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जिन बच्चों की माँ सेक्स वर्कर होती हैं, उनकी ज़िंदगी कैसी होती है

World Day Against Child Labour

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साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, भारत में 5 वर्ष से 14 वर्ष के बीच की उम्र में बाल मज़दूरी करने वाले बच्चों की सख्या एक करोड़ है। राज्यवार आंकड़ों की बात की जाए तो, बाल मज़दूरी करने वाले कुल बच्चों में सर्वाधिक 21 प्रतिशत बच्चे यूपी में हैं।

वहीं, बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश क्रमश: दूसरे, तीसरे और चौथे नंबर पर हैं। भारत में जब भी बाल मज़दूरी की बात होती है, तो हर समुदाय के बच्चों की बात की जाती है मगर सेक्स वर्कर्स कम्यूनिटी के बच्चों को नज़रअंदाज़ किया जाता है।

ये वो कम्यूनिटी है जो सेक्स वर्क के पेशे से दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कर अपने परिवार या बच्चों का पेट पालती है मगर देशव्यापी लॉकडाउन के बाद उत्पन्न आर्थिक चुनौतियों के बीच इन्हें आजिविका के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।

ऑल इंडिया नेटवर्क ऑफ सेक्स वर्कर्स की प्रेसिडेंट कुसुम का कहना है कि सेक्स वर्कर्स की कम्यूनिटी को लॉकडाउन के दौरान ना सिर्फ आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, बल्कि सामाजिक मोर्चे पर भी वे संघर्ष कर रही हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Getty Images

कुसुम कहती हैं, “यदि दिल्ली की जीबी रोड की बात की जाए तो वहां आने वाले ज़्यादातर ग्राहकों में मज़दूर तबके के लोग होते हैं, जो लॉकडाउन के बाद अपने-अपने राज्य वापस चले गए हैं। वे एक ऐसी अनिश्चितता के साथ गए हैं कि उनका कुछ माह में वापस आना तो मुश्किल ही लगता है। ऐसे में बहुत अधिक संभावनाएं हैं कि सेक्स वर्कर्स के बच्चे बाल मज़दूरी में उतर जाएं।”

सेक्स वर्कर्स के बच्चों के साथ बाल मज़दूरी के दौरान होने वाली हिंसा पर बात करते हुए कुसुम कहती हैं, “सेक्स वर्कर्स के बच्चों को ना सिर्फ बाल मज़दूरी के दौरान हिंसा का सामना करना पड़ता है, बल्कि स्कूलों में भी उन्हें सामाजिक भेदभाव से दो-चार होना पड़ता है।”

वहीं, ऑल इंडिया नेटवर्क ऑफ सेक्स वर्कर्स की सदस्य सलमा का कहना है कि अजमेर में अधिकांश सेक्स वर्कर्स के बच्चे बाल मज़दूरी करते हैं, जिनके साथ परत-दर-परद हिंसात्मक घटनाएं होती हैं। कहीं पर चाय की दुकान में काम करने वाले सेक्स वर्कर्स के बच्चों द्वारा कांच की ग्लास फूट जाने से बुरी तरह उनकी पिटाई कर दी जाती है, तो कई जगहों पर उन बच्चों पर चोरी का आरोप लगा दिया जाता है।

फातिमा के बच्चे को बाल मज़दूरी के दौरान पीटा जाता था

फातिमा, अजमेर में रहकर बीते कई वर्षों से सेक्स वर्क के पेशे में हैं। फातिमा के पति के इंतकाल के बाद साढ़े चार महीने तक उन्हें घर पर रहना पड़ा। फातिमा बताती हैं कि मुस्लिम कम्यूनिटी में पति के इंतकाल के बाद हमें साढ़े चार महीने तक अकेले बंद कमरे में रहना पड़ता है।

इस दौरान फातिमा का सेक्स वर्क का काम पूरी तरह से ठप्प हो गया जिस कारण उन्हें 10 साल के बच्चे को चाय की दुकान पर काम के लिए भेजना पड़ा। फातिमा बताती हैं कि उनके बच्चे को चाय की दुकान पर 20 रुपये रोज़ मिलते थे मगर वहां के लोग लगातार उसे परेशान करते थे।

फातिमा कहती हैं, “मेरा बेटा अगर चाय पहुंचाकर देर से दुकान पर लौटता था तो चाय वाला ना उसे सिर्फ डांटता था, बल्कि मारपीट भी करता था। कभी गलती से बेटे से ग्लास टूट जाने पर पांच रुपये काट लिया जाता था।”

फातिमा बताती हैं, “मेरा बेटा रोज़ शाम को आकर कहता था कि माँ अब काम पर जाने का मन नहीं करता है, क्योंकि लोग मुझे यह कहकर डराते हैं कि पुलिस को बुलाऊं क्या?”

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Getty Images

सेक्स वर्क के पेशे में कैसे आना हुआ, इस बारे में पूछने पर फातिमा कहती हैं कि ठेकेदारों ने कई दफा ज़बरदस्ती मुझसे सेक्स वर्क का काम कराया फिर जब पति बीमार पड़ गए तो इस काम के अलावा कोई और रास्ता नहीं था। सात साल पहले जब मेरे जीजा को पता चला कि मैं सेक्स वर्कर हूं, तो उन्होंने मुझे बहुत मारा और घर से निकाल दिया।

फातिमा आगे बताती हैं, “फिर मैं बच्चों को लेकर रेल की पटरी पर जान देने चली गई। एक सेक्स वर्कर दीदी, सलमा ने हमें रेल की पटरी से अपने घर लाया मगर उस रोज़ के बाद मैं कभी ससुराल नहीं गई।”

एक सेक्स वर्कर के तौर पर फातिमा को ज़िन्दगी के हर मोड़ पर हिंसा और शोषण का सामना करना पड़ रहा है। अभी लॉकडाउन के दौरान छोटे बच्चे को बाहर काम करने के लिए भेजना पड़ रहा है। फातिमा जिस मुहल्ले में रहती हैं, वहां के लोगों ने कई दफा उनके साथ मारपीट की है।

एक घटना का ज़िक्र करते हुए फातिमा बताती हैं कि एक बार मुहल्ले के लोगों को पता चल गया कि मैं सेक्स वर्कर हूं, तो मेरे घर के सामानों को उन लोगों ने बाहर फेंक दिया। कुछ महिलाओं ने अंदर आकर मुझे बुरी तरह से पीटा।

रानी के बेटे को माँ के सेक्स वर्क के पेशे के नाम पर ज़लील किया जाता है

अजमेर की ही एक सेक्स वर्कर रानी कहती हैं, “बाल मज़दूरी के दौरान मेरे बच्चे से जब कोई गलती हो जाती है तो उसे लात मारकर ऊपर से गिरा दिया जाता है। गंदी-गंदी गालियां दी जाती हैं। शोषण से परेशान होकर काम छोड़ देने पर उस पर चोरी का इल्ज़ाम लगा दिया जाता है।”

रानी बताती हैं, “मेरा पति मुझे छोड़कर चला गया है। लॉकडाउन के बाद उत्पन्न हालातों में हमारा सेक्स वर्क का काम पूरी तरह से बंद है। ऐसे में मेरा बेटा सब्ज़ी बेचने जाता था, तो लोग ताने मारते हुए कहते थे कि माँ तो इतना कमाती है फिर बेटे को काम करने की ज़रूरत क्यों पड़ गई?”

रेशमा के आठ साल के बेटे को करनी पड़ रही है बाल मज़दूरी

रेशमा का पति सुबह से लेकर शाम तक शराब के नशे में रहता है। लॉकडाउन के बाद से उसने काम पर जाना भी बंद कर दिया है। ऐसे में वो रेशमा को भी घर से बाहर नहीं जाने देता है।

इन हालातों के बीच रेशमा अपने 10 साल के और एक 8 साल के बेटे को फल बेचने भेजती हैं, जो दिनभर कमाकर 300 रुपये लेकर घर आता है, तो किसी तरह से दो वक्त की रोटी का जुगाड़ होता है। रेशमा की एक 6 साल की और एक 12 साल की लड़की भी है, जो घर पर रहती है।

फरज़ाना की बेटी बेचती हैं खरबूज़

फरज़ाना अजमेर के ही इलाके में सेक्स वर्क का काम करती हैं। इन दिनों फरज़ाना का काम बिल्कुल ठप्प है जिस कारण ठेला लेकर उनकी बेटी को खरबूज़ बेचने जाना पड़ता है।

फरज़ाना बताती हैं कि रास्ते में बेटी पर कई लोग तंज कसते हुए कहते हैं कि अब माँ ने बेटी से भी काम करना शुरू कर दिया क्या? इतने पैसे तो माँ कमाती है।

हमने सेक्स वर्कर्स के बच्चों के साथ बाल मज़दूरी के दौरान होने वाले भेदभावों को इतना अधिक नॉर्मलाइज़ कर दिया है कि उनकी समस्याएं हमें साधारण लगती हैं। फरज़ाना, रेशमा, रानी और फातिमा की कहानियां तो महज़ राजस्थान के एक छोटे से हिस्से से हैं मगर देशभर में सेक्स वर्कर्स के बच्चों के साथ बाल मज़दूरी के दौरान होने वाली हिंसात्मक घटनाओं को रोकने और उन्हें रिहैबिलेट करने की कोई ठोस रणनीति शायद ही सरकारों के पास है।


संदर्भ- ILO

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