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“सावन आया है, यह अब वातावरण नहीं मोबाईल बता रहे हैं”

अचानक कुछ दिन पहले कोयल के बोलने की आवाज़ सुनी तो मैं हैरान हो उठी और बाहर निकल कर देखा, तो कुछ बच्चे कोयल का चित्र लगाकर पीछे से मोबाइल से कोयल की बोलने का रिंगटोन बजा रहे थे। मानो सावन आने का अनुभव कर रहे हो। सावन आया है, यह अब वातावरण नहीं मोबाईल बता रहे हैं।

फिर पेड़ों को झूमता देखने की मेरी भी जिज्ञासा जाग गई लेकिन इमारतों से घिरे शहर में पेड़ कहां मिलते हैं। एसे में मैंने भी यूट्यूब खोला और लहराते पेड़ों का वीडियो देखकर मन बहला लिया।

प्रतीकात्मक तस्वीर, तस्वीर साभार-पिक्साबे

अब हवाओं की सरसराहट नहीं वाहनों का शोरगुल सुनाई दे रहा है। कोयल की जगह कारखानों का शोर है। फलों में मिठास की जगह दवाओं की खटास है और मौसम भी अपनी रंगत की जगह कहर मचा रही है। कुछ लोग कह रहे थे सावन तो आया बरसात नहीं आई और जहां आई वहां इतनी की बाढ़ से लोगों में कोहराम मच गया। सावन तो हम जैसों के लिए सामान्य ही था जो इमारतों से घिरे है।

यह कैसा डिजीटल सावन है?

अब तो सावन का पता हर सोमवार को व्हाट्सएप या फेसबुक स्टेटस पर देखकर लगा लिया जाता है। सोमवार आते ही डीपी भोलेनाथ के चित्र में बदल जाती है। साथ ही सोमवार के सोमवार महादेव भी अपडेट होते जा रहे हैं ।

चिड़ियों की चहचहाहट और मोर का नृत्य भी ग्राफिक्स में ही दिखता है। यह डिजिटल सावन है। अब कवियों की शायरी और गुलज़ार गीतों के बजाय सावन का हिप हॉप और रैप ट्रेंड कर रहा है। अब तो इंडिया इतना डिजिटल हो गया है कि लोग एक-दूसरे से मिलने में भी हिचकिचाते हैं। सावन की हरियाली तो नोटों में भी दिखने लगी है जो लोग सावन आया कहकर धूम मचाते थे अब नोटों की गर्मी दिखा रहे हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर, तस्वीर साभार-गेटी इमेजेज

एक वक्त था जब सावन आते ही हवाओं में ताजगी आती जाती थी। बिजली जमीन को चूमने लगती थी। बच्चे रेन डांस करते थे। कागज की नाव बनाते थे। इंद्रधनुषी रंग में सारा जग रम जाता था। हर सोमवार शिव पार्वती के दर्शन के नाम पर प्रेमी रिंकिया-पिंकीया और चिंकीया के दर्शन करते थे। दोस्तों के साथ गरमा-गरम चाय और पकौड़े खाने जाते थे लेकिन अब कुछ ऐसा आलम है कि दोस्तों मिलने से भी कतराते हैं।

अब तो सावन आते ही फूल नहीं खिलते, बल्कि गड्ढे निकल आते हैं। खेतों में पानी नहीं बाढ़ आ जाती हैं। मिट्टी की खुशबू की जगह अब कीचड़ के बदबू आती है। खेतों में लहराते फसल और किसानों की जगह आपदा प्रबंधन टीम की तैनाती नज़र आती है। सैकड़ों को जीवन देने वाला सावन अब जान ले जाता है। शायद अब जान-माल की हानि हुए बिना हमारे सिस्टम को सावन रास नहीं आता है।

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