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कोरोना काल में परीक्षा के विरोध में भूख हड़ताल पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के स्टूडेंट

वर्तमान हालात को देखते हुए लगता है कि सुप्रीम कोर्ट से लेकर सरकार तक स्टूडेंट्स के सवालों और समस्याओं को नज़रअंदाज़ करन का मन बना चूके हैं। आज के समय में जब देशभर में एक दिन में कोरोना के लगभग 80,000 मामले सामने आ रहे हैं, परीक्षा कराए जाने का निर्णय पूर्णतः स्टूडेंट्स के हित के विरोध में है। कोरोना संक्रमण के बढ़ते खतरे के साथ स्टूडेंट्स की बहुत सारी समस्याएं भी हैं।

स्टूडेंट्स की समस्याओं को नज़रअंदाज़ क्यों किया जा रहा है?

इलाहाबाद विश्वविद्यालय तो यूजीसी और शिक्षा मंत्रालय से भी एक कदम आगे निकल चुका है। यूजीसी की गाइडलाइन के अनुसार, स्नातक में प्रथम और द्वितीय वर्ष के स्टूडेंट्स को अगले वर्ष में सीधे प्रमोशन की बात कही गई है।

इस मामले में इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रमोशन तो दे रहा है लेकिन साथ ही वर्तमान सत्र के एग्जाम अगले सत्र में कराने की बात कर रहा है। इससे अगले सत्र में विद्यार्थियों के ऊपर परीक्षा का दोगुना भार आ जाएगा।

जहां एक ओर विश्वविद्यालय अंतिम वर्ष के छात्रों की परीक्षा लेने की तैयारी कर रहा है, वहीं दूसरी ओर छात्रावास को खोलने के लिए भी तैयार नहीं है, ऐसे में छात्र परीक्षा किस तरह देंगे? परीक्षा के दौरान वे कहां रहेंगे?

विरोध करते इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र, तस्वीर साभार: YKA यूज़र

जो स्टूडेंट्स बाहर किराए पर कमरा लेकर रह रहे थे, उनके मकान-मालिक भी लॉकडाउन की अवधि का पूरा किराया मांग रहे हैं, जबकि अधिकतर छात्र लॉकडाउन के दौरान वहां नहीं रहे हैं। स्टूडेंट्स का सामान और किताबें मकान-मालिकों के यहां फंसी हुई हैं, जिसे मकान मालिक लौटाने को तैयार नहीं हैं और ना ही किराए में कुछ छूट देने को तैयार हैं।

इलाहाबाद में एक कमरे का किराया लगभग 4000 से 5000 के बीच होता है। ऐसे में अप्रैल से अगस्त तक का किराया 25,000 हो गया है यानी एग्जाम से पहले 25,000 रुपये की व्यवस्था स्टूडेंट्स को सिर्फ कमरे का किराया देने के लिए करना होगी। इस महामारी के दौर में सभी स्टूडेंट्स के लिए ऐसा कर पाना संभव नहीं है, यह दिक्कतें छोटी ज़रूर लग सकती है लेकिन यह बेसिक और ज़्यादातर स्टूडेंट्स की समस्या है।

बाढ़ प्रभावित इलाकों में फंसे स्टूडेंट कैसे देंगे परीक्षाएं?

कुछ स्टूडेंट बाढ़-प्रभावित क्षेत्रों में फंसे हुए हैं, जिस कारण से उनके क्षेत्र में परिवहन व्यवस्था ठप हो गयी है, वे सार्वजनिक परिवहन का प्रयोग कर परीक्षा देने नहीं पहुंच सकते हैं। वे रमेश पोखरियाल जी की तरह प्राइवेट हेलीकॉप्टर तो अफोर्ड नहीं कर सकते है। यह स्टूडेंट्स किस तरह यात्रा करके परीक्षा देने जाएंगे? निजी वाहन वाले बहुत अधिक रकम की मांग कर रहे हैं और हर जगह यह सुविधा उपलब्ध भी नहीं है।

स्टूडेंट्स की एक प्रमुख मांग यह है कि अप्रैल से ही उन्होंने हॉस्टल और विश्व-विद्यालय की संपत्ति का प्रयोग नहीं किया है, जबकि उनसे पूरे सत्र की फीस शुरुआत में ही बसूल ली गई है। ऐसे में, लॉकडाउन के दौरान से अब तक की फीस जो वे दे चुके हैं, उसको अगले सत्र में शामिल कर स्टूडेंट्स पर से वर्तमान स्थितियो में उत्पन्न आर्थिक बोझ को कम किया जाए।

स्टूडेंट्स की एक मुख्य चिंता की बात यह भी है कि परीक्षाएं अगर ऑनलाइन होती हैं, तो बहुत सारे स्टूडेंट परीक्षा देने से वंचित रह जाएंगे। ग्रामीण क्षेत्रो में हाई स्पीड इंटरनेट कनेक्टिविटी, बिजली, संसाधनों की समस्याएं हैं और बाढ़ ने स्थिति को और भी बिगाड़ दिया है। ऐसे में, छात्रों की मांग है कि परीक्षाएं ना ली जाए।

भूख हड़ताल पर बैठे स्टूडेंट्स का क्या है कहना?

छात्रों की इन्हीं चिंताओं और मांगो के साथ इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र भूख हड़ताल पर बैठे हैं, भूख हड़ताल को पांच दिन हो चुके हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा छात्रों की सभी मांगो को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है। चीफ-प्रॉक्टर का कहना है कि यह मांगे नहीं मानी जा सकती है।

भूख हड़ताल पर बैठे छात्र सोनू यादव की तबियत बिगड़ चुकी है। भूख हड़ताल पर बैठे इन स्टूडेंट्स का रूटीन परीक्षण भी नहीं किया जा रहा है। इनमें से एक छात्र शैलेश पासवान जो आइसा के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष भी हैं, बताते हैं,

“हम लोग पिछले पांच दिनों से अपनी मांगों को लेकर भूख हड़ताल पर बैठे हुए हैं। हम अपनी मांगों से विश्वविद्यालय के कुलपति और चीफ प्रॉक्टर को अवगत करा चुके हैं। अभी तक कोई भी प्रशासनिक अधिकारी हमारी सुध लेने नहीं आया है। हमारे एक साथी सोनू यादव की तबीयत भी लगातार बिगड़ती जा रही है।”

वे आगे बताते हैं,

“हम प्रशासन से संपर्क करने की कोशिश भी कर रहे हैं लेकिन वे हमारा फोन भी नहीं उठा रहे हैं। विश्वविद्यालय का संवेदनहीन प्रशासन स्टूडेंट्स को मौत के मुंह में धकेल कर परीक्षा कराने पर आमदा है।”

स्टूडेंट्स की सभी समस्यायों को नज़रअंदाज़ करते हुए वर्तमान सरकार परीक्षा कराने की जिद पर तुली हुई है, यह बहुत ही शर्मनाक है।

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