दिन 15 अगस्त 2020, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लाल किले पर 7वीं बार तिरंगा फहराया। लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री ने अपने 86 मिनट के भाषण में आत्मनिर्भर, आत्मनिर्भर भारत, कोरोना संकट, आतंकवाद, रिफॉर्म, मध्यमवर्ग और कश्मीर जैसे मुद्दों पर बात की।
इन सबके बीच प्रधानमंत्री मोदी ने एक और खास बात कही कि ‘हम बेटियों की शादी की उम्र पर पुनः विचार करेंगे।’ पीएम मोदी ने बेटियों के लिए शादी की उम्र 18 वर्ष से 21 वर्ष करने पर विचार करने की बात कही है।
इससे पहले वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी बजट 2020 के अपने भाषण के दौरान शादी के लिए सही उम्र पर विचार करने का ज़िक्र किया था, जिसका मुख्य उद्देश्य मातृत्व मृत्युदर में कमी लाना है।
इस मामले की शुरुआत दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका से हुई थी। वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने एक याचिका दायर करके मांग की थी कि लड़कियों और लड़कों के लिए शादी की उम्र का कानूनी अंतर खत्म किया जाए।
याचिका को लेकर केन्द्र सरकार से जवाब भी मांगा गया था। जिसके बाद 2 जून 2020 को सांसद जया जेटली की अध्यक्षता में 10 सदस्यों की टास्क फोर्स का गठन किया गया, जो इस मामले में रिपोर्ट पेश करेगी।
2006 में लागू किया गया था बाल विवाह निषेध अधिनियम
यह पहली बार नहीं है जब लड़कियों के लिए शादी की सही उम्र को लेकर चर्चा की गई हो, इससे पहले भी साल 1978 में शारदा अधिनियम, 1929 में बदलाव कर लड़कियों की शादी की उम्र 14 वर्ष से बढ़ाकर 18 वर्ष की गई थी।
इसके बाद साल 2006 में शारदा अधिनियम को निरस्त कर बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 लागू किया गया। इस अधिनियम के तहत बाल विवाह करने वाले वयस्क पुरुष या बाल विवाह को संपन्न कराने वालों को 2 वर्ष के कठोर कारावास या एक लाख रूपए का जुर्माना या दोनों सज़ा से दंडित किया जा सकता है।
दूल्हा या दुल्हन बाल विवाह को रद्द कराने के लिए बालिग होने पर कोर्ट में आवेदन भी कर सकते हैं। साथ ही इस अधिनियम के अंतर्गत किए गए अपराध संज्ञेय और गैर-ज़मानती हैं।
भारत में क्या है शादी की सही उम्र?
गौरतलब है कि इंडियन क्रिश्चियन मैरिज एक्ट 1872, पारसी मैरिज एंड डिवोर्स एक्ट 1936, स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 और हिन्दू मैरिज एक्ट 1955 के अनुसार, शादी करने के लिए लड़के की उम्र 21 वर्ष लड़की की उम्र 18 वर्ष है।
यूनीसेफ के अनुसार, भारत में भारत में प्रत्येक वर्ष, 18 साल से कम उम्र में करीब 15 लाख लड़कियों की शादी होती है, जिसके कारण दुनिया की सबसे अधिक बाल वधुओं की संख्या भारत में है, जो विश्व की कुल संख्या का तीसरा भाग है।
भारत में 15 से 19 साल की उम्र की लगभग 16% लड़कियां शादीशुदा हैं। हालांकि साल 2005-2006 से 2015-2016 के दौरान 18 साल से पहले शादी करने वाली लड़कियों की संख्या 47% से घटकर 27 प्रतिशत रह गई है।
बाल विवाह ना सिर्फ लड़कियों के मूल अधिकारों का हनन है, बल्कि इससे उनको शारीरिक, मानसिक और सामाजिक परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है।
बाल विवाह के कारण लड़कियों की पढ़ाई छूट जाती है। उन्हें घरेलू-यौन हिंसा का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा 18 वर्ष या उससे कम उम्र में गर्भवती होने के कारण लड़कियों में मिसकैरेज, एचआईवी/एड्स, इंफेक्शन और प्रसव के समय मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है।
मातृत्व मृत्यु दर में पहले स्थान पर है असम
रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया के आंकड़ों के मुताबिक, असम में प्रसव के समय माँ की मृत्यु का आंकड़ा सबसे ज़्यादा है, जबकि उत्तर प्रदेश दूसरे और मध्य प्रदेश तीसरे स्थान पर है।
टॉप 3 राज्यों का क्रम 2014-16 के सर्वे के बाद से नहीं बदला है। 2015-17 में भारत की मातृ मृत्यु दर 122 थी, जो कि 2016-18 के बीच घटकर 113 पर आ गई है। संयुक्त राष्ट्र के हिसाब से निर्धारित समयकाल में प्रति एक लाख जन्म पर मातृ मृत्यु दर 70 से ज़्यादा नहीं होनी चाहिए।
शिशु मृत्यु दर में सबसे आगे है मध्य प्रदेश
वहीं, अगर शिशु मृत्यु दर की बात की जाए तो सैंपल रजिस्ट्रेशन सर्वे (एसआरएस) की साल 2020 में आई रिपोर्ट के अनुसार भारत में शिशु मृत्युदर 32 है। जिसमें मध्य प्रदेश में 48, उत्तर प्रदेश में 43, असम में 41, छत्तीसगढ़ में 41, ओडिशा में 40, राजस्थान में 37, बिहार में 32, उत्तराखंड में 31, हरियाणा में 30, झारखंड में 30 और आंध्र प्रदेश में शिशु मृत्युदर 29 है।
ऐसे में, अगर लड़कियों के लिए शादी की उम्र 18 से 21 वर्ष की जाती है, तो इससे ना सिर्फ लड़कियों की शिक्षा को बल मिलेगा, बल्कि मातृत्व मृत्यु दर व शिशु मृत्यु दर में भी कमी आएगी। हालांकि सरकार शादी की उम्र में क्या बदलाव करेगी, यह टास्क फोर्स की रिपोर्ट मिलने के बाद ही तय होगा।