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कैसे मधुमक्खी पालन छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के लिए बन रहा है रोज़गार का साधन

नोट- यह आर्टिकल केवल जानकारी के लिए है। यह किसी भी प्रकार का उपचार सुझाने की कोशिश नहीं है। यह आदिवासियों की पारंपारिक वनस्पति पर आधारित अनुभव है। कृपया आप इसका इस्तेमाल किसी डॉक्टर को पूछे बगैर ना करें। इस दवाई का सेवन करने के परिणाम के लिए Adivasi Lives Matter किसी भी प्रकार की ज़िम्मेदारी नहीं लेता है।


शहद किसे नहीं पसंद है? आजकल छत्तीसगढ़ के गाँव में भी शहद की बोतलें बाज़ार में बिकती हैं लेकिन इसके पीछे कई लोगों की मेहनत होती है। मधुमक्खी से शहद इकट्ठा करना, बेचना और मधुमक्खी पालन छत्तीसगढ़ के लोगों के लिए रोज़गार का ज़रिया है।

इस स्वादिष्ट शहद को खाना हमारे गाँव के लोग बहुत पसंद करते हैं। छत्तीसगढ़ में पाई जाने वाली मधुमक्खियां चार प्रकार की होती हैं- भांवर, सतघरा, लमई और लोकड़ा।

भांवर- भांवर मक्खी इन मधुमक्खियों में सबसे बड़ी होती है और बड़े-बड़े पेड़ों जैसे- बरगद और पीपल आदि पेड़ों पर अपने छत्ते बनाकर रहती है। यह मधुमक्खी एक साथ एक पेड़ पर 10 से 50 तक छत्ते बना सकती है। इस छत्ते की ऊंचाई काफी होती है और इन्हें  निकालना बहुत मुश्किल होता है।

पीपल के पेड़ पर मधुमक्खी का छत्ता। फोटो साभार- राकेश नागदेव

इस  मक्खी का एक डंक भी बहुत ही ज़हरीला होता है। अगर 2-4 भांवर मधुमक्खी काट ले, तो बुखार भी आ जाता है। कभी-कभी बहुत ज़्यादा मधुमक्खी काट ले तो लोगों की मौत भी हो सकती है। 

सतघरा- इस मधुमक्खी का नाम यह इसलिए पड़ा क्योंकि यह सात छत्ते बनाकर रहती हैं। 

लमई- लमई अक्सर घरों में अपनी छत्ते बनाकर रहती है। 

लोकड़ा- लोकड़ा छत्तीसगढ़ की मधुमक्खी प्रजातियों में सबसे छोटी होती है और बड़े पेड़ो के खोलो में पाई जाती हैं। इन्हें देख पाना बहुत ही मुश्किल होता है। यह एक नली द्वारा पेड़ों से बाहर निकलती है और अंदर प्रवेश करती है।

पेड़ से लोकड़ा मधुमक्खी का रस निकालने की प्रक्रिया

पेड़ के खोल से लोकड़ा मधुमक्खी का रस निकालते हुए। फोटो साभार- राकेश नागदेव

लोकड़ा मधुमक्खी पेड़ के अंदर ही अंदर अपना छत्ता बनाती है, जो एक कॉलोनी के रूप में होता है। इसमें वह शहद का निर्माण करती है। इसकी छत्ते बहुत छोटी होती है। अतः इसमें शहद भी कम मिलता है फिर भी लोग इसे निकालना पसंद करते हैं। 

शहद निकालने के लिए पहले जिस पेड़ में मधुमक्खी है, उसे काटा जाता है। काटने से पहले काटने वाले लोग अपने चेहरे को रुमाल से ढंक देते हैं ताकि उन्हें मधुमक्खियां काटे ना। पेड़ों के खोखले से इन मधुमक्खियों का शहद निकाला जाता है। इस शहद को फिर एक बर्तन में इकट्ठा कर लेते हैं। इसे फिर छानकर रस को अलग किया जाता है। इसे छत्तीसगढ़ी में मधरस कहते हैं।

शहद के साथ-साथ हर प्रकार की मधुमक्खी के छत्ते में गुड़ के समान खाद्य पदार्थ होता है, जिसे छत्तीसगढ़ी बोली में ‘पुटका’ कहते हैं और यह खाने लायक होता है। उसे भी लोग रस के साथ निकालकर खाते हैं। 

मधुमक्खी पालन से लोगों को मिल रहा है रोज़गार 

मधुमक्खी पालन को आजकल एक व्यवसाय के रूप में किया जा रहा है, क्योंकि बहुत लोग शहद खरीदना चाहते हैं और जंगलों में मिलने वाले छत्तों से इस माँग की पूर्ति करना असंभव है। इसलिए सरकार की तरफ से बीच-बीच में मधुमक्खी पालन के लिए ट्रेनिंग भी दी जाती है।

इससे किसानों को आर्थिक रूप से सक्षम होने का मौका मिलता है और रोज़गार की प्राप्ति होती है। इसके साथ-साथ लोगों को स्वच्छ, शुद्ध और मधुर शहद भी मिल जाता है।

शहद के फायदे

मधुमक्खी के छाते से निकाला गया शहद। फोटो साभार- राकेश नागदेव

शहद का उपयोग औषधि के रूप में भी किया जाता है। अगर चोट लगी हो तो घाव पर शहद लगाने से वह जल्दी ठीक नहीं हो जाता है। शहद घाव पर सुबह शाम लगाया जाता है। 

आदिवासियों का मानना है कि शहद पुरुषों में बलवर्धक का भी काम करता है। हमारे गाँव में एक चम्मच प्याज़ का रस और एक चम्मच शहद को मिलाकर सुबह शाम पीते हैं। इससे से शरीर में जितनी भी कमज़ोरी होती है, वह दूर होती है और शरीर को ऊर्जा मिलती है।

लोगों का मानना है कि शहद आंखों की रौशनी भी बढ़ता है। अगर हम सुबह-शाम एक बूंद शहद आंखों पर लगाएं तो आंखे साफ हो जाते हैं।

इस प्रकार छत्तीसगढ़ में पेड़ों से शहद निकाला जाता है। क्या आपने इस प्रक्रिया के बारे में सुना था? क्या आपके यहां भी ऐसे ही शहद निकालते है?


यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है। इसमें प्रयोग समाजसेवी संस्थान और ‘Misereor’ का सहयोग है।

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