एक तरफ कुआं और दूज़ी तरफ खाई..
भेद रूपी जहरीली आबो-हवा
ख़ुद हमने ही है बनायी..
जो गर होता इंसानियत का मंजर
तो क्या बंद कमरा और क्या खुली रोशनायी..
चाहते बहुत कुछ है बेधड़क हम ज़िन्दगी से
पर उसकी लुकाछिपी से छुइमूई सा हम घबरा जाते..
ना जाने कहाँ गया वो अपना निश्छल बचपन…
जिसमे बेपरवाही से हर पल को थे हम जीते..
इधर से गया बचपन उधर से आया अल्हड़पन…
धीरे-धीरे से दस्तक देती है जीवन में रूसवाईयां…
सच से.. इंसानियत से.. अपनेपन और.. मोहब्बत से..
और फिर.. फिर क्या.. वहीं..
एक तरफ कुआं और दूज़ी तरफ खाई…
#StayHealthy #staysafe #helpneedy