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सरकार और मीडिया के एजेंडे से गायब होता जा रहा है कोरोना महामारी का दंश

पाकिस्तान, चीन और फिर पाकिस्तान आजकल देश की राजनीति और मीडिया में यही कुछ चल रहा है। देश के आलाकामान भूल बैठे हैं कि शायद देश में कोरोना के दंश ने कितने ही लोगों को सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया है।

कितने ही युवाओं के भविष्य पर एक साल की रोक लगा दी है। सरकार के लिए भले ही यह रोक आम लगे पर उन युवाओं से पूछो जिनकी सालभर की मेहनत को इस महामारी के दंश ने बर्बाद कर दिया।

समाचारों से गायब होता कोरोना

सरकार नई-नई योजनाएं ला रही है कि वह भारत की आर्थिक व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कभी 20 लाख करोड़ के पैकेज का ऐलान करती है, तो कभी गरीब कल्याण योजना के तहत अक्टूबर महीने तक फ्री राशन का, मगर क्या वाकई में इन योजनाओं के तहत देश की जनता के आर्थिक हालात को पटरी पर लाया जा सकता है? क्योंकि हमें समाचारों में भी चीन की दखलअंदाज़ी और पाकिस्तान की बेइज़्जती ज़्यादा देखने को मिल रही है।

प्रतीकात्मक तस्वीर

कोरोना को जैसे लगभग देश की सरकार ने दरकिनार कर दिया है। वह उनके एजेंडे में रहकर भी नहीं है। इस माहामारी में जहां इंसान ने अपने जीवन की जमा-पूंजी को लगभग खत्म कर दिया है, उसी महामारी के लिए सरकार ने क्या ठोस कदम उठाए हैं? यह भारत में रोज़ आ रहे कोरोना के मामलों की संख्या से अंदाज़ा लगाया जा सकता है।

महामारी की जंग में राजधानी बनी मिसाल

पहले राजधानी पर इस महामारी की मार इतनी भयंकर थी कि वहां जुलाई आते-आते संक्रमित मरीज़ों की संख्या एक लाख के पार कर गई थी लेकिन वक्त रहते दिल्ली ने इंसानी जानों की कीमतों को जाना और पता लगाया कि आखिर किन कारणों से दिल्ली में मरीज़ों की संख्या इतनी हुई? और वक्त रहते उन पर काम भी किया।

इससे अन्य राज्यों को सबक लेने की ज़रूरत थी लेकिन अन्य राज्यों में कोरोना से लड़ने की जगह सत्ता की कुर्सी को लेकर बहस चल रही थी और वर्तमान राज्यों में चुनावों पर ज़ोर था और जिस पर ज़ोर नहीं था वह था कोरोना महामारी।

क्या सराकर के पास हैं इन सवालों को जवाब? 

कोरोना के कारण भारत ने करीब तीन महीने की तालाबंदी देखी है जिसका नतीजा सरकारों के पास है कि लाखों युवा नौकरी गवा चुके हैं और आगे भी हालात खराब ही है।

सरकारें सिर्फ पन्नों पर और पोर्टलों पर उन्हें नौकरी मुहैया करवा रही हैं और आने वाले वक्त में खुद के लिए सत्ता में रहने के लिए पांच साल को पक्का करवा रहीं है, मगर इन सरकारों से एक आम आदमी अगर पूछे, तो क्या उसे अपने सवालों का जवाब मिलेगा?

उसके भविष्य के एक साल को क्या सरकार वापस दे पाएंगी? उसकी नौकरी और बरसों की जमापूंजी को सरकार लौटा पाएगी? कारोबार को चौपट होने से बचा पाएगी या यह निश्चित कर पाएगी कि जिन सुविधाओं की घोषणा वह आए दिन करती है, क्या वह वाकई में सबको सामान रुप से मिल पा रही हैं?

क्या सरकार के इन सवालों का जवाब है। मैं एक आम नागरिक होने के नाते सरकार से यही पूछती हूं कि क्या चीन और पाकिस्तान रात में भूखे सो रहे बच्चों का पेट भरेंगे या नौकरी पेशा इंसान की गई नौकरी को वापस लाएंगे? 

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