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पटना हवाईअड्डे पर कभी भी हो सकता है कोझिकोड जैसा बड़ा हवाई हादसा

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गंतव्य नज़दीक आते ही जहाज के पायलट और केबिन क्रू लैंडिंग की तैयारियां शुरू कर देते हैं। यात्रियों को कुर्सी की पेटी यानी सीट बेल्ट बांध लेने की सलाह दी जाती है। यात्री खुशी-खुशी उस सलाह को मान लेते हैं, यह सोच कर कि ऐसा करेंगे तो लैंडिंग सुरक्षित रहेगी लेकिन कुछ मौकों पर ऐसा हो नहीं पाता है।

तमाम सुरक्षा उपायों के बावजूद जानें चली जाती है, साफ शब्दों में कहें, तो सिस्टम के खामियों केभेंट चढ़ जाती हैं। ऐसी खामियां जो ना यात्रियों के वश में होती हैं ना ही पायलट के। ऐसी ही एक खामी का शिकार बना एयर इंडिया एक्सप्रेस का  विमान IX-1344।

दुबई से कोझिकोड आ रहा यह बोइंग 737 विमान कोझिकोड के जिस रनवे पर क्रैश हुआ, वो टेबल-टॉप एयरपोर्टस के हिसाब से सुरक्षित की श्रेणी में नही था और बीते वर्षों में कई बार उड्डयन मंत्रालय को इस बाबत रिपोर्ट भी भेजी गई थी।

कितनी थी इस रनवे की लंबाई?

जवाब है तकरीबन 9000 फीट। ये ठीक-ठाक रनवे लेंथ है, बावजूद इसके इसे सुरक्षित नहीं माना गया लेकिन देश में कई और ऐसे एयरपोर्ट हैं जो सुरक्षा मानकों की अनदेखी के बावजूद ऑपरेशनल हैं और यात्रियों के ज़िन्दगी के लिए खतरा बने हुए हैं।

देश के ग्यारह सबसे खतरनाक यात्री हवाईअड्डों में से एक पटना का जयप्रकाश नारायण अंतराष्ट्रीय हवाईअड्डा है। देश के बीस सबसे व्यस्त हवाईअड्डों में से एक पटना एयरपोर्ट पर लैंडिंग स्पेस इतना कम है कि यहां उतरने वाले विमान तेज़ ब्रेक लगने की वजह से थरथराते हैं।

पटना हवाईअड्डे की स्ट्रक्चरल खामियों को जानने के पहले हम इसके रनवे की लंबाई की बात कर लेते हैं। यहां के लैंडिंग रनवे की कुल लम्बाई है 2072 मीटर यानी तकरीबन 6800 फुट।

अब इसमें से लैंडिंग के लिए उपलब्ध रनवे की बात करें, तो पूरब की ओर से आने वाले विमानों के लिए यह रह जाता है। 1938 मीटर यानी 6358 फुट और पश्चिम की ओर से आने वाले विमानों के लिए 1677 मीटर यानी सिर्फ 5501 फुट है।

अंतरराष्ट्रीय मानक क्या कहते हैं?

आइए, अब नज़र डालते हैं कि अंतरराष्ट्रीय मानक क्या कहते हैं? अमेरिका के फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन के मुताबिक एयरबेस 320 या बोइंग 737 श्रेणी के विमानों के लिए रनवे की न्यूनतम लम्बाई 2300 मीटर होनी चाहिए यानी अगर आप पटना के हवाईअड्डे पर लैंड कर रहे हैं, तो आपका सुरक्षित उतर जाना आपके सौभाग्य और पायलट के सूझ-बूझ पर ही निर्भर करता है।

पटना हवाईअड्डा दरअसल घनी आबादी के बीच बसा है, इसके एक ओर संजय गांधी जैविक उद्यान के हज़ारों पेड़ हैं, तो दूसरी ओर फुलवारीशरीफ रेलवे स्टेशन। चिड़ियाघर के 3700 चिन्हित ऊंचे पेड़ों के अलावा फुलवारीशरीफ में बनी ऊंची इमारतें, मोबाइल टावर और रेलवे लाइन के साथ लगे बिजली के खम्भे लैंडिंग के लिए एक बड़ी चुनौती हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर

पटना हवाईअड्डे के आस-पास सचिवालय बिल्डिंग के 333 फीट ऊंचे क्लॉक टावर समेत कुल 101 ऐसे ऑब्स्ट्रक्शन हैं जो विमानों के लिए किसी भी वक्त खतरा बन सकते हैं।

यही नहीं पटना एयरपोर्ट से उड़ने वाले विमानों के लिए ‘बर्ड हिट’ भी एक बड़ा खतरा है, वजह है फुलवारीशरीफ और रेलवे लाइन के किनारे लगने वाली मांस-मछली की दुकानें। इन दुकानों की वजह से पक्षियों का झुंड एयरपोर्ट के आस-पास मंडराता रहता है।

कैसा है प्रशासन का रवैया?

इन तमाम समस्याओं को लेकर पटना जिला प्रशासन और एयरपोर्ट ऑथरिटी ऑफ इंडिया के बीच लगातार पत्र-व्यवहार होता रहा है लेकिन किसी समाधान की उम्मीद दूर-दूर तक कहीं नज़र नहीं आती है। ऐसे में यह मान लेना चाहिए कि जब तक वैकल्पिक एयरपोर्ट के रूप में बिहटा हवाईअड्डा परिचालन को तैयार नहीं हो जाता, बिहार के हवाई यात्रियों की सुरक्षा भाग्य-भरोसे ही है।

जुलाई, 2000 में एलायंस एयर की कोलकाता-दिल्ली फ्लाइट संख्या 7412 पटना एयरपोर्ट पर ब्रीफ लैंडिंग के दौरान कुछ पेड़ों से टकराकर रिहायशी इलाके में क्रैश लैंड हो गई।

इस घटना में दोनों पायलट, सभी चार केबिन क्रू और 52 में से 49 यात्रियों की दुःखद मृत्य हो गई, साथ ही जहाज के जलते मलबे में दब कर 6 अन्य लोगों की जान चली गई। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी लेकिन उससे भी दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि हमने उस घटना से कोई सबक नहीं सीखा।

पटना हवाईअड्डा अब भी हर रोज़ एलायन्स एयर जैसी घटनाओं को निमंत्रण दे रहा है और ज़िम्मेदार लोग आज भी शायद किसी बड़ी घटना के इंतज़ार में हाथ पर हाथ धरे बैठे हुए हैं।

अगली बार जब आपकी फ्लाइट पटना हवाई अड्डे पर लैंड करने वाली हो तब कुर्सी की पेटी और जोर से बांधियेगा।

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