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“मेरे बुंदेलखंड में कर्ज़ से हताश होकर किसान अब फांसी लगा रहे हैं”

गाँव का जीवन साहित्य, फेसबुक, कविताओं और फोटो में सुंदर लगता है मगर वास्तविकता में कई ऐसी आधारभूत समस्याएं हैं, जो यहां के जीवन को कठिन बनाती हैं। इस कोरोना जैसी महामारी के दौर में स्थिति और भी बदतर हो चुकी है।

गाँव के प्रवासी लोग अपने घरों में भयानक बेरोज़गारी से पीडित हैं। लोगों के पास काम नहीं है। 18 साल से 40 वर्ष के आयु समूह के लोग गाँव में बैठकर दिनभर ताश खेलते हैं एवं नशे के आदी हो रहे हैं।

कई किसान कर्ज़ और कर्ज़दारों से हताश होकर फांसी लगा चुके हैं। देश में गरीबी की यह हालत है कि प्रधानमंत्री छाती ठोककर कहते हैं, “मैं नवंबर तक 80 करोड़ लोगों को राशन और चना दूंगा।” यानि वो स्वीकार करते हैं कि भारत की स्थिति क्या है।

बुंदेलखंड की मौजूदा स्थिति व्यक्ति को पलायन के लिए बाध्य करती है। अपने मूल स्थान को छोड़ना अत्यंत कष्टकारी होता है। पिछले 6 महीने से अपने गाँव में हूं। आसपास के कई गाँव में जाकर वहां की स्थिति को देख रहा हूं तो लगातार अर्थव्यवस्था के बारे में सोचता रहता हूं।

यहां के लोगों को महीने में 2-3 हज़ार रुपये की ज़रूरत है। 100 रुपए प्रतिदिन नियमित। वो कैसे आएगा, यही सोच रहा हूं। बुंदेलखंड के कृषि प्रधान समाज में जल प्रबंधन के अभाव के साथ-साथ निरंतर बाढ़, सुखाड़, फसलों की बीमारी और नीलगायों के आतंक ने खेतिहर जीवन को मुश्किल में डाल रखा है।

यहां कृषि के अलावा रोज़गार के दो ही कुल स्रोत हैं-

  1. परिवहन- ऑटो, बस, बोलेरो आदि गाड़ियां चलाना। शादियों और त्यौहारों के सीज़न में ये व्यवसाय फायदेमंद है मगर बाकी समय मुश्किल से बैंक के किश्त निकलते हैं।
  2. पशुपालन- गाय, भैंस, बकरी जैसे दुधारू पशुओं के माध्यम से लघु स्तरीय डेयरी व्यवसाय मगर कम-से-कम 3 दुधारू पशुओं के बिना गुज़ारा करना मुश्किल है। इसमें भूसा घर का होना एक अनिवार्य शर्त है।

उत्तर प्रदेश पहले से बहुत बेहतर स्थिति में है। विधि-व्यवस्था लगभग ठीक है। सड़क और बिजली की स्थिति भी संतोषजनक है। (दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र और दक्षिण भारतीय विकसित राज्यों से तुलना ना करें) मगर जब तक दो उपाय नहीं होंगे, तब तक गरीबी, बेरोज़गारी और पलायन जारी रहेगा।

  1. नदियों का जल प्रबंधन- चाहे नदियों की इंटरलिंकिंग हो या नहरों का जाल, किसान जब चाहे जल प्राप्त कर लें।
  2. औद्योगिकरण- कृषि आधारित खाद्य प्रसंस्करण, सब्ज़ी, कॉस्मेटिक्स, औषधीय कृषि, वानिकी, मत्स्य,डेयरी, दुग्ध उत्पाद, मुर्गी आदि में मुझे अच्छी संभावनाएं दिखती हैं। कृषि प्रधान समाज जब तक तीन फसल नहीं उगाएगा और एक नियमित छोटे आय का प्रबंध नहीं होगा, तब तक उसकी समस्याएं समाप्त नहीं होंगी। सिर्फ खेती काफी नहीं है। किसानों को भी लीक से हटकर सोचना होगा। सिर्फ सरकार के भरोसे रहना ठीक नहीं है।

 अब मैं राशन की कतारों में नज़र आता हूं
अपने खेतों से बिछड़ने की सज़ा पाता हूं।

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