कोरोना बीमारी की मार से
सरकार की असहायता और हार तक,
गरीब पर हुए प्रहार को
हम ना भूलेंगे।
धूप में तपती लौह की अंगार से
धूल-आंधी और बारिश के कहर तक
लड़ते-जूझते चलते जाने वाले उस मुसाफिर को
हम ना भूलेंगे।
मज़दूर की भूख की कराह से
बच्चों की माताओं की रोती पुकार तक,
घसीटते हुए सड़कों पर चलते जाने वाले उन तस्वीरों को
हम ना भूलेंगे।
रोते हुए उस पिता की करुण चीत्कार को
लाशों को कंधा देने की गुजर को,
उन दर्दनाक लम्हों से जूझती तुम्हारी ज़िंदगी को
हम ना भूलेंगे।
कि हे मालिक! तुमने क्यों खेला इनके साथ ऐसा खेल?
जिसमें ना था इनका दोष ना था इनका मेल
हवाई तश्तरी पर उड़ते आया वह मौत का सौदागर
जिसने मारा इन गरीबों के पेट पर खंजर।
कि उन खुशनसीब को बचाने तुमने भेजा हाथी-घोड़ा
और इन बदनसीब को तुमने राम भरोसे ट्रेन पर छोड़ा,
कि भगवान श्री राम ने भी देख लिया कलयुग कैसा रंग लाएगा
राम राज्य लाने वाला, भस्मासुर बन जाएगा।
पर तुम भूलना ना कभी उन आंसुओं को
उस लाचारी को, उस महामारी को,
जिसने कोशिश की तुम्हें ललकारने की
तुम्हें हराने की, तुम्हें मिटाने की।
कि मैं झुका हूं पर हारा नहीं
विधि के विधान ने अभी मुझे मारा नहीं ।
कि मैं फिर से वापस एक दिन आऊंगा,
और उन हवाई किलों में बैठे सौदागरों को कहूंगा,
“हम ना भूलेंगे! हम ना भूलेंगे”