा है?

यह सारे सवाल मीडिया से गायब है। इसका मुख्य कारण मीडिया का कारोबारी होना है। खबरों का चुनाव TRP की कसौटी पर किया जाना है।

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