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इन चेंजमेकर्स से सुनिए कैसा हो यंग इंडिया का भविष्य

12 अगस्त को यूथ डे के मौके पर Youth Ki Awaaz ने यूनिसेफ और YuWaah के साथ मिलकर कोविड-19 के दौर में उत्पन्न हालातों के बीच कैसे भविष्य की चुनौतियों का सामना किया जाए, इस विषय पर एक बेहद ही शानदार चर्चा का आयोजन किया।

सात चेंजमेकर्स के साथ-साथ चर्चा में मौजूद थीं मिनिस्ट्री ऑफ यूथ अफेयर्स एंड स्पोर्ट्स की सेक्रेटरी उषा शर्मा, यूनिसेफ इंडिया रिप्रेजेंटेटिव, डॉक्टर यास्मिन अली हक। वहीं, अटल इनोवेशन मिशन के मिशन डायरेक्टर रमनन रामानाथन भी मौजूद थे।

मिनिस्ट्री ऑफ यूथ अफेयर्स एंड स्पोर्ट्स की सेक्रेटरी उषा शर्मा ने युवाओं को संबोधित करते हुए कहा, “हमारा देश यंग नेशन है, जहां 67 प्रतिशत आबादी 35 वर्ष से कम उम्र की है। यह बेहद ज़रूरी है कि युवा शक्ति को देश के निर्माण में प्रयोग करें।”

उन्होंने कहा, “भारत सरकार के फ्लैगशिप प्रोग्राम्स में हमने दिलचस्पी दिखाने का काम किया है। जैसे- आत्मनिर्भर भारत अभियान, फिट इंडिया मोवमेंट, एक भारत-श्रेष्ठ भारत, डिसास्टर मैनेजमेंट और वॉटर हार्वेस्टिंग। इन एरियाज़ में हमारे 75 लाख वॉलिंटियर्स अगर बढ़-चढ़कर अपनी भागिदारी दिखाते हैं, तो निश्चित तौर पर स्थितियां बदलेंगी।

उन्होंने कहा, “हमारे वॉलिंटियर्स ने करीब दो करोड़ से भी ज़्यादा लोगों को आरोग्य सेतु से जोड़ा है। एक लाख से भी अधिक लोगों को मास्क बनाकर दिया। चाहे माइग्रेंट लेबर की समस्याएं हों या बुज़ुर्गों को देखने की बात हो, हमारी टीम ने बढ़-चढ़कर काम किया है। वे देश के सुदूर इलाकों तक जाकर अपना काम कर रहे हैं, जिनकी सराहना हर तरफ से की जा रही है। इन चीज़ों से हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है।”

वहीं, यूनिसेफ इंडिया रिप्रेजेंटेटिव डॉक्टर यास्मिन अली हक ने कहा, “मेरे लिए यह एक बड़ा मौका है कि मैं इस बहस में शामिल हूं, जहां यंग इंडिया की चुनौतियों पर बात हो रही है। भारत में हम देख रहे हैं कि कैसे युवाओं द्वारा बढ़ चढ़कर महामारी में अपनी भूमिका दर्ज़ कराई जा रही है। आप कैसा फ्यूचर क्रिएट करना चाहते हैं, क्या हम उस दिशा में जा रहे हैं? अगर कोई गैप है तो उसको पूरा करने के लिए क्या करना चाहिए, यह सब हम आपसे सुनना चाहेंगे।”

अटल इनोवेशन मिशन के मिशन डायरेक्टर रमनन रामानाथन ने कहा कि पीएम मोदी आत्मनिर्भर भारत की बात करते हैं जो भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए काफी सशक्त माध्यम है। देश के युवा एजेन्ट्स ऑफ चेंज हैं। सेक्स वर्कर्स, डिसेबल पर्सन, ट्राइबल और स्लम में रहने वाले लोगों को हमारी योजनाएं सशक्त बनाने का काम करेंगी। इसकी कुछ अहम कड़ियां हैं। जैसे-

उन्होंने आगे कहा, “युवाओं को इनोवेटर और जॉब क्रिएटर बनना होगा जो अपने समुदाय को आगे ले जा पाएं। अगर आपके पास आइडियाज़ हैं, तो उसको अमल में लाने के लिए हर संभव कोशिश की जाएगी। हमने देखा है कि कोविड-19 ने कैसे माइग्रेशन की समस्या को बढ़ाया है। हमें यह सुनिश्ति करना होगा कि हमारे गाँव और शहर इनोवेशन के हब्स बनें। आप जो कुछ भी लोकल लेवल पर करेंगे, वो ग्लोबल होगा तभी पीएम ने कहा कि हमें वोकल होना पड़ेगा।”

आइए अब जानते हैं लाइव डिस्कशन में क्या कहा चेंज मेकर्स ने

कोविड-19 के समय पर्सन विद डिसेबिलिटी को कई सारी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है- प्रतिष्ठा देवेश्वर

अगर आपको बताया जाए कि ये लड़की है और इसका नाम ये है और ये एक विकलांग लड़की है, तो आपके माइंड जो इमेज आए, केवल उसी को ज़हन में रखकर सुनिए मेरी कहानी। 

मैं 13 साल की थी तब मेरा एक्सिडेंट हो गया और चेस्ट के नीचे का पूरा हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया। मुझे बताया गया कि ज़िन्दगी में कभी चल नहीं पाऊंगी। फिर मैं सोचने लगी कि अगर मझे व्हील चेयर यूज़ करना पड़ेगा तो बहुत जगह मैं नहीं जा पाऊंगी।

लोग मेरी खूबसूरत सी स्माइल को नहीं देखते हैं, मेरा टैलेंट भी नहीं देखते हैं, अगर कुछ देखते हैं तो वो है व्हीलचेयर। फिर मेरे बारे में बहुत सारी धारणाएं अपने ज़हन में बना लेते हैं। मेरे पेरेन्टस को लोग कहते हैं कि ओह आपकी बेटी व्हील चेयर पर है। कितना बोझ है आप पर!

इस बोझ शब्द को हम इंसान के साथ कितना जोड़ देते हैं। लोगों को इस बात से कोई  फर्क नहीं पड़ता है कि मैं देख सकती हूं, मैं सुन सकती हूं, मैं ब्रेन यूज़ कर सकती हूं और मैंने अपने जीवन में इन सब चीज़ों को यूज़ किया।

मैंने सोचा कि मेरा जो शहर है उसको छोड़कर बड़े शहर में रहूं। जब मैंने वहां जाने का फैसला लिया तो सबने कहां कि इसको मत भेजो ये तो पर्सन विद डिसेबिलिटी है। इसके एजुकेशन पर पैसे वेस्ट करने का कोई फायदा नहीं है।

मैंने स्वतंत्र रूप से अपनी पढ़ाई पूरी की। कुछ लोग आपकी गलतियां और खामियां हमेशा प्वॉइंट आउट करते रहते हैं। जो यूथ ऑफ टूडे है, वो मेंटल हेल्थ से जूझ रहा है। मैं ये मैसेज ज़रूर देना चाहूंगी कि आज अपनी कहानी आप सब के साथ शेयर कर रही हूं मगर जब 14 साल की थी तभी मैंने इसकी प्रैक्टिस कर ली थी।

मेरी जो डिसेबिलिटी है वो फिज़िकल है। आपके साथ कुछ भी हो रहा है मगर ये सोचिए कि यह अंत नहीं है। आगे जाकर सुनहरा कल जरूर मिलेगा।

मीडिया में हमें सिंबल ऑफ मर्सी और सिंबल ऑफ सिम्पेथी के तौर पर दिखाया जाता है। एक लेडी ने एक बार मुझे कहा कहा, “तुमने बहुत प्यारी ड्रेस पहनी हैं, क्योंकि तुम व्हील चेयर पर बैठी हो तो ये अच्छी नहीं लग रही है।” मैंने कहा अगर मैं व्हील चेयर पर नहीं होती तो भी आप कहतीं कि छोटे कपड़े अच्छे नहीं लग रहे हैं।

कोविड 19 के समय भी पर्सन विद डिसेबिलीटी को बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। टीवी पर भी मैंने नहीं देखा कि पर्सन विद डिसेबिलिटी को लेकर कोई बात की जाए।

दलित समुदाय के बच्चे सपने नहीं देख पाते हैं- ब्यूटी कुमारी

मैं बिहार के पटना ज़िले के छोटे से गाँव मसौड़ी से हूं। दलितों के उत्थान के लिए लोकल लेवल पर काम कर रही हूं। गाँव की पहली लड़की हूं जो फिज़िक्स ऑनर्स में ग्रैजुएशन कर रही हूं और फिल्ड में आकर दलित युवाओं के लिए काम कर रही हूं। मुझे नहीं पता कि मेरा भविष्य क्या होगा।

शायद आने वाले वक्त में शादी ही हो जाए। हमारी कम्यूनिटी में बहुत से लोग जुड़े हैं जिनका फ्यूचर शायद श्योर नहीं है। अनिता कुमारी मुसहर समुदाय से है, जो इंटर पढ़ने वाली गाँव की पहली लड़की है। उसने चाइल्ड मैरेज को भी फेस किया है मगर अभी भी शिद्दत के साथ पढ़ाई कर रही है मगर फिर भी हम नहीं कर सकते हैं कि उसका भविष्य क्या होगा।

अगर मैं अपने फ्यूचर की बात सोचती हूं तो ज़हन में ख्याला आता है कि क्या होगा मेरा फ्यूचर? हमारे साथ बहुत से युवा जुड़े हैं, जिनके फ्यूचर को लेकर हम चिंतित रहते हैं। हम चाहते हैं कि जो दलित कम्यूनिटी के युवा हैं, वे सपने देखें और उसके मुख्य उद्देश्य से जुड़ें।

हम दलित समुदाय के लोग सपने देखते ही नहीं हैं। हम जिस स्थिति में जीते हैं उसी में जीने के लिए मजबूर हैं। दलित कम्यूनिटी को कोई मोटिवेट नहीं करता है।

आदिवासी मुस्लिम या घुमंतू समुदाय सपने देखें और उसे पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जाएं, यही हमारी कोशिश होनी चा हिए। मैंने भी जातिगत भेदभाव को झेला है। स्कूल में दलित कम्यूनिटी के बच्चों के साथ कोई बैठना नहीं चाहता है। शिक्षक भी उनके साथ गलत तरह से व्यवहार करते हैं और इस कारण वे ड्रॉपआउट हो जाते हैं।

भेदभाव का असर मानसिक स्वास्थय पर ज़िन्दगी भर पड़ता है- साहिल कुमार

मैं साहिल कुमार, भोपाल से हूं। एक मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल के तौर पर कई वर्षों से काम कर रहा हूं। वर्तमान में उमंग किशोर हेल्पलाइन के साथ कार्यरत हूं। हम मेंटल हेल्थ काउंसलिंग के वक्त लोगों की गोपनियता का पूरा ख्याल रखते हैं।  किशोरों के लिए बने हेल्पलाइन पर भी हम सक्रिय होकर काम कर रहे हैं।

भेदभाव का असर मानसिक स्वास्थय पर ज़िन्दगी भर पड़ता है। स्टडीज़ ये कहती हैं कि हर पांच में से एक युवा किसी ना किसी लाइफ लॉन्ग साइकोलॉजिकल परेशानी से ग्रसित है। हमारे समाज में मेंटल हेल्थ के प्रति एक स्टिग्मा है।

चाइल्डहुड में जो साइकोलॉजिकल प्रोब्लम्स हम  देखते हैं, उनका निदान ना हो तो अर्ली एडल्टहुड में परेशानियां और बढ़ जाती हैं। मेंटल हेल्थ की फिल्मों में दूसरे देशों से हम काफी पीछे चल रहे हैं।

जब मैं फेल हुआ तो सभी मुझपर बमबार्ड हो गए और बोले कि देखो पढ़ता नहीं है लेकिन किसी ने यह नहीं पूछा कि साहिल आप क्यों नहीं पढ पाएं? आपकोे क्या परेशानी है? उस समय मैं दस साल का था।

अगर मैं भारत की बात करूं तो हर एक लाख व्यक्ति पर सिर्फ 3 साइक्रेटिस्ट, हर एक लाख व्यक्ति पर 7 सोशल वर्कर और हर एक लाख व्यक्ति पर 7 साइकोलोजिस्ट हैं। हमारी सोसाइटी मेंटल हेल्थ के प्रति संवेदनशील ही नहीं है।

अगर पड़ोसी को पता चल गया कि मेरे बेटा किसी साइक्रेटिस्ट के पास जाता है, तो वे कहेंगे कि शर्मा जी का लड़का पागल है। कितना बडा स्टिग्मा क्रिएट हो गया है हमारे समाज में। किसी को ज़रूरत भी होती है तो सोसाइटी उसको आगे नहीं आने देती है। हमें अवेयरनेस पर काम करने की ज़रूरत है।

नॉर्वे में मानसिक तनाव के कारण ऐसा हुआ कि लोग विचित्र तरह से विहेव करने लगे। सरकार ने साथ में मिलकर एनजीओज़ के साथ एवेयरनेस कैंपेन शुरू किया। इसके क्या लक्ष्म हैं उस पर बात की गई। इसका असर यह हुआ कि समाज में अवेयरनेस बढ़ी।

जब हम मेंटल हेल्थ की बात करते हैं और हमें अवेयरनेस बढ़ाना है, तो इसके लिए सबसे बड़ा स्तम्भ है शैक्षणिक संस्थान। यहां पर अवेयरनेस कैंपेन्स लगाने होंगे।

स्कूल के मेंटल हेल्थ काउंसलर सिर्फ क्लर्क बनकर रह जाते हैं। उनसे यही सब काम कराए जाते हैं। हम युवाओं पर पढ़ाई और अच्छी नौकरी के साथ-साथ कई चीज़ों का प्रेशर है, जो हमारे मानिसक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।

भीख मांगने वाले बच्चों के पेरेन्ट्स को रोज़गार देना होगा- मनु काज़ला

मैं भीख मांगने वाले बच्चों की शिक्षा के लिए काम करती हूं। भीख मांगने वाले बच्चों को मुख्य धारा में लाने के लिए बहुत सारी चुनौतियां हैं। उनके पैरेन्ट्स ही बच्चों को भीख मांगने पर मजबूर करते हैं। अगर उन्हें काम मिले तो शायद वे अपने बच्चे को काम पर ना भेजें। बेहद ज़रूरी है कि जो अच्छे लोग हैं, वे इनसे भेदभाव ना करें।

भीख मांगने वाले बच्चों के पेरेन्ट्स कहते हैं कि अगर हम अपने बच्चे को पढ़ने भी भेजें तो लोग भेदभाव करते हैं।  हमने  देखा है कि हमारे समाज में जब भी घर बनाने की बात आती है, तो हम यह नहीं देखते हैं कि घर बनाने वाला मज़दूर किस कम्यूनिटी से आता है। जब मैं इनको हेल्प करती थी तो मुझे लोग कहते हैं कि तुम हायर फैमिली से हो। क्यों इनकी मदद कर रही हो?

इन्हें शराब पीने की बहुत आदत है तो सरकार को भी इस दिशा में भी कुछ करने की ज़रूरत है। लड़कियों की शादी 18 साल में होती है लेकिन इनके यहां 12 साल में लड़कियों की शादी कर दी जाती है।

ग्रामीण भारत में ड्रोन टेक्नोलॉजी को विकसित करना चाहता हूं- गणेश थोराट

मैं पुणे के सोलापुर से हूं,  यूएबीज़ और डोन्स पर काम करता हूं। ड्रोन टेक्नोलॉज़ी, फ्यूचर टेक्नोलोजी है और इससे रुरल एरियाज़ में निश्चित रूप से रोज़गार की संभावनाएं बढ़ेंगी।

ड्रोन एक ऐसी चीज़ है, जो हवा में उड़ती है। हमलोग ड्रोन के कम्पोनेन्ट्स बनाते हैं। हमलोग एप्लीकेशन्स के अटैचमेंट्स बनाते हैं उसका प्रयोग फ्यूचर में किया जा सके। यूएस में ड्रोन की एडवांसमेंट हो चुकी है लेकिन भारत में अब जाकर नए स्टार्टअप ड्रोन टेक्नोलॉजी पर आ रहे हैं।

पहले बाढ़ जब आते थे तो हेलीकॉप्टर यूज़ किया जाता था और आज ड्रोन यूज़ हो रहा है। हमलोग ट्रेक्नोलॉज़ी रिप्लेसमेंट कर रहे हैं। ड्रोन में अगर कैमरा है तो आप एरिया मैपिंग कर सकते हैं।

अभी हमने ज़्यादा-से-ज्यादा लोगों को ट्रेन करने का पहल शुरू किया है। हम चाहते हैं कि बच्चों को स्कूल लेवल से ही इस बारे में जानकारी हो। आज भी मेरे गाँव के लोगों को नहीं पता है कि ड्रोन क्या है। भारत में टिड्डियों के हमले के कारण किसानों का लाखों का नुकसान हुआ था मगर कुछ किसान नुकसान होने से बच गए। उन्होंने ड्रोन में इंसेक्टिसाइड भरकर स्प्रे किया था। यह भी ज़रूरी है कि सर्टिफाइड लोग ही इस दिशा में आएं। नहीं तो इसमें बम भरकर भी लोग यूज़ कर सकते हैं।

सेक्स वर्कर्स के लिए भेदभाव मुक्त समाज का निर्माण हो- आरती ज़ोडपे

मैं महिला जागरुकता मंच से जुड़ी हूं और सेक्स वर्कर्स कम्यूनिटी के साथ काम करती हूं। देश के जो श्रमिक हैं, जो कामगार हैं, उनको उनका हक मिलना चाहिए। यदि उनको उनका हक मिलता है, तो सेक्स वर्कर के साथ होने वाला भेदभाव मिट जाएगा।

सेक्स वर्कर्स के बच्चों को भेदभाव के कारण आगे बढ़ने का अवसर नहीं मिल रहा है। सरकार की ओर से भी योजना स्तर पर अगर भेदभाव होने लगे तो हमें इस दिशा में सुधार लाने की ज़रूरत है। अच्छे भविष्य के लिए सेक्स वर्कर्स के काम को मान्यता दी जानी चाहिए।

सेक्स वर्कर्स के बच्चे जो आगे बढ़ रहे हैं, उनको अच्छे भविष्य के लिए सरकार और आम लोग हेल्प करें। सेक्स वर्कर्स का एक अच्छा नेटवर्क भी बने सेक्स। टैफिकिंग आज कम हो गया है। ऐसे में यह भी देखना होगा कि जिस तरह  से सेक्स वर्कर्स इस दिशा में काम कर रही हैं, वैसे ही सरकारों को भी उनके साथ मिलकर ट्रैफिकिंग पर काम करना चाहिए।

मेरे गाँव में उन्नत किस्म की खेती हो- सुक्रत उरांव

मैं लोहरदगा, झारखंड से हूं। गाँव स्तर पर बतौर पशु मित्र काम करता हूं। गाँव के किसानों को कैसे आगे ले जाया जाए, इसी  पर काम करता हूं।

हमारे इलाके में लोग गरीब होने के कारण पढ़ाई नहीं करते हैं। ईंट भट्टा में जाकर धूप में कड़ी मेहनत करते हैं। वे वापस आकर जून के महीने में धान और मकई की खेती करते हैं। उन्नत खेती कैसे की जाए, इसकी जानकारी उन्हें भी नहीं है लेकिन किसी तरह से वे कर लेते हैं।

सरकार से भी मेरी गुज़ारिश है कि किसानों को उन्नत खेती के बारे में बताने के लिए लाभकारी योजनाएं लाने का काम करें ताकि वे सश्कत हो सकें। यही एक तरीका है जिससे हम एक बेहतर कल की उम्मीद कर सकते हैं।

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