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महिलाओं को बराबरी का हक दिलाने की बात करती है फिल्म ‘गुंजन सक्सेना’

हाल ही में महिला समानता की दिशा में बड़ा फैसला लेते हुए सर्वोच्च अदालत ने महिलाओं को सेना के दस विभागों में महिलाओं को स्थायी कमीशन देने का आदेश जारी किया। सरकार को फटकार लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा,

“महिलाओं के लिए ऐसा नज़रिया मत रखिए। आपके पक्ष में लिंगभेद की बू आ रही है कि सेना के कई क्षेत्र है जहां महिलाएं काम करने में सक्षम नहीं होगी। ऐसा करना महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित करने के बराबर है। सेना में समानता के लिए नज़रिया बदलना होगा।”

कोर्ट ने आगे कहा, “महिलाओं को सीमित क्षेत्र तक रखेंगे तो उनकी पदोन्नति पर असर पड़ेगा और संभव है कि वो कर्नल रैंक से आगे नहीं बढ़ पाएंगी। इसी को देखते हुए महिलाओं को भी पुरुषों के बराबर कमान पोस्ट भी संभालने की ज़िम्मेदारी दें, जिससे वे अपने काम के दम पर उच्च पदों पर पहुंच सके।”

फिल्म गुंजन सक्सेना: द कारगिल गर्ल

जान्हवी कपूर की फिल्म गुंजन सक्सेना: द कारगिल गर्ल का ट्रेलर रिलीज हो गया है, जिसमें भारत की पहली महिला पायलट के हौसले, ज़ज्बे और संघर्ष के साथ ही कारगिल जंग की झलक देखने को मिल रही है।

फिल्म गुंजन सक्सेना का एक दृश्य, तस्वीर साभार: सोशल मीडिया

साथ में यह भी दिखाया गया है कि महिलाएं सेना में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें। इसके लिए उनकी जंग घर से ही शुरू हो जाती है। घर के तनाव भरे महौल में अगर मौका मिल भी जाता है, तो समाज और संस्थाओं का ताना और रिजेक्शन का संघर्ष शुरू हो जाता है।

इन सारी बाधाओं को पार करके वह अगर सेना के किसी भी अंग में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर भी लेती है, तब शुरू होती है फोर्स के अंदर खुद को साबित करने और आने वाली पीढियों के लिए मिसाल बनने की जंग। यह फिल्म और सर्वोच्च अदालत का हाल ही का फैसला भारतीय सेना में महिलाओं के लिए एक बड़ा हौसला देने का काम करेगा।

गुंजन सक्सेना: द कारगिल गर्ल फिल्म के कुछ संवाद

“अगर एयरफोर्स ज्वाइन करना है, तो फौजी बनकर दिखाओ या घर पर जाकर बेलन चलाओ।”

“हमारी ज़िम्मेदारी है देश की रक्षा करना, महिलाओं को बराबरी का मौका देना नहीं।”

“लड़कियां पायलट नहीं बनती, तुम कमज़ोर हो गुंजन और डिफेंस में कमज़ोरी के लिए कोई जगह नहीं।”

तस्वीर साभार: सोशल मीडिया

यह सारे संवाद बता देते हैं कि सेना के अंदाज़ में कितना मर्दानापन है और इस मर्दानापन पर सेना गर्व भी करती है। मर्दानापन भरे माहौल में पितृसत्तात्मक संरचना में महिलाओं के साथ नरमी बिल्कुल ही नहीं की जा सकती है।

लेकिन महिलाओं के साथ पुरुष कैडेट के समान व्यवहार की उम्मीद तो की ही जा सकती है। जब शुरूआत में ही मान लिया जाए कि महिलाएं कमज़ोर है तो समानता का व्यवहार तो दूर की बात है। वैसे इन सारे हौसले तोड़ देने वाले डॉयलाग में एक शानदार डायलाग यह भी है,

“प्लेन लड़का उड़ाए या लड़की उसे पायलट ही कहते हैं।”

पुरुष के मुकाबले महिला को कम आंकना सिर्फ मानसिक विकार है

देश की रक्षा के लिए किसी भी तरह का समझौता नहीं किया जा सकता है, इसमें कोई दो राय नहीं है लेकिन महिला फोर्स का हिस्सा बन जाए तो देश की सुरक्षा से समझौता हो जाएगा, यह स्वीकार्य करने जैसी बात नहीं लगती है।

तनाव और चुनौतियों के महौल में महिला हो या पुरुष दोनों की मानसिक स्थिति एक ही तरह की होती है। इस बात को कितने ही शोधों ने साबित किया है। दूसरी बात यह भी है कि महिलाएं भारत की ही नहीं विश्व के कई देशों में सेना का अंग है और वह सब काम कर रही है जो पुरुष करते हैं।

उसके बाद भी महिलाओं की क्षमता को पुरुषों से कम मानना, सिर्फ पुरुषवादी दंभ है और कुछ नहीं। सेना अपने अंदर का यह दंभ कब बदल पाएगी, यह कहना मुश्किल है लेकिन सेना में महिलाएं इस दंभ से खौफ खाकर पीछे नहीं हटेगी, यह भी तय है।

प्रतीकात्मक तस्वीर, तस्वीर साभार: सोशल मीडिया

सिनेमा घरों के बंद होने के कारण जाहिर-सी बात है कि देश गुंजन सक्सेना पर बनी कहानी को नेटफिलिक्स पर ही देखेगा। साथ-ही-साथ वायुसेना की पहली महिला पायलट के जज़्बे को सलाम भी करेगा।

इस फिल्म को देखते हुए इतना याद रखें कि गुंजन सक्सेना ने अपने जज़्बे के लिए आपसे सलामी पाने के लिए अपना पसीना किसी पुरुष से कम नहीं बहाया होगा।

इतना ज़रूर हुआ होगा कि महिलाएं कमज़ोर होती हैं, इस मान्यता के नाम पर उनको कई बार भेदभाव और मानसिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा होगा, जिसका सामना ज़ाहिर-सी बात है सेना में कोई पुरुष तो नहीं ही करता होगा।

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