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नई शिक्षा नीति 2020 से स्टूडेंट्स के लिए क्या-क्या बदलेगा?

online education

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इसरो के पूर्व चेयरमैन डॉक्टर के कस्तूरीरंगन के नेतृत्व में विशेषज्ञों की समिति नें आखिरकार बहुप्रतीक्षित नई शिक्षा नीति को अंतिम रूप दे दिया है।

1986 की शिक्षा नीति के 34 वर्ष बाद आई यह नई शिक्षा नीति वर्तमान शिक्षा पद्धति से काफी अलग है। इसके तहत मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है। पूर्ण रूप से इसको समझने के लिए इसके बृहद ड्राफ्ट को बेहतर ढंग से समझने की ज़रूरत है जो अधिक समय की मांग करता है।

ऐसे में, मैं इस शिक्षा नीति के एक पहलू स्टूडेंट्स पर पड़ने वाले प्रभाव का विश्लेषण करना चाहूंगा।

नई शिक्षा नीति में 5+3+3+4 का मामला क्या है?

छात्रों की शिक्षा को ध्यान में रखते हुए जिस सबसे पहले महत्वपूर्ण बदलाव की ओर हमारा ध्यान जाता है, वह है 10+2 के ढांचे को बदलकर 5+3+3+4 के ढांचे के रूप में परिवर्तित करना। इसे हम यूं समझ सकते हैं कि पहले 5 को लें तो उसके पहले  तीन वर्ष में बच्चे प्री स्कूल अर्थात आगनबाड़ी तथा शेष 2 वर्ष मे कक्षा 1 और 2 की शिक्षा ग्रहण करेगा।

इसके बाद अगले 3 का मतलब कक्षा 3, 4 और 5 की शिक्षा से है। इसके अगले 3 का मतलब मिडिल स्तर अर्थात कक्षा 6,7 और 8 की शिक्षा से है और अंत के 4 का मतलब 9, 10, 11 और कक्षा 12वीं की शिक्षा से है।

इस बदलाव से सबसे बड़ा परिवर्तन यह होगा कि अबतक औपचारिक रूप से स्कूलों में बच्चे के प्रवेश की उम्र जो 6 वर्ष की होती थी, वह बदलकर 3 वर्ष हो जाएगी। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि बच्चा अब भी पहली कक्षा में 6 वर्ष में ही प्रवेश लेगा लेकिन पहले 3 वर्ष को जिसे अब तक प्ले स्कूल आदि नामों से जाना जाता था, उसे भी अब विद्यालयी शिक्षा में जोड़ा जाएगा।

यह निश्चित ही एक बढ़िया पहल है। इससे एक बड़ा लाभ यह होगा की बच्चा अब जब पहली कक्षा मे प्रवेश लेगा, तो वह मानसिक रूप से 3 वर्ष की पूर्व शिक्षा के कारण बेहतर ढंग से तैयार होगा।

मातृभाषा से बच्चे को जोड़ना एक सार्थक प्रयास है

इसके साथ ही इस शिक्षा नीति में पांचवी तक मातृभाषा में शिक्षा देने की बात कही गई है, साथ ही यह भी कहा गया है कि इसे यथा संभव आठवीं या उससे भी आगे तक लागू करने का प्रयास करना चाहिए।

यह कदम निश्चित तौर पर हिन्दी की हो रही उपेक्षा को बहुत हद तक कम करने वाली होगी। खासकर उन स्थितियों मे इसकी ज़रूरत और बढ़ जाती है जब एक हिन्दी भाषी राज्य उत्तर प्रदेश की बोर्ड परीक्षा में 8 लाख बच्चे हिन्दी में फेल हो जाएं।

साथ ही छोटा बच्चा जिसका शायद ही बहुभाषी दुनिया से अभी पाला पड़ा होता है। उसको भी अपनी घर की भाषा में चीजों को सीखने में ज़्यादा सहजता होगी लेकिन हमें इन प्रारम्भिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए और बच्चा मानसिक रूप से पढ़ने लिए बेहतर ढंग से तैयार हो सके इसके लिए हमें आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों को नए सिरे से ट्रेनिंग देनी होगी, फिलहाल जिनका मुख्य कार्य पोषण को सुधारना माना गया है।

रोज़गारपरक शिक्षा भविष्य के भारत की नींव रखेगी

नई शिक्षा नीति की एक और विशेषता है इसे रोजगारोन्मुख बनाना भी है। इसके लिए यह व्यवस्था की गई है की कक्षा 6 से छात्र में कौशल विकास पर विशेष ध्यान दिया जाएगा । इसके लिए विशेष तौर पर वोकेशनल कोर्स शुरू करने की बात कही  गई है। इच्छुक छात्र को इसके लिए इंटर्नशिप पर भी भेजा  जाएगा।

यह निश्चित ही हमारी शिक्षा पद्धति के रोजगारपरक न होने के कारण अब तक होती रही आलोचना को बंद करने में सहायक हो सकती है। लेकिन यह उसी समय कारगर होगी जब प्राप्त होने वाले कौशल को आगे की उच्च शिक्षा मे महत्व प्राप्त होगा।

प्रतीकात्मक तस्वीर

बोर्ड परीक्षाओं 10वीं और 12वीं में छात्रों के ऊपर मानसिक दबाव और कोचिंग की निर्भरता को कम करने के लिए रटने के बज़ाय समझने पर बल दिया गया है। इसके लिए बोर्ड परीक्षाओ को आसान बनाने, परीक्षाएं दो बार कराने, विषयों को चुनने में स्वतंत्रता देने आदि की बात कही गई है।

इसके लिए विभिन्न बोर्डों को आने वाले समय में इसके लिए उपयुक्त मॉडल तैयार करना होगा।

उच्च शिक्षा में भी किए गए हैं अहम बदलाव

पहली बार उच्च भारतीय शिक्षा पद्धति में मल्टीपल एंट्री और एक्जिट सिस्टम को लागू किया गया है। इसे हम इस तरह समझ सकते हैं कि अगर हम आज 4 साल इंजीनियरिंग पढ़ने के बाद आर्थिक तंगी या किसी और कारण से आगे की पढ़ाई नहीं कर पाते हैं तो हमारे पास कोई विकल्प नहीं बचता लेकिन नई शिक्षा नीति में आपको एक साल बाद सर्टिफिकेट, दो साल बाद डिप्लोमा और तीन या चार साल बाद डिग्री मिल जाएगी।

इससे उन लोगों के सामने विकल्प खुल जाएंगे जो बीच में पढ़ाई छोड़कर भविष्य में पुनः शिक्षा प्राप्त करना चाहते हैं। इसकी तुलना आप बैंक खाते में जमा पैसे से कर सकते हैं। मतलब आप जितना पढ़ेंगे उतने स्तर तक की योग्यता आपको जमा के रूप में मिल जाएगी बाद में आप पुनः और पढ़ाई करके अपनी जमा योग्यता में और वृद्धि कर सकते हैं।

उच्च शिक्षा के शोध क्षेत्र में भी किये गए अहम बदलाव

इसके साथ ही उच्च शिक्षा में जो छात्र रिसर्च करना चाहते हैं उनके लिए चार साल का डिग्री प्रोग्राम होगा। इसके साथ ही एक साल के एम.ए. के साथ चार साल की डिग्री प्रोग्राम के साथ सीधे पी.एच.डी. भी किया जा सकता है। इसके लिए अब एम.फिल की जरूरत नहीं होगी। जो लोग रिसर्च की जगह नौकरी करना चाहते हैं, वे तीन साल का डिग्री प्रोग्राम कर सकते हैं।

छात्रों के स्तर के आकलन की विधि में भी परिवर्तन किया गया है। अब इनके प्रदर्शन को तीन स्तरों पर परखा जाएगा, एक स्वयं छात्र करेगा, दूसरा उसका सहपाठी दोस्त और तीसरा उसका शिक्षक। इसके साथ ही एक नेशनल असिसमेंट सेंटर-परख बनाया जाएगा जो समय-समय पर छात्रों की सीखने की क्षमता का मूल्यांकन करेगा। यह आकलन पद्धति स्वमूल्यांकन की क्षमता बढ़ाने में उपयोगी होगी।

प्रतीकात्मक तस्वीर

हम आज भी मैकाले की शिक्षा पद्धति से पूर्णतया मुक्त नहीं हो पाए हैं। मैकाले अपनी शिक्षा पद्धति के विषय में कहा करता था,” जो शिक्षा पद्धति मैं लागू कर रहा हूं उसके पाठ्यक्रम के अनुसार यहां के शिक्षित युवक देखने में हिंदुस्तानी लगेंगे लेकिन उनका मस्तिष्क अंग्रेज़ियत से भरा होगा।”

मैकाले की शिक्षा नीति क्या कहती थी?

वास्तव में मैकाले की शिक्षा नीति का मूल उद्देश्य ही अंग्रेजी साम्राज्य के लिए क्लर्क स्तर के छोटे पदों के लिए कम वेतन पर भारतीयों की नियुक्ति करना था। अंग्रजों की यह शिक्षा पद्धति युवाओं में सेवा भाव पैदा करने वाली थी। हमारे स्वाभिमान को इससे हटा दिया गया परिणामस्वरूप इस शिक्षा पद्धति से नौकरी और गुलामी की मानसिकता बन गई।

इस अंग्रेजी शिक्षा पद्धति के कारण हमारे यहां एक कहावत ही बन गई ‘उत्तम खेती, मध्यम बान। निकृष्ट चाकरी, भीख निदान।’  यह नवीन शिक्षा नीति निश्चित ही देश को मैकाले के प्रभाव से मुक्त करने में सहायक होगी।

बच्चों के अधिगम स्तर को बढ़ाने में सहायक होगी नई शिक्षा नीति

बच्चों द्वारा सीखे गए ज्ञान के विषय में हमें अक्सर ही शिकायत रहती है। ‘प्रथम’ फाउंडेशन बच्चों के शैक्षिक स्तर के आकलन के लिए ‘असर’ नामक रिपोर्ट तैयार करती है। मैंने भी इस संस्था की तरफ से सर्वे किया है ‘असर’ की रिपार्ट में यह बात निकलकर आती रहती है कि बच्चे का अधिगम स्तर अपनी कक्षा के अधिगम स्तर से कम है।

नवीन शैक्षिक नीति इस कमी को दूर करने की दिशा में सार्थक हो सकती है। कुल मिलाकर देखें तो छात्रों के संदर्भ में यह शिक्षानीति भविष्य में मील का पत्थर बनने जा रही है फिर भी इस शिक्षा नीति की सफलता इस बात में निहित होगी कि हम इसको लागू कैसे करते हैं। यही हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती भी होगी।

अगर मुझे छात्रों के लिए इस शिक्षानीति को एक वाक्य में बताने के लिए कहा जाए, तो मैं इस शिक्षा नीति को छात्रों के लिए “जैसी जिसकी आवश्यकता, वैसी उसकी शिक्षा” कहना पसन्द करूंगा।

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