Site icon Youth Ki Awaaz

“लड़ने वाले धर्म के लिए लड़ रहे थे, भगवान के घर के लिए नहीं”

कैसा कोलाहल मचा हुआ है? किस बात का शोर है? ईश्वर का घर है, नाम चाहे कोई-सा भी दे दो। मंदिर और मस्जिद में क्या फर्क है? बस इतना कि लोगों ने इसको धर्म के आधार पर बांट दिया है।

मंदिर-मस्जिद की लड़ाई भगवान के लिए नहीं धर्म के लिए हुई

गंगा जमुनी तहज़ीब के आधार पर देखा जाए तो भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है। यहां सभी धर्म के लोगों को एक समान मान्यता प्राप्त है। अयोध्या में मंदिर-मस्जिद के दो दशकों तक चली लड़ाई का आधार मुझे आज तक समझ नहीं आया। लड़ने वाले धर्म के लिए लड़ रहे थे भगवान के घर के लिए नहीं।

प्रतीकात्मक तस्वीर

जैसा कि हम सब जानते हैं भगवान श्री राम का जन्म अयोध्या में हुआ था। उनके जन्म से जुड़ी बहुत-सी धारणाएं अयोध्या में मौजूद हैं। अयोध्या का अर्थ है ‘अयुद्ध’ जहां कभी युद्ध नहीं होता। इसकी संपन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है।

अथर्ववेद में यौगिक प्रतीक के रूप में अयोध्या का उल्लेख है- “अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या। तस्यां हिरण्मयः कोशः स्वर्गो ज्योतिषावृतः॥” (अथर्ववेद — 10.2.31)।

रामायण के अनुसार अयोध्या की स्थापना मनु ने की थी। सरयू नदी के किनारे बसा हुआ यह शहर अपनी ऐतिहासिक मंदिरों के लिए बहुत प्रसिद्ध है। इसीलिए अयोध्या को मंदिरों का शहर भी कहा जाता है।

क्या कहता है इतिहास?

बाबर मुगलवंश का शासक था। ज़हीरुद्दीन मुहम्मद बाबर का जन्म उज्बेकिस्तान में हुआ था। वह मुगल साम्राज्य का संस्थापक था। इतिहास के कई शोध अभी पूर्ण नहीं हुए हैं, मगर यह कहना गलत नहीं होगा कि मुगल वंश के कई शासकों ने कट्टरता का साथ दिया।

वहीं, उनके पोते अकबर ने भारत में मिसाल कायम की। जिसका प्रभाव हम आज भी देख सकते हैं। भारत में मुगलों का बहुत अधिक बोलबाला रहा। कई मुगल शासकों ने कई मुहिम चलाई जो वास्तव में गलत थीं। जैसे धर्मांतरण करना या मस्जिदों का निर्माण करना आदि।

मुगल काल के आखिरी शासक औरंगज़ेब के कारनामों से इतिहासकार बहुत ही अच्छी तरह से रूबरू हैं। कई इतिहासकारों का मत है कि अयोध्या में स्तिथ बाबरी मस्जिद से बाबर का कुछ लेना देना नहीं है, वहीं कुछ इतिहासकारों का मत है बाबर ने मंदिर को शहीद करवाकर मस्जिद का निर्माण किया।

तथ्यों को टटोला जाए तो 1206 ईसवीं से 1526 ईसवीं तक भारत पर दिल्ली सल्तनत का बोलबाला था। सय्यदवंश, तुगलक वंश, आदि यह सब दिल्ली सल्तनत का ही हिस्सा रहे। सम्पूर्ण इतिहास को अगर निचोड़ा जाए और देखें तो भारत में दिल्ली सल्तनत से पहले मुस्लिम शासकों का भारत के किसी भी हिस्से में कोई भी अधिकार नहीं था।

सभी धर्मों का होना चाहिए बराबर सम्मान

ऐसे में, बात यहीं आकर मिश्रित होती है कि मंदिरों के देश में मुस्लिम शासकों ने कई मंदिरों को शहीद ही नहीं, बल्कि लोगों का धर्मांतरण भी करवाया जो एक बहुत ही अशोभनीय बात थी। कोई धर्म किसी के साथ भी ज़बरदस्ती करने की इजाज़त नहीं देता। यहां मैं कुछ कुरान की आयतों का हिंदी अनुवाद लिखना चाहूंगा जिसमें साफ तौर पर कहा गया है कि इस धर्म में ज़बरदस्ती की कोई जगह नहीं है।

(2:256) “दीन में किसी तरह की ज़बरदस्ती नहीं।”

(9:6) और (ऐ रसूल) अगर मुशरिकीन (दूसरे धर्म) में से कोई तुमसे पनाह मांगे, तो उसको पनाह दो और उसे उसकी अमन की जगह पर वापस पहुंचा दो।

यह दो आयतें कुरान से ली गईं हैं। इसमें साफ तौर पर लिखा है। आप किसी के साथ ज़बरदस्ती नहीं कर सकते और अगर कोई दूसरे धर्म का तुमसे पनाह मांगे, तो दो और सही सलामत उसे उसके घर पहुंचा दो।

मगर मुगल साम्राज्य के कुछ बादशाहों ने मुस्लिम धर्म तो अपना लिया मगर उसको समझने में विफल रहे। मैंने अपने अभिभावकों से यही सीखा है कि अपने धर्म का पालन करो और दूसरे धर्म की निंदा कभी ना करो।

मंदिर-मस्जिद दोनों ही हैं ईश्वर का घर

मंदिर भी ईश्वर का घर है और मस्जिद भी। वास्तव में मंदिर को शहीद करके अगर मस्जिद बनवाई जाए तो क्या इससे ईश्वर खुश होगा? बिल्कुल नहीं। क्योंकि आपने कुरान की आयतों की अवहेलना की और अपने धार्मिक ग्रन्थ को नहीं माना। यह वेद, पुराण, धार्मिक ग्रन्थ सिर्फ घरों में सजाने के लिए नहीं होते। इनसे सीख लेनी चाहिए।

प्रतीकात्मकत तस्वीर, तस्वीर साभार: सोशल मीडिया

इसको सिर्फ रटना नहीं चाहिए इसके एक-एक शब्द के रस को अपने अंदर उतारना चाहिए। अपने मन को पवित्र रखें। हिंसा और युद्ध में कुछ नहीं रखा। छोटी-सी ज़िन्दगी में धर्म की आड़ में आप किसी भी बुरी कृति को अंजाम देंगे, तो आपकी दुनिया में और आपके अंत के बाद आपको कष्टों के अलावा कुछ भी हासिल नहीं होगा।

धर्म से बढ़कर है मानवता

मैं अपनी ओर से सत्यापित करता हूं कि मैं अपने मन और अपनी आत्मा से तृप्त हूं कि भगवान का घर बनने की नींव रखी जा रही है। मैं यहां हिन्दू और मुस्लिम धर्म को अलग हटा कर देख सकता हूं और इस पावन पर्व में मन पर रखे कई मन के बोझ को कम करता हूं।

मैं और मेरा परिवार बहुत लिबरल है। हम ईद के साथ-साथ दिवाली भी मनाते हैं और भंडारे की पूरी और सब्ज़ी को कौन भूल सकता है। बचपन में रामलीला में रावण और राम के चरित्र को लेकर वाद-विवाद आज भी याद आते हैं, तो दिल मसोस उठता है और एक छोटी-सी मुस्कान भी आ जाती है।

मस्जिदों की अज़ान के साथ-साथ मंदिरों की घण्टी की गूंज मुझे आज तक याद है। पंडित जी से स्टूल मांग कर लाना फिर मंदिर का बड़ा-सा घण्टा बजाना सभी का दिल मोह लेता था। आज भी मेरे पिताजी खान साहब रामलीला वाले के नाम से मशहूर हैं।

बचपन में नवरात्रों में मेरी बहनों के साथ-साथ मुझे भी कन्या पूजन में जाना होता था, क्योंकि मैं लंगुर होता था। ईद की सेवईयों से मेरा घर मेरे दोस्तों के साथ-साथ अम्मी की सहेलियों से भी भरा रहता था और आज भी जन्माष्टमी के दिन मेरे घर के सामने मेरे घर के बच्चे छोटे-छोटे खिलौनों से खूब सजावट करते हैं। मैंने सभी को धर्म नहीं, बल्कि मानवता सिखाई है। जो वास्तव में दिल की खुशी की हकदार है।

मेरा सभी से अनुरोध है चाहे वो मुस्लिम हो या ईसाई। आप सभी लोग इस खुशी में शामिल हों और देश में अपनेपन और एकता का सुबूत दें। प्यार करें और प्यार से जिएं। प्यार वह हथियार है जिससे दुश्मनों का दिल भी जीता जा सकता है यहां तो सब अपने और अपने वतन के हैं।

मैं राम मंदिर के शिलान्यास पर सभी देशवासियों को बधाई देता हूं और अपनी खुशी ज़ाहिर करता हूं।

Exit mobile version