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“…अब कभी नहीं कहा जा सकेगा, अरे! अभी धोनी है ना यार संभाल लेगा”

नयन मोंगिया के रिटायरमेंट के बाद भारत एक विकेटकीपर की तलाश में लगा हुआ था। फिर उस दौर में आते-आते एडम गिलक्रिस्ट और संगकारा जैसे विकेटकीपरों ने विकेटकीपिंग के लिए एक अलग ही मानदंड स्थापित कर दिया था जिससे विकेटकीपर को एक बल्लेबाज के रूप में भी निपुण होना ज़रूरी समझा जाने लगा।

फिर भारत ऐसे विकेटकीपर की तलाश में लगा हुआ था जो बल्लेबाजी भी बेहतर कर सके। सबा करीम, दीप दासगुप्ता, समीर दीघे, अजय रात्रा, विजय दहिया आदि अनेक विकेटकीपर आए लेकिन सब के सब फेल ही रहे। फिर मौका मिलता है झारखंड के एक छोटे से शहर से आने वाला लम्बे बालो वाले एक लड़के महेंद्र सिंह धोनी को।

दिसम्बर 2004 में धोनी ने किया अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में डेब्यू

दिसम्बर 2004 में बांग्लादेश के खिलाफ चटगांव में धोनी को अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण करने का अवसर मिला। पहले मैच में धोनी शून्य पर चलते बने फिर पूरी सीरीज़ भी उनके लिए कुछ खास नहीं रही और एक बार ऐसा लगा कि धोनी की भी वही कहानी होने वाली है जो अबतक के विकेटकीपरों की होती रही है।

प्रतीकात्मक तस्वीर

फिर विशाखापट्टम में पाकिस्तान के खिलाफ तेज़ गति से रन बनाने के लिए धोनी को प्रमोट किया जाता है, धोनी ने यहां मिले मौके का पूरा फायदा उठाया और 148 रनों की तूफानी पारी खेल डाली। यहां से धोनी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और निरन्तर ऊंचाईयां छूते रहे। कुल 350 वनडे में 50.58 की औसत से धोनी नें 10 शतकों सहित 10,773 रन बनाए।

जयपुर में श्रीलंका के खिलाफ 183 रन की खेली गई उनकी पारी धोनी के वनडे कैरियर सर्वश्रेष्ठ पारी है। वनडे क्रिकेट में एक साल तक लगातार अच्छे प्रदर्शन के कारण साल 2005 में ही टेस्ट क्रिकेट में भी उन्हें पदार्पण का मौका मिला।

टेस्ट में धोनी का प्रदर्शन उनके वनडे कैरियर के सामने फीका रहा लेकिन इसे ठीक-ठाक करियर कहा जा सकता है। धोनी नें 90 टेस्ट में 38.09 की औसत से 6 शतकों सहित 4876 रन बनाए।वहीं 98 टी 20 मैचों में धोनी नें 37.6 की औसत से कुल 1617 रन बनाए जिनमे 2 पचासे शामिल हैं।

जबकि विकेट के पीछे धोनी नें कुल 829 शिकार किए जिसमें वनडे में 321 कैच, 123 स्टम्पिंग और टेस्ट में 256 कैच, 38 स्टम्पिंग और टी-20 में 57 कैच और 34 स्टम्पिंग शामिल है।

जब धोनी बने ‘कैप्टन’

धोनी को जब कप्तानी मिली, तो टीम इंडिया के हालात अच्छे नहीं थे। वेस्टइंडीज में हुए विश्वकप में टीम इंडिया का प्रदर्शन बहुत बुरा रहा था।नए नवेले क्रिकेट फॉर्मेट टी-20 के विश्वकप के लिए कप्तान चुना जाना था। वेस्टइंडीज में हार के बाद गांगुली, द्रविड़ और तेंदुलकर नें अपने आपको दौड़ से बाहर कर लिया था।

फिर भी सहवाग, युवराज, हरभजन की मौजूदगी के बावजूद धोनी की क्रिकेट समझ को महत्व देते हुए, उन्हें तरजीह दी गई। फिर क्या था धोनी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। टी-20 विश्वकप फाइनल में कम अनुभवी जोगिंदर शर्मा को आखिरी ओवर देकर उन्होंने अपनी दिलेरी का परिचय दिया।

प्रतीकात्मक तस्वीर

भारत पाकिस्तान को हराकर धोनी के नेतृत्व में टी-20 विश्वकप विजेता बना। बाद में धोनी को वनडे और टेस्ट की कमान भी दी गई। उन्होंने इन ज़िम्मेदारियों को बखूबी निभाया।

आस्ट्रेलिया में सी बी सीरीज से लेकर टेस्ट में नम्बर वन पर भारत को पहुंचाना रहा हो या फिर टी-20 विश्वकप, 2011 वनडे विश्वकप और चैम्पियन्स ट्राफी सहित तीनों ट्राफी  को जीतने वाला इकलौता खिलाड़ी बनना रहा हो, धोनी ने हर जगह अपना परचम फहराया।

2008 के सर्वश्रेष्ठ वनडे क्रिकेट की अंतर्राष्ट्रीय ट्राफी के साथ भारत के राजीव गांधी खेल रत्न सहित अनेक पुरस्कार भी धोनी के नाम रहे।  उन्होनें भारतीय क्रिकेट को एक नई ऊंचाई दी।

अच्छे क्रिकेटर के साथ अच्छे इंसान भी थे माही

धोनी का क्रिकेट करियर तो शानदार था ही है लेकिन उनका व्यक्तित्व उससे भी बड़ा था। बड़े से बड़ा मैच जीतने के बाद भी धोनी शायद ही कभी भावनाओं के उफान में बहे हों। हर जीत के बाद हाथ में एक स्टम्प लिए धोनी का हल्का मुस्कुराहट भरा चेहरा उनका चिर-परिचित अंदाज़ बना।

फिर कितने भी विपरीत हालात हो उनके चेहरे पर कभी भी शिकन नहीं दिखी। धैर्य, जज्बा, शानदार रणनीति एक नेतृत्वकर्त्ता की सारी खूबियां धोनी में भरी हुई थी। पूरे क्रिकेट कैरियर में सफलताओं की बड़ी से बड़ी कहानियां गढ़ने के बाद भी धोनी शालीनता की प्रतिमूर्ति बने रहे।

प्रतीकात्मक तस्वीर

एक छोटे से शहर, क्रिकेट के हब से परे रांची की एक साधारण-सी पृष्ठभूमि से आने वाले क्रिकेट की परम्परागत तकनीक का अभाव यानी सबकुछ लीक से हटकर था लेकिन धोनी नें अपने जीवन में जो शॉट खेले, वे एक मानदंड बनते रहे। कभी परवेज मुशर्रफ उनके बालों के दीवाने बने, तो कभी उनकी अपनी तकनीक से हेलिकॉप्टर शॉट का ईजाद हुआ।

बुलंदियों पर पहुंचने के बाद भी धोनी अपने छोटे शहर को नहीं भूले शायद उन्हीं की बदौलत रांची में अंतर्राष्ट्रीय मैच होने लगे। अपने पूरे जीवन में धोनी नें लीक से हटकर अपना एक शानदार रास्ता बनाया। धोनी किसी भी व्यक्ति के लिए एक उपयुक्त आदर्श हो सकते हैं।

निश्चित ही मैदान उनके सूनेपन को महसूस करेगा और नीली जर्सी में होने वाले क्रिकेट मैंचों के आखिरी ओवरों में, अब कभी नहीं कहा जा सकेगा कि अरे, अभी धोनी है ना यार संभाल लेगा!

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