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विधुत अधिनियम संसोधन विधेयक से किसानों,गरीब परिवारों पर बढ़ेगा भार : सुभाष पाण्डेय

विधुत मंत्रालय ने 21 दिन के भीतर मांगे सुझाव

भोपाल   कोविड-19 आपदा के बीच केंद्र सरकार ने बिजली अधिनियम 2003 में संशोधन का ड्राफ्ट जारी किया सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि कोरोनावायरस संक्रमण के दौर में जब पूरे देश में लॉकडाउन घोषित था तब केंद्रीय विद्युत मंत्रालय द्वारा 17 अप्रैल 2020 को यह ड्राफ्ट सार्वजनिक किया गया। इतना ही नहीं, मंत्रालय ने इस ड्राफ्ट पर आपत्ति या सुझाव दर्ज कराने के लिए केवल 21 दिन का समय दिया।
इस नए संशोधित बिल के पीछे केंद्र की एक और बड़ी मंशा है। बिजली के उत्पादन में निजी क्षेत्र की भागीदारी लगातार बढ़ रही है, लेकिन वितरण क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी लगभग न के बराबर है। केंद्र सरकार बिजली वितरण क्षेत्र में निजी भागीदारी बढ़ाना चाहती है। इसके लिए बिल में प्रावधान किया गया है कि वितरण के क्षेत्र में केरिज और कंटेंट अलग-अलग किया जाए। इसका मतलब था कि बिजली वितरण और आपूर्ति को अलग-अलग करना। राष्ट्रीय किसान महासंघ के सुभाष पाण्डेय बताते हैं कि दरअसल विश्व बैंक और देश के बड़े निजी घराने पावर सेक्टर का निजीकरण करने पर तुले हुए हैं, इसलिए केंद्र सरकार चाहती है कि घरों-संस्थानों में बिजली आपूर्ति और बिल वसूली का काम निजी कंपनियों को सौंपा जाए। इसलिए केंद्र सरकार ने यह बिल तैयार किया।दूबे कहते हैं कि सरकार ने इसे फ्रेंचाइजी मॉडल का नाम दिया है, जिसे वह पूरे देश में लागू करना चाहती है। यह मॉडल लागू होता है तो राज्यों के विद्युत वितरण निगम ट्रांसफाॅर्मर तक बिजली पहुंचाएंगे और उसके बाद फ्रेंचाइजी एजेंसी का काम होगा कि वह घर-घर तक बिजली पहुंचाना और बिल की वसूली करना। अभी सरकार यह कह रही है कि उपभोक्ता के पास यह अधिकार होगा कि वह जिस तरह मोबाइल कंपनियों का कनेक्शन बदल सकते हैं, उसी तरह वे बिजली कंपनियों की सेवा पसंद में न आने पर कनेक्शन बदल भी सकते हैं। लेकिन सरकार यह नहीं बता रही है कि ग्रामीण इलाकों व गरीब बस्तियों में जहां लोग महंगी बिजली खरीदने में सक्षम नहीं होंगे, वहां बिजली कौन पहुंचाएगा। क्या प्राइवेट कंपनियां ऐसे इलाके में बिजली पहुंचाने के लिए तैयार होंगी, जहां से उनकी कम आमदनी होगी या जहां एसी-कूलर न होने के कारण बिजली की खपत कम होगी।दूबे आशंका जताते हैं कि यह नया अधिनियम लागू होने के बाद प्राइवेट कंपनियां केवल महंगे इलाकों में ही बिजली सप्लाई करने में इच्छा जताएंगी, जबकि ग्रामीण या गरीब बस्तियों में या तो सरकारी निगमों से ही बिजली आपूर्ति कराई जाएगी या किसी ऐसी निजी कंपनियों को लाइसेंस दिया जाएगा, जो न तो 24 घंटे बिजली देंगी और न ही बिजली की क्वालिटी ही अच्छी होगी। नए बिल में यह भी प्रस्ताव किया गया है कि राज्य सरकारें उपभोक्ताओं को सीधे सब्सिडी दें। अभी का प्रावधान है कि राज्य सरकारें डिस्कॉम्स को सब्सिडी की राशि देती हैं और डिस्कॉम्स उस राशि को कम करके उपभोक्ताओं से बिल वसूलते हैं, लेकिन केंद्र सरकार इसमें सीधे लाभार्थी को स्थानांतरण (डीबीटी) की बात कर रही है। पाण्डेय कहते हैं कि ज्यादातर राज्य ग्रामीणों और बिजली की कम खपत करने वाले गरीब लोगों को सब्सिडी देती है, लेकिन क्या संभव है कि पहले ग्रामीण और गरीब लोग बिजली कंपनियों के बिल का पूरा भुगतान कर दें और उसके बाद उनके खाते में पैसा आए। यह भी सीधे-सीधे निजी कंपनियों के फायदे के लिए किया जा रहा है, क्योंकि राज्य सरकारें सब्सिडी की राशि ट्रांसफर करने में समय लगाती हैं, जबकि डीबीटी करने पर निजी कंपनी को पहले पैसा पहुंच जाएगा, जबकि परेशानी कम आमदनी वाले लोगों को होगी।

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