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क्या गाली-गलौज और अश्लील दृश्यों के बिना अब फिल्म या वेब सीरीज़ अधूरे हैं?

पिछले दो-तीन दिनों से मैंने कुछ वेब सीरीज़ देखी हैं। इसे आप खाली समय का इस्तेमाल कह सकते हैं। इंसानी फितूर एक दिन में किसी सीरीज़ के एक के बाद एक सारे एपिसोड देख डाले।

वो क्या है ना सब्र कम हो पाता है जब कोई कहानी आपको पसंद आ जाती है, उसके सारे एपिसोड आपके सामने हो तब तो ऐसा और भी होता है। यह ऐसा ही होता है जैसे प्लेट में रखे आलू के पराठे को हम जल्दी-जल्दी खाना चाहते हैं।

ज़रूरी मुद्दों पर भी आ रहे हैं ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर कंटेंट

पंचायत, फ्लैश, ओवरटाइम, एनएच-10, डैमेज्ड, फ्लिप, बार कोड आदि उन सीरीज़ में से कुछ नाम हैं। नाम बहुत सोच समझकर छोटे, सटीक और आकर्षक रखे गए हैं। कहानी भी अच्छी और वास्तविक परिवेश में बनाई गई है। साथ ही साथ इन सीरीज़ों में जो मुद्दे उठाए गए हैं, वह भी काफी चर्चा में रहने वाले संवेदनशील मुद्दे हैं।

यह बेहद प्रेरक भी हैं और जानकर भी अच्छा लगा कि बड़े प्लेटफॉर्म तो ऐसी कहानियों को नहीं मिलते हैं लेकिन ओटीटी प्लेटफॉर्म, एयरटेल एक्सट्रीम, अमेज़ॉन प्राइम इत्यादि छोटे प्लेटफॉर्म ही सही पर इन्हें तरजीह दे रहे हैं। हालांकि ये प्लेटफॉर्म भी छोटे प्लेटफॉर्म नहीं हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर

ऑनर किलिंग, मानव तस्करी, भ्रष्टाचार, भिक्षा वृत्ति, मानसिक विकृति, अंधविश्वास, रेड लाइट एरिया के आस-पास जीवन व्यतीत करने की जद्दोज़हद करती महिलाओं और उनके जीवन की तकलीफों और समस्याओं के साथ ही विषम परिस्थितियों में जीवन हेतु जद्दोज़हद करती कहानियों को भी किसी निर्माता-निर्देशक ने भाव दिया।

इसी बहाने लॉकडाउन में कई कलाकारों को काम भी मिला, उनके अभिनय बड़े पर्दे के अभिनेताओं और अभिनेत्रियों से काफी अच्छा और वास्तविक-सा प्रतीत होता है।

इस समय जनसंख्या का बहुत बड़ा भाग ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से ही जुड़ा हुआ है। जिसमें बच्चे, किशोर-युवा, बुजुर्ग सभी सम्मिलित हैं। सोचने वाली बात यह है कि इन सभी वेब सीरीज़ में मुद्दे काफी अच्छे उठाए गए हैं लेकिन जहां अच्छाई है वहां बुराई ना हो, ऐसा हो ही नहीं सकता है, क्योंकि यह दोनों हमेशा साथ ही रहते हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर

क्या अश्लीलता और गाली-गलौज के बगैर नहीं बन सकती हैं वेब सीरीज़?

मुद्दे काफी अच्छे हैं। अभिनय भी काफी अच्छा किया गया है लेकिन दर्शकों को जोड़ने के लिए उत्तेजक दृश्यों, शब्दों, गाली-गलौज को बेतहाशा जगह दी गई है। जिन्हें बड़े पर्दे पर तथाकथित बीप के रूप में दर्शाया जाता है अथवा उस सीन को सेंसर कर दिया जाता है।

उदाहरण के तौर पर फ्लैश, डैमेज्ड, फ्लिप इनमें मानव तस्करी, मानसिक विकृति, अंधविश्वास, फोबिया (मेंटल डिसऑर्डर) इत्यादि को जगह दी गई है लेकिन अभद्र तथाकथित माँ-बहन की गालियों के साथ ही निर्बाध अश्लीलता भी परोसी गई है। अगर इन अश्लील दृश्यों और गाली-गलौज को ना भी रखा गया होता, तो भी यह बेहद उच्च कोटि में ही रहती।

मुद्दा यह है कि क्या दर्शकों को जोड़ने के लिए इस तरह के शब्दों, अभद्र-अश्लील दृश्य, गाली-गलौज आदि को परोसना ज़रूरी है? क्या बिना इस तरह के दृश्यों शब्दों के कोई फिल्म या वेब सीरीज़ नहीं चल सकती? क्या गलती निर्माता निर्देशकों की है या दर्शकों की? क्योंकि निर्माता-निर्देशक वहीं बनाना ज़्यादा पसंद करते हैं जिसकी डिमांड अर्थात्‌ मांग दर्शकों मे ज़्यादा होती है।

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