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बीते दस दिनों में लखीमपुर खीरी में रेप और हत्या का दूसरा मामला आया सामने

हाल ही में उत्तरप्रदेश के लखीमपुर खीरी में एक रेप और हत्या का मामला सामने आया है। खीरी पुलिस ने रेप और हत्या की पुष्टि की है, उनके अनुसार लड़की की हत्या किसी धारदार हथियार से गला काटकर की गई, साथ ही उसके शरीर पर चोट के निशान भी पाए गए हैं।

घटना सोमवार की है जब लड़की कक्षा 11वीं की मार्कशीट के साथ स्कॉलरशिप फॉर्म भरने गाँव से सुबह करीब 8:30 बजे निकली थी लेकिन जब देर शाम तक वापस नहीं लौटी तब ग्रामीणों के साथ मिलकर परिजनों ने तलाश शुरू की लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा।

दस दिन में अपराध का दूसरा मामला आया सामने

मंगलवार की सुबह लड़की की लाश घर से लगभग 200मीटर की दूरी पर एक सूखे तालाब में पाई गई। लखीमपुर खीरी की कुल आबादी 2000 के आस-पास है, यहां दस दिन के अंदर रेप और हत्या का दूसरा मामला सामने आया है।

वहीं, पुलिस का कहना है कि हम अपराधियों को पकड़ने का भरसक प्रयास कर रहे हैं लेकिन हर घटना के साथ मेरा प्रश्न जस का तस खड़ा है। क्या अपराधियों को पकड़ भर लेने से सब कुछ ठीक हो पाएगा?

जाने ऐसी कितनी ही घटनाएं हर रोज़ हर घण्टे देश और दुनिया के कितने हिस्सों में घट रही हैं लेकिन क्या कोई न्याय व्यवस्था 18 वर्षीय उस लड़की की सपने को ज़िंदा कर सकती है? क्या कोई समाज कोई कानून, कोई जांच यह बता सकता है कि वह किन सपनों की गांठ बांधे घर से निकली थी?

आखिर कब तक होती रहेंगी ऐसी घटनाएं?

क्यों और कब तक हम अपराधियों को पकड़ने और सज़ा दिलाने की बात करते रहेंगे लेकिन अपराधी तो पकड़े जाने के बाद भी सरे आम घूम रहे होते हैं, कुछ अपरिचित तो कुछ परिचितों के वेश में। पता नहीं हमारे समाज की बनावट ऐसी क्यों है कि इन घटनाओं पर लगाम कसना कभी सहज नहीं हो पाया।

ऐसी किसी भी घटना पर हमारे मुंह से अनायास ही निकल पड़ता है, “बुरा हुआ!” लेकिन आज मुझे ऐसे कई वाकिये याद आ रहे हैं जहां बेटियों के जन्म पर मैंने बढ़े-बूढियों को रोते देखा है और जब उनसे पूछा क्या लड़कियां इतनी बुरी होती हैं, तब मुझे जबाव दिया गया नहीं लड़कियां बुरी नहीं होती लेकिन उनके साथ झंझट बहुत होते हैं, परेशानियां बहुत होती है।

प्रतीकात्मक तस्वीर

बालमन कभी समझा ही नहीं था कि आखिर मुझसे या किसी और लड़की से किसी को परेशानी कैसे हो सकती है? वाकई ऐसी घटनाएं उन चेहरों को मेरे सामने ला खड़ा करती हैं जिनके लिए लड़कियां परेशानी का सबब रही है।

समाज पहले ही क्यों तय कर देता है लड़कियों के दायरे?

सच ही तो था वो जबाव! वो कक्षा ग्यारह की मार्कशीट और आधार कार्ड किसी लड़के का रहा होता तब यह घटना नहीं घटी होती। वो लड़की यदि अकेले घर से ना निकली होती तब भी यह घटना नहीं घटती। मैं जानती हूं, ऐसे कितने ही सवाल-जवाब अपनी-अपनी जगह ले चुके होंगे।

निर्भया मामले को चाहे कितने भी साल गुज़र गए हों, अंततः हमने जीत हासिल भी की लेकिन यह कहने से अब भी गुरेज़ नहीं किया जाता कि इतनी रात गए बाहर घूमना ही क्या?

हम उस समाज का हिस्सा हैं जहां लड़कियों के लिए सब दायरे पहले ही तय कर दिए जाते हैं और जड़ों में एक पुरुष प्रधान धारणा सींच दी जाती है। एक ओर लड़कों को घूमने, फिरने कुछ भी पहनने खाने की आज़ादी है। वहीं, लड़कियों की सब लकीरें तय हैं।

जब हम ऐसे माहौल में बड़े होंगे जहां दो लोगों की परवरिश में इतना अंतर हो, वहां एक लड़की का रेप और हत्या कुछ अजीब तो नहीं है। क्यों हम एक सभ्य समाज का हिस्सा बनकर भी इतने असभ्य और जाहिल हैं? कि अपनी नस्लों को ये नहीं समझा सके की एक लड़की और लड़के की शारीरिक बनावट उनकी प्रकृति है, उनकी सुंदरता है, ना की यौन इच्छा को पूरा करने का साधन।

वहीं, जहां घरों में प्रताड़ित होती महिलाओं को सामान की तरह तरजीह दी जाती हो। वहां यह अपराध किसी एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि पूरे समाज का है। वैसे भी किसी भी आपराधिक प्रवृति में मानसिकता और विचारधारा का खासा महत्व होता है और जब पुरुष प्रधान समाज से सवाल किया ही नहीं जाएगा, तो जवाब की फिक्र किसे होगी।

वहीं, लड़की के पिता का कहना है कि मुझे बस न्याय चाहिए, मेरी और भी बेटियां हैं। वे अब किस भरोसे पर बाहर जाएंगी। उम्मीद है कि लड़की के पिता को न्याय मिल जाए। हजारों केस की तरह यह घटना भी किसी फाइल में कैद होकर ना रह जाए।

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