एक तरफ जहां बिहार बाढ़, बेरोज़गारी, पलायन और कोरोना संक्रमण आदि से जूझ रहा है, वहीं दूसरी ओर विधानसभा चुनाव की तैयारियां भी ज़ोरों पर है। बिहार लौटे प्रवासी मज़दूर सरकार से पूछ रहे हैं कि क्या हमें राज्य में रोज़गार मिल पाएगा?
वहीं, कोरोना के बढ़ते संक्रमण के बीच खराब चिकित्सा व्यवस्था और बाढ़ की वीभिषिका शायद सरकारी दावों की पोल खोल रही है। ऐसे में यह भी समझना ज़रूरी है कि क्या पॉलिसी मेकर्स और आम लोगों के बीच संवाद स्थापित हो पा रहा है?
अक्टूबर में बिहार विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और बेहद ज़रूरी है कि बिहार के वे मुद्दे जिनसे आम लोगों को फर्क पड़ता है, उन पर ना सिर्फ बात होनी चाहिए, बल्कि ज़मीनी स्तर पर स्थितियां बदलने की भी ज़रूरत है।
संक्रमण के दौर में यह भी सोचना ज़रूरी है कि एक तरफ जहां बेरज़गारी बड़ी समस्या के तौर पर उभर रही है, वहीं क्या राज्य युवाओं को यह आस्वस्थ करा पाने में सक्षम है कि अपस्किलिंग के ज़रिये चीज़ें ठीक हो जाएंगी?
ट्विटर इंडिया और Youth Ki Awaaz की साझेदारी में आयोजित #DemocracyAdda के बिहार एडिशन में बिहार चुनाव से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर युवाओं ने राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के साथ खुलकर की बात।
#DemocracyAdda के ज़रिये युवाओं और नीति निर्माताओं के बीच संपर्क साधने की कोशिश
बीते कुछ सालों में हमने देखा कि मेनस्ट्रीम मीडिया में जो भी बहसें हुई हैं, उनमें युवाओं के मुद्दों को नज़रअंदाज़ किया गया है। ऐसे में Democracy Adda एक मंच है, युवाओं और नीति निर्माताओं के बीच संवाद स्थापित करने का।
#DemocracyAdda के मौजूदा संस्करण में हमने बिहार के कुछ ज़रूरी मुद्दों को उठाया, जिसमें भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रवक्ता गुरु प्रकाश, राष्ट्रीय जनता दल के प्रवक्ता मनोज झा, इंडियन यूथ काँग्रेस के राष्ट्रीय सचिव अमरीश रंजन पांडेय और जनता दल यूनाइटेड के प्रवक्ता निखिल मंडल शामिल थे। लाइव पैनल को मॉरडेट कर रही थीं RJ अंजली सिंह।
आइए नज़र डालते हैं उन महत्वपूर्ण बातों पर जिन पर चर्चा के दौरान इन राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों ने बात की। साथ ही बिहार के युवाओं ने भी अपनी समस्याएं इनके समक्ष रखी।
क्या कोरोना संक्रमण के बीच बिहार में चुनाव कराना ठीक है?
“यह पूरी तरह से चुनाव आयोग पर निर्भर करता है कि चुनाव होना चाहिए या नहीं मगर एक बात तो तय है कि यदि चुनाव होते हैं, तो संक्रमण ना फैले, इस लिहाज़ से एहतियात भरे सारे इंतज़ाम किए जाने चाहिए।” उक्त बातें जनता दल यूनाइटेड के प्रवक्ता निखिल मंडल ने कही।
बहरहाल, यह अच्छी बात है कि राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि एहतियात की बात कर रहे हैं मगर संक्रमण के इस दौर में यह जानना-समझना भी ज़रूरी है कि क्या वाकई में जिन लोगों का जीवन बाढ़ से प्रभावित हुआ है या महामारी ने जिनके रोज़गार और रोज़मर्रा के जीवन को प्रभावित किया है, उनके लिए एहतियात भरे कदम के कोई मायने हैं?
गौरतलब है कि कोरोना संक्रमण के बीच बिहार एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां चुनाव होने हैं। इससे पहले कि तमाम पार्टियां पूरी तरह से चुनावी मैदान में कूद जाएं, बेहद ज़रूरी है बिहार से जुड़े ज़रूरी मुद्दों पर बात करना। ऑनलाइन कैंपेन्स के ज़रिये वोटरों को लुभाने का काम जारी है मगर क्या तमाम वोटर्स अपनी बात नीति निर्मातओं तक पहुंचा पा रहे हैं?
प्रवासी मज़दूरों की समस्याओं पर क्या बात हुई?
“प्रवासी मज़दूरों की समस्याओं पर हममें से किसी ने भी अपनी आवाज़ बुलंद करने का काम नहीं किया। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि किसकी सरकार बनती है मगर जनता के मुद्दों को कतई दरकिनार नहीं किया जाना चाहिए।” राष्ट्रीय जनता दल के प्रवक्ता मनोज झा ने ये बातें कहीं।
कोरोना संक्रमण के दौर में लगभग 20 लाख प्रवासी मज़दूरों को पैदल अपने घर तक का सफर तय करना पड़ा। गौरतलब है कि जब बिहार का बेरोज़गारी दर ही 46.6 प्रतिशत हो, तो विभिन्न राज्यों से आने वाले प्रवासी मज़दूरों के भविष्य को लेकर क्या ही कहा जा सकता है।
अभी हाल ही में बिहार सरकार ने अपने घर लौटे दो लाख प्रवासी मज़दूरों के नाम मतदाता सूचि में शामिल किया है। ऐसे में क्या बिहार सरकार इस बात को लेकर उन मज़दूरों को विश्वास दिला पाएगी कि उनके मुद्दे भी इस चुनाव में सरकार के लिए उतने ही मायने हैं, जितने कि अन्य मुद्दे हैं।
As #COVID19 worsens employment and employability for young India, join #DemocracyAdda to talk about issues that need to take center stage ahead of the Bihar assembly elections: https://t.co/CPtyH43JLu https://t.co/xn1f14TZzq
— Youth Ki Awaaz (@YouthKiAwaaz) August 20, 2020
इन सबके बीच भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रवक्ता गुरु प्रकाश ने कहा, “प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत घर लौटे प्रवासी मज़दूरों को 125 दिनों का रोज़गार दिया गया है। प्रधानमंत्री जन-धन योजना के तहत बिहार की 2 करोड़ 38 लाख महिलाओं के खाते में तीन महीने तक एक निश्चित रकम भेजी गई है। वहीं, 60 लाख किसानों के खाते में 1200 करोड़ रुपये भेजे जा चुके हैं। सरकार ने अपनी क्षमता के हिसाब से सब कुछ किया है।”
बहरहाल, ये तो हुई सरकारी दावों की बात मगर क्या आंकड़ों के ज़रिये ही मज़दूर वर्ग की तमाम समस्याओं को साधने की कोशिश सही है? क्या सरकार को रोज़गार के नए अवसर नहीं पैदा करने चाहिए? क्या बिहार के तमाम उद्योगों को फिर से मज़बूत करने की ज़रूरत नहीं है? क्या बंद पड़ी फैक्ट्रियों पर सरकार को विचार करने की ज़रूरत नहीं है? शायद बिहार की अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने के लिए इन चीज़ों पर सरकार का ध्यान जाना बेहद ज़रूरी है।
“बिहार सिर्फ औद्योगिकरण के मामले में ही पीछे नहीं है, शिक्षा और रोज़गार के मामले में भी यह फिसड्डी है। प्रवासी मज़दूरों की समस्याओं ने तो बस सरकार की कलई खोलने का काम किया है। नीतीश कुमार बिहार में 15 सालों से सत्ता में हैं मगर उनमें मुद्दों को लेकर राजनीतिक इच्छाशक्ति ही नहीं है। सरकार ने उद्योग-धंधों को फलने-फूलने का कोई वातावरण ही नहीं दिया।” उक्त बातें इंडियन यूथ काँग्रेस के राष्ट्रीय सचिव अमरीश पांडेय ने कहीं।
बहरहाल, सरकार ने यह दावा किया था कि बिहार में मई महीने से लेकर अब तक लगभग 20 लाख मज़दूरों की स्किल मैपिंग की गई थी मगर ज़मीनी स्तर पर देखें तो बदलाव नज़र नहीं आता है।
बात शिक्षा व्यवस्था की
चर्चा के दौरान Youth Ki Awaaz यूज़र सौम्या ज्योत्स्ना ने बिहार की यूनिवर्सिटिज़ में सेशन देरी को लेकर पैनलिस्टों से सवाल करते हुए कहा कि सरकार के पास इस मुद्दे को हल करने के लिए क्या प्लान है?
जनता दल यूनाइटेड के प्रवक्ता निखिल मंडल ने कहा, “सरकार ने इस दिशा में कई कदम उठाए हैं और आज की तारीख में स्थितियां पहले से बेहतर हैं। साल 2005 से लेकर अब तक बिहार में 15,613 विद्यायल खोले जा चुके हैं। यहां तक कि गरीब तबके के स्टूडेंट्स को सरकार स्कॉलरशिप भी प्रदान करती है।”
गौरतलब है कि बिहार सरकार ने शिक्षा पर खर्च होने वाली राशि में 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी की है। शिक्षा पर सर्वाधिक राशि आवंटित करने के मामले में बिहार दूसरे नंबर पर है। नीति आयोग की रिपोर्ट 2019 के मुताबिक, स्कूल एजुकेशन क्वालिटी इंडेक्स के मामले में 20 राज्यों की सूचि में बिहार को 19वां स्थान प्राप्त हुआ था।
ऐसे में शायद यह कहना गलत नहीं होगा कि शिक्षा पर सर्वाधिक बजट जारी करने से शिक्षा संबंधित ज़रूरतों की पूर्ति हो जाएगी। वहीं, जब बिहार में प्रशिक्षित शिक्षकों की बात आती है तो केवल 52 प्रतिशत शिक्षक ही पेशेवर तौर पर प्रशिक्षित हैं।
शिक्षा की नींंव पर ही किसी राज्य की बुलंद इमारत खड़ी होती है। बड़ी चुनौती इसी नींव को मजबूत करने की है।https://t.co/FWzjCnld0C#AwaazUthao #democracyadda #BiharElection2020 @TwitterIndia @YouthKiAwaaz @YKAHindi pic.twitter.com/iI3Ijl15UI
— Rachna Priyadarshini (@p_rachna) August 19, 2020
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— Youth Ki Awaaz (@YouthKiAwaaz) August 20, 2020
“हमारी चिंता यह नहीं होनी चाहिए कि चुनाव में कौन जीतेगा? बल्कि चर्चा का विषय यह हो कि शिक्षा में क्या बड़े बदलाव किए जाएं? बीते कुछ सालों में बिहार की यूनिवर्सिटीज़ की हालत यह रही है कि यहां सिर्फ परिक्षाएं संचालित होती हैं। हमें तुरन्त बदलाव के बारे में सोचना होगा। एक-दूसरे पर जो हमलोग आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति करते हैं, उससे किसी का कोई फायदा नहीं है।” उक्त बातें राष्ट्रीय जनता दल के प्रवक्ता मनोज जा ने कहीं।
वहीं, इंडियन यूथ काँग्रेस के राष्ट्रीय सचिव अमरिश रंजन कहते हैं, “चाहे गरीबी रेखा सूचकांक की बात की जाए या शिक्षा के पैमानों की, बिहार का स्थान हमेशा अंतिम या उसके बस एक कदम उपर ही रहता है। बिहार में स्थिति यह है कि सांप काटने के कारण बच्चों की मौत हो जाती है और हमारे पास स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर वैक्सीन तक नहीं होता है। सड़कों की हालत ऐसी है कि महज़ 10 किलोमीटर की दूरी तय करने में 45 मिनट लग जाता है। हमारे पास स्कूलों में ना तो पर्याप्त कक्षाएं हैं और ना ही शिक्षक। हमें इस बात को स्वीकार करना होगा कि जब हम विकास की बात करते हैं तो उसका क्या मतलब है? देशभर से बिहार आए प्रवासी मज़दूरों ने सूबे की असली तस्वीर को दिखाने का काम किया है।”
बात बाढ़ की
बिहार से Youth Ki Awaaz यूज़र, अंशु कुमार ने बाढ़ के मसले पर चर्चा में मौजूद पैनलिस्टों से पूछा, “बिहार में हर साल बाढ़ आता है। ऐसे में इसके समाधान के तौर पर क्या कदम उठाए जाने चाहिए?”
खैर, इस मसले पर अंशु कुमार का सवाल इसलिए भी जायज़ लगता है, क्योंकि बिहार ने इस मुद्दे के साथ अब शायद जीना सीख लिया है। क्या यह मानकर चला जाए कि राजनीनिक इच्छाशक्ति ही खत्म हो चुकी है? अभी कुछ महीनों पहले हमने देखा कि खासकर पटना में जलजमाव के कारण लोगों की किस हद तक परेशानियां झेलनी पड़ी थीं।
जनता दल यूनाइटेड के प्रवक्ता निखिल मंडल, अंशु कुमार के सवाल का जवाब देते हुए कहते हैं, “राज्य में अधिकांश इलाके बाढ़ से प्रभावित हैं। सरकार ने बाढ़ से प्रभावित लोगों की मदद के लिए काफी कुछ किया है। अभी तक सरकार ने 8 लाख लोगों को अनाज के साथ-साथ कई प्रकार से वित्तीय सहायता करने का काम किया है।”
इसी मसले पर बात करते हुए राष्ट्रीय जनता दल के प्रवक्ता मनोज झा कहते हैं, “मैं मानता हूं इस साल बाढ़ को लेकर काफी मुश्किल हालात हैं। ऐसा लगता है कि कोरोना और बाढ़ से निपटने की सरकार की तैयारी पूरी तरह से बीमार थी। या तो सरकार तैयार नहीं थी या सरकार ने तैयारी के बारे में सोचा ही नहीं।”
कहां हैं बिहार के तमाम युवा नेता?
भारत के युवाओं को चुनावी राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाने की ज़रूरत है ताकि नीति निर्माण की प्रक्रिया में उनकी भी अहम भूमिका हो।
ऐसे में बेहद ज़रूरी है कि हम इस बारे में विचार करना शुरू करें कि कैसे राजनीति युवाओं के लिए सहज हो। क्या वाकई में ज़मीनी स्तर के युवाओं में राजनीति को लेकर दिलचस्पी है? बिहार के राजनीतिक परिदृश्य में युवाओं की भागीदारी कैसे बढ़े, इस बारे में हमें सोचने की ज़रूरत है।
भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रवक्ता गुरु प्रकाश कहते हैं, “ऐसा ना हो कि राजनीति में सिर्फ प्रिविलेज़्ड लोगों को ही एंट्री मिले और युवाओं के लिए कोई भी मौका ना बचे। बेहद ज़रूरी है हम वंशवाद को बढ़ावा देने वाली राजनीति से दूर होकर युवाओं के लिए अवसर तैयार करें।”
बहरहाल, भारत जैसे युवा देश में जब राजनीति में युवाओं की भागीदारी की बात आती है, तो स्थितियां हैरान करने वाली होती हैं। जब मौजूदा राजनीति में युवाओं की भागीदारी ही कम है, ऐसे में हम कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि उनके मुद्दों को सही तरीके से उठाया जाएगा।
यहां देखिए पूरा लाइव डिस्कशन
हम बिहार चुनाव के मद्देनज़र उन मुद्दों को लगातार उठाते रहेंगे जिनसे बिहार के लोगों और खासकर युवाओं को फर्क पड़ता है। आइए हम और आप मिलकर एक समृद्ध बिहार की नींव रखें।