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शिक्षा नीति का चुनाव करने वाले विद्वानों के बयान ज़ाहिर करते हैं उनका इरादा.

एक धारदार चाकू के कई अच्छे इस्तेमाल हैं। यदि यही धारदार चाकू किसी ऐसे व्यक्ति के हाथ थमा दिया जाए जिसे इसका इस्तेमाल ना आता हो, तो सोचिए मंज़र क्या होगा? वो स्वयं अपना हाथ काट लेगा, साथ ही जिस कार्य को वो करने बैठा है, उसका भी बंटाधार कर बैठेगा।

अब गलती तो ना उस चाकू की होगी ना उसके धार की, गलती होगी उन व्यक्तियों की जिन्होंने किसी कारीगर के बजाय उस अक्षम व्यक्ति के हाथ में वह चाकू थमाया। वैसे “बन्दर के हाथ में उस्तरा” या “बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद” जैसी कहावतें आपने सुनी होंगी।

शिक्षा एक धारदार चाकू की तरह ही है

अगर आपको सही शिक्षक जीवन के सही समय पर मिल जाएं तो जीवन में सफलता का मिलना काफी आसान हो जाता है। अगर गलत जानकारी देने वाला शिक्षक आपको मिल जाए तो आपका बना-बनाया जीवन भी बर्बादी के कगार पर आ जाता है। आज हम उन लोगों की बात करेंगे जिनके हवाले हमने अपनी अगली पीढ़ी की शिक्षा का भविष्य कर दिया है।

हमारे देश में नेता बनने के लिए किसी नीति का जानकार या विशेषज्ञ होना ज़रूरी नहीं होता। कोई परीक्षा पास नहीं करनी होती। कोई भी व्यक्ति मात्र लोकप्रियता और बाहुबल के आधार पर नेता बन सकता है लेकिन कौन सी नीति असल लोकहित के लिए बेहतर है, किस नीति के दूरगामी परिणाम बेहतर होंगे, यह चुनने के लिए विभिन्न विषयों का जानकार होना बेहद बेहद ज़रूरी है।

अब नीति जिन्होंने बनाई है या होगी वे तो बेहद पढ़े-लिखे इंसान होंगे लेकिन उस नीति को लागू करवाने वाले लगभग अनपढ़ होंगे। तो आप कैसे यह मान कर चलते हैं कि शिक्षा नीति उचित ढंग से लागू होगी। इतना तो आप समझते ही हैं कि पार्टी कोई भी जीते, लोगों का अशिक्षित रहना, जानकारी से वंचित रहना हमेशा पार्टियों के पक्ष में ही रहेगा।

आइए आज नई कही जाने वाली शिक्षा नीति लागू करवाने वालों के विचारों से उनका इरादा जानते हैं।

बात सबसे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की

क्या आपको लगता है कि आज किसी विषय की परीक्षा में नरेंद्र मोदी पास होंगे? उनके सार्वजनिक बयानों से शिक्षा के के प्रति उनके रवैये को समझते हैं। मोदी खुले मंच पर अपनी शिक्षा के बारे में अलग-अलग बयान दे चुके हैं। वो ऐसे विषय में खुद को एम.ए बताते हैं, जो आज तक विश्व की किसी यूनिवर्सिटी में पढ़ाया ही नहीं गया।

ना आज तक उनका कोई बैचमेट मिल पाया है और ना ही कोई शिक्षक। इमरजेंसी के वर्ष में रविवार के दिन उनकी डिग्री प्रिन्ट हुई है। डिग्री में कम्यूटर फॉन्ट हैं। जबकि उस दौर में कंप्यूटर आया ही नहीं था। 

एक दूसरे इन्टरव्यू में वो बताते हैं कि उन्होंने स्कूली शिक्षा के बाद कोई पढाई ही नहीं की। तो अब आप सोचिए जिसकी स्वयं की शिक्षा के बारे में इतने झोल हैं, क्या वो शिक्षा नीति को सही ढंग से लागू होने देंगे?

डिस्लेक्सिया जैसी गंभीर बीमारी पर हो रही चर्चा का इस्तेमाल वो विपक्ष के नेता का मज़ाक उड़ाने के लिए करते हैं। इससे पता चलता है कि वो मानसिक स्वास्थ्य को लेकर कितने सीरियस हैं। गणित की जानकारी उनकी ऐसी है कि कभी वह 600 करोड़ भारतीय बोल देते हैं।

मेडिकल साइंस की उनकी जानकारी ऐसी है कि वैदिक काल में प्लास्टिक सर्जरी की बात करते हैं। वैसे हेड ट्रांसप्लांट और प्लास्टिक सर्जरी की उन्हें कितनी समझ है मुझे नहीं पता। पर्यावरण विज्ञान की उनकी जानकारी ऐसी है कि उन्होंने क्लाइमेट चेंज को नकार दिया था।

सेक्स-जेंडर के बारे में उनके समर्थकों की समझ ऐसी है कि वह एलजीबीटी कम्युनिटी को बीमारी के तौर पर देखते हैं लेकिन वह कभी खुले आम उनका विरोध नहीं करते। एतिहासिक धरोहरों की उनकी जानकारी ऐसी है कि बैंगलोर में भाषण देते वक्त मोदी “लाल किला” और “लाल दरवाज़ा” में कंफ्युज़्ड हो गये थे। 

उनके हिसाब से महाभारत के समय जेनेटिक साइंस थी लेकिन इतिहास की बात करें तो उन्हें यह नहीं पता चन्द्रगुप्त गुप्त वंश के नहीं मोर्य वंश से थे। एक बार तो हद ही हो गई, मोदी ने एलेक्ज़ेंडर को बिहारियों के हाथों हरवा दिया था जबकि अलेक्ज़ेंडर तो कभी गंगा पार भी नहीं पहुंचा। अमेरिका में वो बक आये थे कि कोणार्क मंदिर 2000 साल पहले बना था अब किसी सरकारी अधिकारी में तो इतनी हिम्मत है नहीं कि उन्हें बताये कि कोणार्क 13वीं सदी में बना था. 

मोदी ने एक बार जमशेदपुर 3 अलग-अलग सदी में पैदा हुए संतों की मुलाक़ात करा दी थी। संत कबीर, गुरुनानक और गोरखनाथ। अब गोरखनाथ 11वीं शताब्दी के हैं, कबीर 15वी शताब्दी के हैं, गुरुनानक 16वी शताब्दी के हैं।

भूगोल की समझ भी इतनी गज़ब है कि तक्षशिला विश्वविद्यालय को मोदी ने बिहार पहुंचा दिया था। हालांकि तक्षशिला आज के पाकिस्तान में है।

महिला आरक्षण के बारे में उन्हें यह नहीं पता कि सरदार पटेल ने यह बात 1919 में नहीं, 1926 में की थी। राज्यों के बारे में उन्हें यह भी नहीं पता था कि महाराष्ट्र के अब तक 17 मुख्यमंत्री हुए हैं उन्हें यह आंकड़ा  26 लगता है। अब बताइए कोई क्या करे।

रूपये के बारे में उन्हें यह भी नहीं पता कि 1947 में 1 डॉलर 3 रूपये 30 पैसे के बराबर था। वह सबको 1 रूपये के बराबर बताते फिरते हैं। कभी नामों को लेकर कंफ्युज़्ड हो जाते हैं तो कभी श्यामजी कृष्णजी वर्मा को श्यामा प्रसाद मुखर्जी समझ लेते हैं। कभी मोहनदास को मोहनलाल गांधी कह बैठते हैं।

एक बार साहेब ने नेहरु को मुखर्जी की मौत का ज़िम्मेदार भी बता दिया था। उन्होंने आरबीआई के गवर्नर का पद इतिहास के विशेषग्य को दिला दिया था। अमेरिका में वह बक आये थे कि कोणार्क मंदिर 2000 साल पहले बना था अब किसी सरकारी अधिकारी में तो इतनी हिम्मत है नहीं कि उन्हें बतायें कि कोणार्क 13वीं सदी में बना।

इसके अलावा भी बहुत कुछ आपको याद होगी जैसे बादल रडार सिद्धांत, नाली गेस टी सिद्धांत, पकोड़ा रोज़गार सिद्धांत आदि। 

बात गृह मंत्री अमित शाह के अलावा अन्य दूसरे भाजपाइयों की

वह तो खुले मंच पर स्वीकार चुके हैं कि नागरिकता, लोकतंत्र, धर्म निरपेक्षता, संघवाद वाले चेप्टर तो उन्होंने स्कूल में स्किप कर दिए थे। उन्हें इस बात का कोई गम भी नहीं है। अब कोई स्वयं ही मज़ाक उड़वाने पर उतारू हो तो भई क्या कर सकते हैं। जनसंख्या अनुपात के बारे में भाजपा के मंत्री साक्षी महाराज के बेहतरीन ख्यालात हैं। हर हिन्दू परिवार को 3-4 बच्चे पैदा करने चाहिए।

मानव संसाधन मंत्री सत्यपाल सिंह डार्विन थ्योरी को नकारते हैं और मनुस्मृति थ्योरी का खुलेआम प्रचार करते हैं। महानुभाव ने खुदको वैज्ञानिक ही घोषित करते हुए कहा कि यही सत्यपाल थे जिन्होंने घोषणा की थी हवाई जहाज़ राईट ब्रदर्स से बहुत पहले एक हिन्दू ने बनाया था। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव राम माधव हमेशा सत्यपाल जी की वैज्ञानिक समझ का साथ देते आये हैं।

इसी कड़ी में अगला नाम हैं उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक का। भाई साहब के हिसाब से ज्योतिष के सामने विज्ञान बौना है। ऋषियों ने परमाणु परीक्षण किया था। नासा ने चुपके से निशंक ब्रो को ये कन्फर्म किया था कि भविष्य में बोलने वाले कंप्यूटरों की नींव संस्कृत से रखी जाएगी।

उनके हिसाब से संस्कृत ही दुनिया की इकलौती वैज्ञानिक भाषा है। रामसेतु इंजिनीयरिंग का एक बेहतरीन मोडल है। हिंदी-इंग्लिश दोनों भारत की ऑफिशियल भाषाएं हैं लेकिन निशंक साहब ने संविधान में पढ़ लिया कि हिंदी राष्ट्रीय भाषा है। भारत के छात्र आज भी वह पन्ना खोज रहे हैं जिसमे कहीं ऐसा लिखा हो।

वर्तमान सरकार से प्रभावित हो कर हाई कोर्ट के जज भी यही मानते हैं कि मोर ब्रह्मचारी होता है और बिना सेक्स किये आंसुओं से गर्भधारण करता है।

राजस्थान के शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी के हिसाब से गाय इकलौती ऐसी जानवर है ओक्सीजन लेती है और ओक्सीजन ही छोड़ती है। पता नहीं ये ससुरी गाय फिर ओक्सीजन लेती ही क्यों है?   

राजनाथ सिंह के मुताबिक आपको ग्रहों के बारे में बेहतर जानकारी बगल वाले पंडित के पंचांग से मिल सकती है। इसके लिए आपको एस्ट्रोनॉमर्स की सुनने की क्कोई ज़रूरत नहीं। मैंने बगल वाले पंडित से पूछा था कि शनि ग्रह के उपगृहों की झीलें किस द्रव्य से बनी हैं, उसने कोई जवाब ही नहीं दिया।

मोदी सरकार के इस समय के सबसे पढ़े लिखे माने जाने वाले मंत्री पियूष गोयल को यह तक नहीं पता कि ग्रेविटी की खोज आइन्स्टीन ने की थी या न्यूटन ने। प्रकाश जावड़ेकर और पियूष गोयल के हिसाब से भारत में जो व्यक्ति जानबूझकर न कमाता हो उसे बेरोज़गार नहीं कहना चाहिए. अब मैं आज भी उन सरकारी आंकड़ों का इंतज़ार कर रहा हूं जिनमें बाईच्वाइस बेरोज़गारों की असल संख्या पता चले।

ट्वीटर ट्रेंड “सरकार को यह नवरत्न कहां से मिले

ट्विटर पर इस बेबाक ख्याली के कारण ही ट्रेंड हुआ था कि वर्तमान सरकार को ये नवरत्न कहां से हासिल हुए। यूनियन मिनिस्टर प्रकाश जावड़ेकर ने कहा था कि उनके पास सबूत है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री आतंकवादी हैं लेकिन उन्होंने कभी सबूत सीबीआई के सामने क्यों नहीं रखे? यह तो भाई देशद्रोह हो गया। वैसे उन्की स्वयं की शिक्षा ऐसी रहती है कि उन्हें अराजक और आतंकी में फर्क भी नहीं पता है। 

प्रकाश जावड़ेकर वायु प्रदुषण को ले कर अपनी समझ पर जगहंसाई करवा ही चुके हैं। उनके मुताबिक वायु प्रदुषण से लोगों की जीवन आयु कम होने का कोई सम्बन्ध ही नहीं है। तो वहीं महिला बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी एक चुनाव में खुदको बीए बताती हैं तो दुसरे चुनाव में मात्र 12वीं पास।

वैसे इस सरकार में दो मंत्रियों जिनके नथुने फूल जाते हैं सवाल सुनते ही निर्मला ताई और रविशंकर प्रसाद। निर्मला ताई ने तो संसद में प्याज़-लहसुन की बढ़ती कीमतों पर दो टूक कह दिया था कि वह तो प्याज़-लहसुन खाने वाले परिवार से हैं नहीं। इसलिए वह इन चीज़ों को लेकर ज़यादा फ़िक्र नहीं करतीं। अब उन्होंने कोरोना को “एक्ट ऑफ़ गॉड” बता दिया है। वहीं रविशंकर प्रसाद अर्थव्यवस्था का हाल फिल्मों की टिकिट बिक्री से पता कर लेते हैं।

मेघालय के राज्यपाल तथागत रॉय एक बार कह रहे थे कि कश्मीरियों का बलात्कार और नरसंहार होना चाहिए।  कोरोना वायरस से पीड़ित व्यक्ति को भाभीजी पापड़ से ठीक करवाने वाले केंद्रीय मंत्री अर्जुन मेघवाल तो आपको याद ही होंगे। अपने आदित्यनाथ तो कह ही चुके हैं कि हिन्दू-मुस्लिम इतनी अलग-अलग संस्कृति हैं कि वह साथ रह ही नहीं सकते तो अब उनकी नज़र से देखा जाए तो दोनों के साथ पढ़ने की तो बात ही संभव नहीं। प्रज्ञा ठाकुर ने अपने ब्रेस्ट केंसर का इलाज पंचगव्य से किया था। अगर प्रज्ञा ठाकुर की बात सुन विश्व ने ये तरीका अपना लिया तो विश्व में ब्रेस्ट केंसर से होने वाली मौतों का ज़िम्मेदार कौन होगा?

वायु प्रदुषण से बचाव के लिए हवन-यज्ञ जैसे शिगूफे

भाजपा के मंत्री सुनील भरला ने वायु प्रदुषण से बचाव के लिए हवन-यज्ञ करने का उपाय सुझाया था। पवित्र लकड़ी जलाई जाए और इंद्र को प्रसन्न करा कर वर्षा कराई जाये। वहीं डॉक्टर हर्षवर्धन ने वायु प्रदुषण के सवाल पर गाजर खाने की सलाह दे डाली। डॉक्टर हर्षवर्धन से स्टीफन हव्किंग्स ने चुपके से कहा था कि वेदों में सापेक्षता का सिद्धांत अल्बर्ट आइंस्टाइन के सिद्ध करने से पहले ही दिया हुआ है।

अब आपको स्टीफन हव्किंग्स कहीं ऐसा कहते हुए मिल जाएं तो मुझे बता दीजयेगा। वैसे हर्षवर्धन साहब ने यहां तक कह दिया था कि दिल्ली में वायु प्रदुषण से 12 लाख मौतों की खबर सिर्फ लोगों में डर फैलाने के लिए चलाई जा रही है।

इन सभी लोगों में चुनावी जोड़-तोड़ करने के अलावा इतिहास, भूगोल, विज्ञान किसी भी ज़रूरी विषय की नाम मात्र की समझ है नहीं। यह सब पटेल, गांधी और नेहरु को मुर्गों की तरह लड़ाते रहते हैं और हम सभी को डमी मुर्गों की लड़ाई दिखाते रहते हैं। इस प्रकार के ज्ञान से लबालब भरे व्यक्ति कोई भी नीति लायें गुड़ गोबर होगा कि नहीं?

यह सभी आपसे भगत सिंह के नास्तिक होने की बात यह हमेशा से छुपाते हैं। और उनकी शहीद सिख सरदार वाली इमेज के साथ खेलते रहते हैं। जब यह कम्युनिस्टों, कम्युनिज़्म और लेफ्ट को सिरे से नकार देते हैं तो यह बात क्यों छुपाते हैं कि सुभाष चन्द्र बोस और भगत सिंह लेफ्टिस्ट थे? सुभाष बाबु तो भारत में 20 साल तक तानाशाही के पक्षधर भी थे।

सवाल कई हैं जिनका जवाब चाहिए

कुछ सवाल जो इस वर्तमान सरकार चलाने वाली भाजपा से होना चाहिए। आपके स्वयं का एक शिक्षण संस्थान है राष्ट्रीय स्वयं सेवक स्नाघ जिसकी कई शाखाएं हैं। उसी शाखाओं से आप के ज़्यादातर मंत्रीगण निकले हुए हैं। यह संघ दुनिया में सबसे बड़ा शिक्षा संस्थान है तो इसमें से निकले कितने लोग विश्व की या भारत की टॉप यूनिवर्सिटीज़ में जा कर पढ़ते हैं? या वह विज्ञान, साहित्य कला के क्षेत्र में जाते हैं? कितने सेना में भर्ती होते हैं?

इस संस्थान में जाति-धर्म के हिसाब से विद्यार्थियों का क्या अनुपात है? यह एक प्राइवेट संस्था थी तो जो भी यह वर्तमान सरकार में बदलाव लाना चाहती है इनमें से ज़्यादातर बदलावों का प्रयोग तो वह अपने संस्थान में कर ही सकती थी तो फिर क्यों नहीं किये?

दरअसल बात समझिये 2014 में ही आरएसएस ने भारतीय शिक्षा नीति आयोग बना लिया था और इसके अध्यक्ष थे दीनानाथ बत्रा। जिन्हें महारथ हासिल है हिन्दू राष्ट्रवाद के मुताबिक इतिहास को देखने और दिखाने की। एनसीईआरटी की किताबों में पहले से ही जाने कितने बदलाव यह लोग कर चुके हैं और न जाने कितने करने वाले हैं। कृष्णचंदर का एक साधारण सा व्यंग्य जामुन का पेड़ तो इनसे सहन नहीं हुआ। अब भी आपको ज़रा सा यकीन है कि यह लोग आपके बच्चों में वैज्ञानिक विचारधारा पनपने देंगे?

अब आप एक मिनिट के लिए भूल जाइये, जिन लोगों का इस आर्टिकल में ज़िक्र है वह कौन हैं। समझ लीजिये वह आपके ताऊ की मौसी की नंद की लड़की के लड़के के परिवार से हैं और आपके बेटे-बेटी को बेहतर शिक्षा देने की बात कर रहे हैं। क्या आप आपके बच्चे का भविष्य अपने ऐसे रिश्तेदारों के हवाले कर देंगे? अगर नहीं तो जिस बन्दर के हाथ में अस्तुरा दे दिया है वहां इसका असली हकदार असली कारीगर बैठाइये। ये मत बोलियेगा कि 135 करोड़ भारतीयों के बीच आपको विकल्प नहीं दिख रहे। भारत के नागरिकों की ऐसी बेज्ज़ती मैं सहन नहीं करूंगा, मैं आपको एंटी-नेशनल पीपुल ही कहूंगा।

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