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“उम्मीद है कोरोना के बाद हमारी ज़िंदगी एक बार फिर से पटरी पर लौटेगी”

सालों बाद घर जाने की एक अजीब-सी खुशी थी। पता चला कि लॉकडाउन में घर जाना होगा। टीवी पर कई दिनों से कोरोना के बारे में बताया जा रहा था। अपने बच्चों के बारे में सोचकर मम्मी-पापा परेशान थे कि बाहर जब लॉकडाउन लग जाएगा तो वह कैसे रहेगें? सामान कहां से और कैसे खरीदेंगे? क्योंकि बाहर आने-जाने वाले रास्तों पर लोगों की भीड़ होगी।

लॉकडाउन के एक दिन पहले ही पापा ने घर बुला लिया

बच्चे कोरोना के शिकार ना हो जाएं। इस डर से पापा ने सभी लोगों को लॉकडाउन के एक दिन पहले ही घर बुला लिया। कई बार निर्णय लेने में प्रॉब्लम हुई कि घर जाए या ना जाएं। यही सोचते-सोचते 2 बज चुके थे। गंगा-गोमती जा चुकी थी अब ट्रेन भी 4 बजे की थी, घर भी पहुंचते तो रात के 3 बजे तक। रात में चलना सेफ नहीं लगता। बहरहाल हम बस से देर रात तक घर पहुंचे, तब जाकर माँ-पापा के जान में जान आई।

पहली बार पूरा परिवार एक साथ था, सब खुश थे। सब कहते कि पहली बार हम लोग एक साथ घर में इकट्ठे हुए हैं। कोरोना के साथ-साथ हम सबका प्यार भी बढ़ता जा रहा है। माँ पहले से ज़्यादा खुश रहती हैं, क्योंकि उनके सभी बच्चे उनके पास हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर

माँ हमेशा कहतीं कि साथ जीएंगे, साथ मरेंगे। खैर, अब सब एक साथ है तो हर मुश्किल से लड़ लेंगे। पहली बार 40 लोगों का पूरा परिवार एक साथ है। साथ खाना, साथ ही सोना, हंसना-खेलना, सिलाई-कढ़ाई करना सीखना हर काम शुरू हो गया है।

मम्मी से हम लोगों ने सिलाई-कढ़ाई करना सीखा और पापा के साथ खेत का काम करना। हमने सीखा कैसे प्याज की खेती होती है। कैसे खीरा, करेला, ककड़ी, तारोई, कद्दू, मक्का, तरबूज़, भिंडी की खेती की जाती है। उनके साथ हर काम में हाथ बंटाना सीखा।

हमने जाना किसानों के परिश्रम को

इससे पता चला कि किसान कैसे और कितनी मेहनत से खेतों में सब्ज़ियों को उगाते हैं। कैसे वे तपती धूप में सूखी मिट्टी को खोद-खोद कर फसल उगाते हैं। तब जाकर वह अपने परिवार का पेट भर पाते हैं। बहरहाल माँ से इस वक्त जो प्यार-संस्कार सीखे वह शायद ही कभी सीख पाते। माँ ने सिखाया है कि इस मुश्किल घड़ी में कैसे सबको साथ लेकर चलना होता है।

प्रतीकात्मकत तस्वीर,  तस्वीर साभार: फ्लिकर

एक बड़े परिवार में जहां कमाई का ज़रिया सिर्फ फसल ही है, माँ इस कम कमाई में भी बड़े से परिवार का खर्च उठा लेती है। पूरा परिवार खुश भी रहता है और वह हमेशा सबको खुश रखने की संभव कोशिश भी करती हैं। साथ ही माँ परिवार, खेत की फसल के साथ-साथ घर में पले जानवरों का भी ख्याल रखती है।

खैर, लॉकडाउन में थोड़ी बहुत प्रॉब्लम तो होती रही है। कभी खाने के लिए सब्ज़ी नहीं मिली, तो कभी हमारे इलाके में खाने का नमक नहीं मिला। नमक मिला तो उसमें गंदगी मिली। ऐसे में, बड़ी मुश्किल से उससे काम चलाया जाता रहा है।

फिक्र में गुज़रते लॉकडाउन के दिन

इस समय मेरी पढ़ाई भी बहुत डिस्टर्ब हो रही है। यहां गाँव में बुक्स भी नहीं हैं कि पढ़ सकें। सिर्फ ऑनलाइन प्लेटफार्म्स का ही सहारा है। अगर फोन ना होता तो क्या ही होता।

कभी-कभी इतने लोगों के बीच में बहुत अकेलापन फील होता है। घर में रहते-रहते परेशान हो जाते हैं। ऐसा लगता है कि मानसिक रोगी हो जाएंगे। नकारात्मक विचार मन में घर करने लेगते हैं। क्या होगा अब? कैसे होगा सब? पता नहीं कब तक ऐसा रहेगा। ज़िंदगी कहीं यहीं तक तो नहीं रह जाएगी। क्या होगा सपनों का अब पूरे होंगे कि नहीं। यही सब बैठ कर सोचते रहते हैं।

मेरी बहन मुंबई में हैं जो हम सभी से अभी भी दूर है। मम्मी-पापा से लेकर हम सभी को उनकी चिंता है। ऐसे में सिर्फ वीडियो कॉलिंग से ही संतोष करना पड़ता है। कोई कहीं आ जा भी नहीं सकता।

प्रतीकात्मक तस्वीर

छोटी बहन की शादी हुई वह अभी तक लॉकडॉउन की वजह से घर ही नहीं आ पाई। अपने माँ-बाप का घर छोड़ कर एकदम अनजान शहर में अनजान लोग जिनसे कुछ हो दिनों पहले रिश्ता हुआ था एक दम से रहना। उसके लिए मुश्किल हो रहा होगा।

वह परेशान होती है, रोते हुए जब बात करती है और मम्मी से कहती है कि कोरोना के जाने के बाद मुझे लेने आइएगा, यह कब जाएगा? अभी से पंडित जी से मुहूर्त पता कर लीजिए हमको घर आना है। हम यहां बहुत परेशान हो गए हैं। सबको बहुत देखने का मन करता है। यही सब इन हालातों में हर कोई मुश्किल झेल रहा है। मेरी बहन तो डिप्रेशन की शिकार है, क्योंकि उसको घूमना बहुत अच्छा लगता है।

कोई समझ नहीं सका कि उसको हार्ट-अटेक क्यों आया? जब वह ठीक हुई तो उसने बताया कहीं घूमने चलो मैं घर में रहते रहते-रहते थक गई हूं। ऐसे समय में उसको हॉस्पिटल ले जाने में बहुत प्रॉबलम हुई, क्योंकि डॉक्टर ने साफ मना कर दिया कि वह इलाज नहीं कर पाएंगे। फिर कुछ डॉक्टर भगवान बनके सामने आए और इलाज किया।

लोगों को होना होगा जागरूक

कोरोना बहुत बड़ी समस्या बन चुका है लेकिन उसका सामना डर के नहीं हिम्मत से करना है। जो नियम-कानून बनाए गए उनका पालन करना चाहिए। देश ही नहीं सम्पूर्ण विश्व को इससे जीतना है। हम सबको एक-दूसरे के साथ खड़े रहना होगा, चाहे कोई कोरोना पीड़ित परिवार से हो या कोई मज़दूर सबको साथ लेकर चलना है। सामाजिक नहीं फिज़िकल दूरी बना कर रखनी है।

एक सच यह भी है कि इस समय जो हम सबको समय मिला है उसको ऐसे ही नहीं बिताना है। उसको सही तरीके से प्रयोग करना है। जो हम नहीं कर पाए उसको करना है। अपने गुणों में और वृद्धि करनी है। कुछ परेशानी है, तो उम्मीद भी है कि एक दिन सब सही हो जाएगा। हमारी ज़िंदगी एक बार फिर से सही ढंग से ज़िंदगी की पटरी पर लौटेगी।

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