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कोविड-19: नहीं बिक रही हैं दिल्ली के यमुना खादर के किसानों की सब्ज़ियां

वैश्विक महामारी COVID-19 के कारण सम्पूर्ण विश्व प्रभावित है। सारे विश्व में लोग कैद होकर रह गए हैं। वहीं, केन्द्र सरकार द्वारा उठाए गए कदम अत्यंत सराहनीय हैं और हम भारत के नागरिक इस तथ्य की इज़्जत करते हैं।

वहीं, राज्य सरकारें भी अपनी-अपनी भूमिका बहुत अच्छी तरह से निभा रही हैं। इन सब का एक ही लक्ष्य है कि कोई भूखा ना रहे। प्रधानमंत्री अन्न योजना सभी गरीबों के पेट भरने के लिए ही नियोजित की गई हैं।

यहां किसान समुदाय कहीं ना कहीं इन सुविधाओं का लाभ नहीं उठा पा रहा और कई रातों से भूखा सो रहा है। किसी के पास सम्पूर्ण दस्तावेज़ नहीं हैं, तो कोई जागरूक ही नहीं है।

मैं अपने लेख के ज़रिये लोगों को संबोधित करते हुए यही कहना चाहता हूं कि कई चेहरे ऐसे भी हैं जो किसी की नज़र में नहीं आ रहे लेकिन वे एक पिछड़े हुए समुदाय के रूप में अपने दर्द को झेल रहे हैं। उनके लिए कुछ सोचा जाना ज़रूरी है।

उनके लिए भी सारी सुविधाएं मुहैया करवाई जाएं। लगभग ज़्यादातर NGO झुग्गी-बस्तियों में जाकर अपना कैंपेन चला रहे हैं, जो उनको खाने-पीने और आधारभूत सुविधाएं मुहैया करवा रहे हैं।

यमुना खादर की हवाओं में अजीब सा रुखापन था

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Getty Images

मैं रविवार के दिन यमुना खादर गया, जहां कुछ अनाज, चीनी और तेल आदि उनको देने के लिए निकला। मेरे घर से 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यमुना के तट पर खेती-बाड़ी करने वालों का स्थान है। जिनके मालिक दिल्ली के ही किसी हिस्से में रहते हैं।

खेतों की देखभाल के लिए उन्होंने कुछ किसानों को रखा हुआ है, जो दिल्ली से नहीं हैं। कोई बदायूं से है कोई अलीगढ़ से है या फिर किसी का सम्बन्ध बिहार से है। वहां की स्थिति इतनी भयावह थी जिसका मैंने अंदाज़ा भी नहीं लगाया था। वहां की हवाओं में भी एक रुखापन था, ऐसा लग रहा था जैसे प्रकृति भी उनसे नाराज़ है।

मैंने 7 घरों का निरीक्षण किया और उसके बाद उनको सामान का वितरण करने के लिए बाहर बुलाया। उनसे बातें की, हंसी-मज़ाक किया, उनके आंसुओं को हंसी में तब्दील किया। वहां मौजूद बच्चों के लिए मैं कुछ बिस्किट और केले लेकर गया था।

मेरी एक्टिवा देखते ही बच्चे चिल्लाने लगे “विशाल तेरे भैया जी आ गए।” उनकी आवाज़ में आशा थी, एक खनक थी मगर नहीं था तो वह चहक जो भरे हुए पेट से निकलती थी। मैं उनको देखकर थोड़ा मुस्कुराया फिर अपने थके हुए मन के आंसुओं को उनके चेहरे की मुस्कान से सोख लिया।

विशाल आजा देख तेरे लिए मैं तेरी पसंद के बिस्किट लाया हूं!

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Getty Images

विशाल, जो मुझे दो साल पहले वहीं खेतों के अस्थाई स्कूल में मिला था। दीपावली पर जब हम बच्चों के साथ दीवाली मनाने गए तभी से यह मेरा पक्का दोस्त बन गया और मैं विशाल का भैया।

बहरहाल, विशाल मेरे पास आया और मेरे हाथ के थैले को देखने लगा और हंसकर मेरे गले से लग गया। मैंने उसकी भूख की तपिश को महसूस करते हुए मैंने भांप लिया कि उसके पेट में इस समय कुछ भी नहीं है।

मैंने उसको बिस्किट दिए कि इतने में और भी बच्चे आ गए। मैंने उनको भी केले और बिस्किट बांट दिए। वहीं, विशाल छोटे से कटोरे में पानी भर कर लाया और उसमें बिस्किट डालकर डुबा-डुबाकर खाने लगा। यह मेरे लिए दिल को तार-तार कर देने वाला दृश्य था। वक्त कैसा होता है ना? कठोर भी और इतना दयनीय भी!

मैंने उनके माता पिता और लोगों से अपने पास आने को कहा और उनसे उनकी समस्याएं भी पूछीं। सभी को अनाज वितरित किया। सब लोग परेशान थे और असहाय भी।

उनमें से एक अम्मा बोलीं, “बेटा तू आ गया है मैं तेरे सर पर हाथ रखकर दुआ दूंगी, तू तो मुझे छूने से मना नहीं करेगा?” मैंने कहा अम्मा बिल्कुल नहीं। आप मेरे सर पर हाथ रखकर दुआ दीजिए। मुझे बुज़ुर्ग लोगों की दुआ से बढ़कर कोई चीज़ प्यारी नहीं।”

उन्होंने हंसते हुए मुझे दुआ दी और मेरे सर पर हाथ रखा। मैं भी खुश हुआ और उनको समझाया कि आजकल महामारी की वजह से लोग एक-दूसरे को छू नहीं रहे हैं। आप में कोई कमी थोड़ी ना है। यह तो हमारे भले की ही बात है। अम्मा मेरी बात से खुश भी हुईं और सहमत भी।

वहां सारी समस्याएं सुनने और देखने के बाद एक ही बात समझ आई कि उनको भी सपोर्ट की ज़रूरत पड़ती है। उनको भी प्यार और सम्मान चाहिए। रोटी तो सिर्फ पेट भरती है मगर प्यार और इज़्जत इंसान की आत्मा की प्यास को तृप्त करता है। इस कैद की स्थिति में हमको हर प्रकार के लोगों का ध्यान रखना होगा।

महिलाओं द्वारा घर का काम संभालना और बाहर खेती-बाड़ी की भी ज़िम्मेदारी

महिला वैसे ही घर के कामों में पिसती हैं। ऊपर से खेत का काम भी करना पड़ता है। मैंने पूछा, “शांति, आज कल आप किस तरह की परेशानियों का सामना कर रहीं हैं?”

उत्तर मिला, “सर, घर तो घर उपर से खेतों के काम भी करना पड़ता है। फिलहाल खाने के लिए सिर्फ हमारे पास बैगन हैं। जिसको उबाल-उबालकर हम नमक के साथ खा रहे हैं। इसमें से हमें कौन सी ताकत मिलेगी?” सही बात है, जब सम्पूर्ण आहार नहीं मिलेगा तो ताकत कहां से आएगी?

रामस्नेही ने परेशानी बताते हुए कहा कि पति हमें बार-बार कुंठित होकर मारता है

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Getty Images

सामने खड़ी रामस्नेही से मैंने वही सवाल किए जो शांति से किए थे। उन्होंने बात शुरू करने से पहले ही हाथों के ज़ख्म दिखा दिए जो चूड़ी के टूटने पर उनके हाथों पर चुभ गए थे। फिर उन्होंने अपनी गर्दन पर लाल धारधार निशान दिखाए और कहा, “साहब यह है हमारी परेशानी। हमारा पति हमें बार बार कुंठित होकर मरता है।”

वो आगे बोलीं, “जब धनिया बोने का समय था तब धनिया के बीज 200 रुपये मिले थे और अब जब धनिया की फसल कट गई तब धनिया 20 रुपये की पांच किलो भी नहीं बिक रही है। हमारे पति कुछ सब्ज़ियां मोल की लाए थे वह भी नहीं बिकी और उसने घर आकर सारा गुस्सा हमारे ऊपर ही निकाल दिया।”

हमने अक्सर यही देखा है कि ज़्यादातर पुरुष बाहर से कुंठित होकर आते हैं और घर पर आकर सारा गुस्सा निकालते हैं।

किसान समाज की सबसे बड़ी समस्या जो वे इस लॉकडाउन के समय झेल रहे हैं, वो है उनकी सब्ज़ियों को बेचने के लिए उनके पास किसी विकल्प का ना होना। बाहर कॉलोनियों में उनकी सब्ज़ी बिकती थीं मगर वहां पर पुलिस ने नाकाबंदी की हुई है और डंडे मार-मारकर भगा रही है।

उनकी समस्याओं को अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए। मैं व्यक्तिगत तौर पर कुछ सुझाव देना चाहूंगा कि हम इन लोगों के लिए क्या कर सकते हैं।

  1. कर्फ्यू पास का उपलब्ध करवाना: सरकार ने कर्फ्यू के समय सब्ज़ी और फल वालों के लिए कर्फ्यू पास उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया था मगर इसका प्रॉसेस बहुत जटिल है जिससे उनको ऊनी सब्ज़ियां बेचना मुश्किल हो रहा है।
  2. जागरूकता फैलाना: किसान समुदाय कहीं ना कहीं समाज से कटा हुआ रहता है, उनके पास पर्याप्त मात्रा में साधन उपलब्ध नहीं हैं। किसी ना किसी तरह सरकार को खेतों में काम करने वाले किसानों के लिए जागरूकता अभियान चलाने चाहिए।
  3. स्वयंसेवकों के कार्यं को निर्धारित करें: जितने भी स्वयंसेवक हैं, उनको ट्रेनिंग दी जाए और उनको बताया जाए कि किसान समुदाय किस प्रकार की परेशानी से जूझ रहा है? उसकी समस्या का क्या हल हो सकता है? कई बार किसान आसानी से होने वाले कार्य को समझ नहीं पाते तो ऐसे में उनको गाइड करना प्राथमिक कार्य होना चाहिए।
  4. NGO का हस्तक्षेप होना आवश्यक: सरकार एक कमेटी बनाए और उसको कई भागों में विभाजित करे ताकि असंगठित क्षेत्र के लोगों का अनुमान लग सके कि कोई भी समुदाय छूट तो नहीं रहा है। सबको सारी सुविधाएं मुहैया करवाई जा रही हैं या नहीं? एक भाग को किसानों के लिए निर्धारित कर देना चाहिए।

सरकार द्वारा उठाए गए महत्वपूर्ण कदम, जिसका लक्ष्य इतना अच्छा और सुलभ हो कि कोई भूखा ना रहे। इससे अच्छी पहल और क्या हो सकती है? इस सुविधा का लाभ सबको मिलना चाहिए। हमको जागरूक होना होगा तभी उनको जागरूक कर पाएंगे वरना फिर हमको ज़रूर कोई विशाल मिलेगा और उसका खाली पेट या फिर रामस्नेही के शरीर का ज़ख्म हमें सोचने पर मजबूर विवश करता रहेगा।

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