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धोनी टैक्स्ट बुक क्रिकेट से अलग हमेशा अपने अंदाज़ में खेलते रहे

भारतीय क्रिकेट के महानत कप्तानों में से एक कैैप्टन कूल महेंद्र सिंह धोनी ने क्रिकेट को अलविदा कह दिया है। हम सबको पता था कि यह दिन जल्द ही आने वाला है लेकिन खुद धोनी के मुंह से यह सुनकर लग रहा है, जैसे बचपन में चला गया हूं।

प्रतीकात्मक तस्वीर, गेटी इमेजेज

लंबे बालों वाली फोटो हमेशा पसंद आती रही, क्योंकि धोनी पहली बार इसी रूप में पसंद आए थे। धोनी कोई असाधारण आदमी नहीं हैं। असाधारण प्रतिभा रखने वाले एक साधारण आदमी हैं। तभी अपना पसंदीदा गाना, “मैं पल दो पल का शायर हूं”, इंस्टाग्राम पर डालकर अलविदा कह गए।

नंबर 7 की जर्सी में कमाल करने वाले खिलाड़ी

मैं और मेरे जैसे छोटे शहर के लाखों बच्चों ने क्रिकेट खेलना शुरू ही इसलिए किया था, क्योंकि धोनी यह खेला करते थे। बचपन में उनके बारे में जब बातें होती थी, तो यही कहा करते थे कि अरे कोई बड़े बालों वाला खिलाड़ी आया है जो खूब छक्के मारता है। जब धोनी ने वर्ल्ड कप उठाया था, तो मेरा यकीन मानिए भारत के दूर-दराज के गाँवों और छोटे शहरों के करोड़ों बच्चों ने उनके साथ वो कप उठाया था।

प्रतीकात्मक तस्वीर

यह शब्दों में बता पाना मुश्किल है कि धोनी में ऐसा क्या था कि लगभग 15 सालों तक मैंने यही मनाया कि कम से कम 40 ओवर आते-आते तो भारत के 3-4 विकेट गिर ही जाएं, ताकि 7 नंबर की जर्सी स्टेडियम में प्रवेश कर सके। कई बार तो खुशी होती थी जब भारत के 3-4 विकेट 10-15 ओवर तक गिर जाते थे, क्योंकि उस दिन धोनी को ज़्यादा देखने का मौका मिलता था।

आप किसी और को 7 नंबर की जर्सी पहना कर मैदान में प्रवेश करा दें, तो मैं पीछे से देख कर ही बता सकता हूं कि यह धोनी नहीं है। वो जब बड़े बालों के साथ स्टेडियम में प्रवेश करते थे, तो उनके बाल उनके कंधे से टकराते थे।

हमेशा खुद पर भरोसा रखने वाले माही

धोनी दुनिया के इकलौते खिलाड़ी हैं जिन्होंने एकदिवसीय मैचों में 5-6 नंबर पर बल्लेबाज़ी करते हुए 10,000 से ज़्यादा रन बनाए। ऐसा नहीं है कि वे ऊपर नहीं खेलना चाहते थे, मगर उन्होंने खुद कहा था कि “समबडी हैज टू डू द डर्टी जॉब।” खुद पर इतना भरोसा बहुत कम खिलाड़ी को होता है।

प्रतीकात्मक तस्वीर, तस्वीर साभार: गेटी इमेजेज

धोनी का स्टाइल ही अलग था। हर गेंद से पहले अपना अंगूठा हेलमेट के अंदर डाल कर आंख के नीचे का पसीना पोंछते थे, दस्ताने खोल कर फिर बांध कर अजीब तरीके से अपनी दोनों कलाई टकराते थे। उंगली दिखाकर फिल्डर गिनते थे कि कितने सर्किल के अंदर हैं, कितने बाहर हैं।

दौड़ते तो इतने तेज़ थे कि ज़्यादातर पैरों से क्रीज़ के अंदर पहुंच जाते थे। बल्ला दूर से क्रीज़ के अंदर घसीटने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती थी। मगर आखिरी अंतरराष्ट्रीय मैच में उन्होंने दूर से ही बल्ला क्रीज़ के अंदर पहुंचाने की कोशिश की मगर रन आउट हो गए।

क्रिकेट बुक से अलग था धोनी के खेलने का अंदाज़

धोनी जब खेलते थे, तो मानो क्रिकेट की किताबों में लिखे नियम शर्मा जाते होंगे। आखिर हेलीकॉप्टर शॉट किस किताब में लिखा होता है? या शरीर पर आती गेंद पर नटराज पोजिशन में आकर शॉट मारना? या विकेटकीपिंग करते वक्त विकेट की ओर जाते बौल को थप्पड़ मार देना?

बॉटम हैंड से स्ट्रेट में इतनी ज़ोर से मारते थे कि लगता था कि अगर बीच में कोई फिल्डर आ गया, तो गेंद उसको लेते हुए सीमा रेखा के पार चली जाएगी। एक ऐसा खिलाड़ी जो खूबसूरत कवर ड्राइव भी नहीं मारता था, बल्कि कवर में बैकफुट पर आकर बॉल को पंच मार देता था।

प्रतीकात्मक तस्वीर, तस्वीर साभार: सोशल मीडिया

उस पर देश को इतना भरोसा था कि जब 2015 वर्ल्ड कप सेमीफाइनल में 36 गेंदों में 100 से ज़्यादा रन चाहिए थे तब भी लोग देख रहे थे। क्योंकि धोनी क्रीज़ पर मौजूद थे। उनके आउट होने के बाद ही लोगों ने टीवी बंद किया। उससे पहले भी कर सकते थे। आखिर 36 गेंदों में 100 से ज़्यादा रन लगभग असंभव ही था।

आखिर क्रिकेट की किस किताब में यह भी लिखा होता है कि विकेटकीपर हाथ में गेंद आने के बाद तुरंत स्टंप करने की कोशिश नहीं करेगा, बल्कि कुछ मिनी सेकंड का इंतज़ार करेगा और जैसे ही बल्लेबाज़ अपना पैर ऊपर उठाए तब स्टंप करेगा? मगर धोनी ने ऐसा किया बांग्लादेश के खिलाफ।

आखिर किस किताब में ये लिखा होता है कि हवा में गेंद मारने पर स्ट्राइक बदलने के लिए तुरंत नहीं भागना है, बल्कि उन चंद सेकंडों में ये सोचना है कि कहीं यह ओवर की आखिरी गेंद तो नहीं है? धोनी ने कई बार ऐसा किया।

एक घटना जो याद आती है, वह आईपीएल की है जब वो पुणे की तरफ से खेल रहे थे। अपने साथी स्टीव स्मिथ के साथ बीच क्रीज़ पर ही रुककर इंतज़ार करते रहे कि अगर कैच हो गया तो स्ट्राइक नहीं बदलेंगे, क्योंकि ओवर की आखिरी गेंद थी। यह साधारण-सी बात स्टीव स्मिथ के दिमाग में भी आ सकती थी, मगर नहीं आई।

धोनी विकेट के पीछे से बैट्समैन का हिलता पैर देखकर अपने गेंदबाज को चिल्ला कर आगाह कर देते थे कि “इसके पैर हिल रहे हैं। आडा मारेगा।” और वो आडा ही मारता था।

जो खिलाड़ी बल्ले का किनारा लेकर जाती हुई गेंद को पैर हवा में उठा कर विकेट के पीछे रोकता था, उसके बारे में लिखने के लिए शब्द कम पड़ जाएंगे। धोनी को अलविदा कहने के लिए मैं कभी शब्द इकट्ठा नहीं करना चाहता था। कैप्टन तो कई होते हैं, धोनी लीडर थे जो जीतने के बाद ट्रॉफी अपने खिलाड़ियों को देकर खुद कोने में खड़े हो जाते थे।

खिलाड़ी तो कई आएंगे और जाएंगे, मगर बहुत कम ऐसे होंगे जिसके लिए पूरा स्टेडियम अपनी ही टीम के विकेट गिरने पर जोश से भर जाता हो, अगर उसके बाद धोनी आने वाले हो। बहुत कम ऐसे खिलाड़ी आएंगे जिसके पहले आउट होने वाला खिलाड़ी इतना बदनसीब होगा कि उसी की क्राउड उसके आउट होने पर जोश से भर जाए। बहुत कम ऐसे खिलाड़ी आएंगे जो छक्का मार कर वर्ल्ड कप जीताएंगे।

रवि शास्त्री के ये शब्द हमेशा हमारे ज़हन में रहेंगे;

“Dhoni finishes off in style. A magnificent strike into the crowd. India lifts the world cup after 28 years and party starts in the dressing room. And it’s the Indian captain who has been absolutely magnificent in the night of the final.”

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