Site icon Youth Ki Awaaz

“मेरी जाति जानने के बाद मकान मालिकों ने मुझे कमरा देने से मना कर दिया था”

भारत की अधिकांश आबादी गाँवों में रहती है और वहां आज भी लोगों को शिक्षित होने, आत्मनिर्भर बनने एवं बौद्धिक जागरूकता लाने की ज़रूरत है। इसकी कमी के कारण ही गाँव के लोग अभी भी अपेक्षाकृत अधिक धर्मभीरू हैं तथा जात-पात और ऊंच-नीच में अधिक विश्वास करते हैं।

मकान मालिकों ने जाति के आधार पर कमरा देने से कर दिया मना

मुझे अपने कॉलेज के दिनों में रूम किराए पर लेने के दौरान गोला गोकरननाथ (खीरी) में एक मकान मालकिन से अपमानित होना पड़ा था, जब उन्होंने मेरी जाति पूछी और मैंने ‘शिड्यूल्ड कास्ट’ बताया, तो तुरंत ही उन्होंने आपत्तिजनक और जातिगत टिप्पणी करते हुए मकान देने से मना कर दिया।

इसके अलावा पेशे से शिक्षिका रहीं एक मकान मालकिन ने मेरे पिताजी से पहले से परिचित होने और शिक्षक होने के नाते अपना मकान तो किराए पर दे दिया लेकिन कुछ दिनों बाद जब उन्हें मेरी जाति शिड्यूल्ड कास्ट होने की जानकारी हुई, तो उन्होने अपने हैंडपम्प से पानी लेने और कॉमन गुशलखाने के प्रयोग से मना करते तुरंत मकान छोड़ने के लिए मज़बूर कर दिया।

प्रतीकात्क तस्वीर। फोटो साभार- pexels

इसमें बड़ी विडंबना की बात यह है कि वही शिक्षिका अपनी नातिन के लिए मेरे इंटरमीडिएट के नोट्स लेने में कोई परहेज़ नहीं करती थीं। ऐसे में मुझे मकान मालिकों ने जाति के आधार पर कमरा देने से मना कर दिया।

कानून के बावजूद नहीं बदल पा रहा है जातिवादी समाज

देश की आज़ादी के बाद धर्म, जाति, लिंग आदि के आधार पर कोई भेदभाव ना किए जाने सम्बंधी कानूनी प्रावधान होने के बावजूद आज भी जातिगत भेदभाव एवं छुआछूत की परंपरा का पाया जाना, मानवता के लिए कलंक है।

अतएव आधुनिक भारत के सर्वांगीण विकास के लिए हिन्दू धर्म की इन सड़ी-गली एवं अव्यावहारिक व्यवस्थाओं को त्याग कर समस्त मानव को जाति के बंधन से मुक्त करना होगा और बिना भेदभाव के रोटी-बेटी का सम्बंध स्थापित करवाने को बढ़ावा देना होगा। इसी में सभी का हित भी है।

जय भारत।

आर.एस.विद्यार्थी, नीलकंठ अपार्टमेंट, सेक्टर-62, नोएडा, ज़िला-गौतमबुद्ध नगर (उत्तर प्रदेश ),भारत।

Exit mobile version