पिछडे़ वर्ग के विद्यार्थियों के लिए पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप, भारत सरकार के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा प्रायोजित एक महत्वपूर्ण योजना है जिसका संचालन संबंधित राज्य सरकारे करती हैं। इस योजना के तहत 100% फंड भारत सरकार की तरफ से दिया जाता है जो कि राज्यों के उपयोगिता तथा डिमांड के अनुसार राज्यों को जारी किया जाता है।
क्या है योजना का लक्ष्य और क्या है वर्तमान स्थिति?
इस योजना का उद्देश्य अनुसूचित जाति के गरीब विद्यार्थियों को उच्च शिक्षा में प्रोत्साहित करना है तथा उन्हें मुख्यधारा में जोड़ना है। इस योजना की गाइड लाइन के अनुसार एससी एसटी (SC ST) विद्यार्थी जिनके माता-पिता की वार्षिक आय 250000 रुपए से कम है, उनकी सारी फीस सरकार के द्वारा रिफंड की जाएगी।
हमने इस रिपोर्ट में भारत सरकार के आंकड़ों के आधार पर विश्लेषण किया है। हमने यह जानने की कोशिश की है कि हमारे देश के दलितों की जनसंख्या के हिसाब से, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप योजना की स्थिति 5 सबसे
बड़े राज्यों में क्या है ?
देश में जनसंख्या के हिसाब से 5 सबसे बड़े राज्य जहां दलितों की जनसंख्या सबसे ज़्यादा हैं वे हैं उत्तर प्रदेश (20.5%) , पश्चिम बंगाल (10.7%) , बिहार (8.2%), तमिलनाडु (7.2%) तथा महाराष्ट्र (6.6%)।
इन राज्यों को भारत सरकार की तरफ से पिछले 4 साल में उनकी उपयोगिता और डिमांड के आधार पर पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप एससी के अंतर्गत कितना पैसा दिया गया और उसके एवज में कितने छात्र लाभान्वित हुए इसका विवरण वित्तीय वर्षवार तथा राज्यवार नीचे टेबल में है।
उत्तर प्रदेश
ऊपर के टेबल में आप देख सकते हैं कि पिछले 4 साल में यानी कि 2015 16 से 2018-19 में उत्तर प्रदेश को कुल 2665.03 करोड़ रुपए दिए गए जिसकी एवज में उत्तर प्रदेश में 32 लाख 87 हजार 230 छात्रों को फीस तथा छात्रवृत्ति दी गई थी।
पश्चिम बंगाल
पश्चिम बंगाल को पिछले 4 साल में कुल 279.09 करोड़ रुपए दिए गए जिसके एवज में पश्चिम बंगाल के 1531515 दलित छात्रों को छात्रवृत्ति दिया गया तथा उनका फीस माफ किया गया।
बिहार
बिहार को पिछले 4 साल में मात्र 115.57 करोड़ रुपए का फंड दिया गया था। वित्तीय वर्ष 2017-18 तथा 2018-19 में बिहार को एक भी रुपया नहीं दिया गया जिसके कारण बिहार में मात्र 181000 छात्रों को छात्रवृत्ति दी गई जो कि अन्य राज्यों के मुकाबले बहुत कम है।
तमिलनाडु
तमिलनाडु को पिछले 4 साल में 3045.74 करोड़ रुपए दिए गए जिसके एवज में तमिलनाडु के 2315610 दलित छात्रों को छात्रवृत्ति का फायदा दिया गया।
महाराष्ट्र
महाराष्ट्र को पिछले 4 साल में 2324.54 करोड़ रुपए का फंड दिया गया तथा उसके एवज में महाराष्ट्र के 1469881 छात्रों को छात्रवृत्ति का लाभ दिया गया।
पांच राज्यों में सबसे खराब स्थिति बिहार की
इन पांच राज्यों में सबसे खराब स्थिति बिहार की है जिसको इन पांच राज्यों के मुकाबले बहुत कम यानी की ना के बराबर फंड दिया गया है जिसके कारण बिहार में लाभार्थी की संख्या अन्य राज्यों के मुकाबले बहुत कम है जोकि बहुत बड़ा चिंता का विषय है।
सवाल उठता है कि केंद्र सरकार ने बिहार को इस योजना के तहत वित्तीय वर्ष 2017-18, 2018-19 मे फंड क्यों नहीं दिया? और 2015-18 तथा 2016-17 मे दिया भी है तो अन्य राज्यों के मुकाबले बहुत कम क्यों?
- क्या बिहार सरकार दलितों के सामाजिक और शैक्षिक विकास से संबंधित योजनाओं में बड़े पैमाने पर लापरवाही बरत रही है?
- क्या बिहार सरकार को दलितों के शैक्षणिक और सामाजिक विकास से कोई मतलब नहीं है?
- क्या नीतीश कुमार के सुशासन में उनका एससी एसटी कल्याण विभाग मृत प्राय हो गया है?
- दलितों के शिक्षा से जुड़े महत्वपूर्ण पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप योजना में इतने बड़े पैमाने पर लापरवाही के कारण उच्च शिक्षा से वंचित हुए दलित विद्यार्थियों के लिए ज़िम्मेदार कौन?
- इतने बड़े पैमाने पर लापरवाही के बावजूद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ज़िम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ अभी तक कोई एक्शन क्यो क्यों नहीं लिया?
यह तमाम सवाल बिहार सरकार की कार्यशैली और व्यवहार पर उठ रहा है और इनका जवाब बिहार सरकार के जिम्मेदार लोगों को देना चाहिए खासकर की सत्ताधारी दल लोजपा प्रमुख कथा देश की बड़ी दलित नेता रामविलास पासवान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को देना चाहिए।