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कैसे त्रिपुरा के देबबर्मा आदिवासी बनाते हैं ‘बांस का एयर गन’ खिलौना?

त्रिपुरा के 19 आदिवासी समुदायों में से एक देबबर्मा आदिवासी समुदाय/ ड्राइव भी हैं। इस समुदाय के लोग बांस से कई सारी चीज़ें बनाते हैं, जो वह प्रतिदिन इस्तेमाल करते हैं, जैसे घर में पाली हुई मुर्गी को रखने के लिए बांस का पिंजरा, रसोई का समान, मछली को पकड़ने के लिए जाल, टोकरियां, घर के छत, और अन्य समान। बच्चों के लिए बांस से खिलौने भी बनते हैं, इन खिलौनों में से एक है बांस की एयर गन।

बच्चों को बांस की एयर गन का उपयोग करना सिखाते हुए विधु देबबर्मा

यह देबबर्मा समुदाय के बच्चों का बहुत ही प्रिय खिलौना है। पहले हमारे गाँव में हर एक बच्चे के पास यह खिलौना रहता था और बच्चे बड़ी उत्सुकता से इसके साथ खेलते हैं। इस खिलौने को बनाना ज़्यादा मुश्किल नहीं होता, कोई भी बच्चा थोड़ी मदद के साथ इसे बना सकता है।

ऐसे बनाते है बांस की एयर गन

इस बांस की एयर गन को बनाने के लिए पहले जंगल में जाकर एक बांस की लकड़ी को काटा जाता है। बांस कई प्रकार के होते हैं लेकिन इस खिलौने को बनाने के लिए हमें वसूल (wasul) जो यहां का लोकल नाम है, इसे इस्तेमाल किया जाता है। यह बांस बहुत बड़ा होता है और इसी बांस की लकड़ी से यह बांस की एयर गन बनाई जाती है।  

इसको बनाने के लिए पहले बांस की लड़की को 12 इंच की लम्बाई में काटा जाता है। फिर इस बांस की नाली के दोनों मुंह को सफाई से और समान तरीके से काटा जाता है। उसके बाद इसे दो भागों में काटा जाता है और यह भाग असमान रहते हैं, एक काफी बड़ा और एक छोटा।

छोटा भाग लगभग 1-1.5 इंच का होता है। फिर एक छोटी बांस की लकड़ी को काटा जाता है, जो इस दूसरी लकड़ी के अंदर बैठ सके। इस छोटी लकड़ी को बड़ी बांस की नाली के अंदर डाला जाता है और यह लकड़ी बड़ी लकड़ी के 1-1.5 इंच छोटी होती है।

बांस की एयर गन के साथ खेलते हुए बच्चे

छोटी लकड़ी को नाली के अंदर आराम से आगे पीछे करने की जगह होनी चाहिए। इस छोटी लकड़ी को बड़ी नाली के निचले यानी छोटे भाग में फिक्स किया जाता है। 

बांस की एयर गन चलाने की प्रक्रिया 

इस बांस की एयर गन को चलाने के लिए गीले कागज़ की गोली या फिर जंगल में पाए जाने वाला पैसला (peshla) का फल इस्तेमाल होता है। इस गोली या फल को नाली के अंदर डाला जाता है,और निचले भाग को बाहर निकालकर ज़ोर से फिर से नाली के अंदर डाला जाता है।

हवा और छोटी लकड़ी के ज़ोर से गोली या फल कहीं दूर फेंके जाते हैं। कभी-कभी गोले या फल 15 मीटर की दूरी तक उड़ते हैं। ऐसे ही कागज़ के गोले या फल से बच्चे बांस का एयर गन चलाते हैं। 

गीले कागज़ की गोली के लगने से ज़्यादा दर्द नहीं होता लेकिन फल के लगने से ऐसा लगता है की किसी चींटी ने काटा हो। बच्चों को तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता और वह एक-दूसरे के साथ खेलते रहते हैं और मज़े करते हैं।

त्रिपुरा के आदिवासी गाँव में ऐसे अनगिनत खेल हैं जो वक्त के साथ खत्म होते जा रहे हैं। बांस का यह एक खिलौना बनाने में बहुत आसान है और मेरे बचपन में मैंने इसके साथ बहुत खेला लेकिन आजकल के बच्चों को यह खिलौना बनाकर देने के लिए कम लोग बचे हैं।

अन्य आदिवासी गाँव के खिलौनों के बारे में आज के बच्चों को भी पता होना चाहिए, उन्हें यह खेल खेलना सिखाना चाहिए। यह उनकी संस्कृति है और इसे बचाना बहुत ज़रूरी है।


यह जानकारी मुझे त्रिपुरा के खोवाई जिले के विधु देबबर्मा से प्राप्त हुई। यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजैक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, और इसमें Prayog Samaj Sevi Sanstha और Misereor का सहयोग है।

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