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‘बेटी बाहर जाएगी तो बिगड़ जाएगी और पढ़ेगी तो घर कैसे संभालेगी’ जैसी सोच कब खत्म होगी?

दुनिया तकलीफों की तंग गलियों में फंसी हुई है, दर्द हर जगह देखा जा सकता है। जिस ओर देखो दर्द और तकलीफ होती है। इसका मूल आधार है कहीं गरीबी तो कहीं घरेलू हिंसा, कहीं बलात्कार तो कहीं अपराध की आंधी।

मैं मानता हूं इस बात के पीछे सीधे तौर पर फैली हुई असमानता, लिंग समस्या और लिंग के आधार पर भेदभाव है। यह भेदभाव यह समानता इंसान की किस पीढ़ी तक जाकर अपना प्रभाव दिखाती है, इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल ही नहीं नमुमकिन भी है।

मेरे सपनों का आधार ही समानता है

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

मुझे लगता है कि महिलाओं को चारदीवारी में ना बांधकर उनको आज़ाद परिंदों की तरह उड़ने देना चाहिए। क्या पता वो पुरुषों से बहुत आगे जाएं, उनको मौका तो मिलना चाहिए मगर यह रूढ़िवादी समाज महिलाओं को कहां मौका देगा?

क्या हम ऐसा माहौल नहीं बना सकते जहां पर महिलाओं के कदम हमारे पीछे ना हों, बल्कि हमारे साथ साथ हों। क्या ऐसा मौसम नहीं हो सकता जिसमें महिलाओं को अपने पंख पसारने का मौका मिल सके। कहीं ना कहीं कोई तो होगा ऐसा भी नारीवादी जो यह सोच रखता होगा कि महिलाओं को भी मौका मिलना चाहिए अपनी काबिलियत दिखाने का।

जब घर में लड़की पैदा होती है तो आजकल परिवारों को उसकी अच्छी परवरिश की चिंता तो होती है मगर आखिर में आकर यही बात आती है कि बेटी अच्छी तरह पढ़-लिख ले क्योंकि उसे दूसरे घर जाना है।

क्यों घर ही क्यों जाना है, क्या वो अपनी पसंद की ज़िंदगी नहीं जी सकती? क्या पता उसका मन ही ना हो शादी करने का, या दूसरे घर जाने का। तो ऐसे में आप उसके साथ ज़बरदस्ती नहीं कर सकते बिल्कुल भी नहीं।

बेटी है, बाहर जाएगी तो बिगड़ जाएगी, ज़्यादा पढ़-लिख लेगी तो पर लग जाएंगे, पढ़ाई करेगी तो घर कैसे संभालेगी और घर नहीं संभला तो शादी टूट सकती है, जो एक प्रलय के रूप में उनके सामने आ जाएगी।

ये सारे शब्द निरर्थक हैं। लड़कियों को भी आज़ाद रखिए, उनका हक भी बेटों के ही बराबर है। मैंने खुद इस बात को अपने रिश्तेदारों के घर में आंखों से देखा है। बेटी और घर की औरतें कितनी ही भूखी क्यों ना हों, वे खाना छू भी नहीं सकती हैं, क्योंकि सबसे पहले खाना पुरुष लोग खाएंगे। उसके बाद महिलाएं! मुझे यह चलन बहुत ही घृणित लगता है। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि सब साथ बैठकर खाना खाएं जिसमें समानता की महक हो?

ऐसा भी तो हो सकता है!

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Getty Images

अगर आप पुरुष हैं और वर्किंग हैं तो भी आप अपनी पत्नी का हाथ बंटा सकते हैं। आपका कुछ बिगड़ नहीं जाएगा यदि कभी आप चूड़ी से खनकते हुए हाथों से धुलते हुए बर्तन थाम लें। कभी पसीने से भरे चेहरे को अपने रुमाल से पोंछकर हवा में बैठने का निमंत्रण भी दे सकते हैं।

कभी ऐसा भी हो अगर आप एक बेटी के पिता हैं तो आप उसके नन्ह-नन्हें हाथों में मेहंदी लगाकर उसको महसूस करवा सकते हैं कि वह कितनी आज़ाद है। अगर आपका दूध मुहा बच्चा है तो उसका नैपकिन बदलने के लिए भी आप आगे आ सकते हैं और बोल सकते हैं, “आज यह काम मैं भी सीखूंगा।”

क्या आपके अंदर इतनी शक्ति नहीं कि आप कभी वीकेंड पर अपनी पत्नी के साथ साथ मिलकर कपड़ों को धोने में मदद करें? आज आप अपनी माँ और पत्नी या बहन से यह ना कहें कि एक ग्लास पानी का दे दो, या चाय बना दो। थोड़ा सा तो हक़ दो जीने का, उसको उड़ने का मौका दो।

क्या सिर पर पल्लू या दुपट्टा रखना अच्छे चरित्र की सनद होती है?

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

क्या आपकी भी सोच ऐसी है? इसका मतलब तो यह हुआ कि आप शॉर्ट्स और स्लीवलेस टीशर्ट पहन रहे हैं तो आप भी चरित्रहीन हुए? मैं इस बात का खंडन करता हूं और पूर्णरूप से निष्काषित करता हूं। एक कपड़े का टुकड़ा आपके चरित्र का निर्धारण नहीं कर सकता। तो यह बात भी आप दिमाग से निष्काषित कर दें कि ऐसा भी होता है।

कपड़े, वेशभूषा, शारीरिक आकर्षण आदि आपको बिल्कुल भी प्रभावित नहीं करते और ना ही आपके चरित्र को। हमको अपनी बहनों, पत्नी, बेटियों को उनके मुताबिक जीने देना चाहिए। उनका मानसिक विकास ऐसे करने की कोशिश करें कि उनमें कुंठा की भावना बिल्कुल शून्य हो।

उनको ज़िन्दगी के सभी समीकरणों से अवगत करवाएं और खुद भी अवगत हों कि उनको क्या चाहिए। उनको किस चीज़ की आवश्यकता है। उनको विकास के लिए समझाएं और बताएं कि जीवन कि कौन-कौन से पाठ अत्यंत ज़रूरी हैं? बेटियों को शिक्षित करने की ज़िम्मेदारी हम पुरुष वर्ग को अपने कंधे पर उठानी होती तभी हम शान से बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा बुलंद कर पाएंगे।

मैंने अपने लेख में सिर्फ बेटियों की शिक्षा पर बात नहीं की है, बल्कि उन पहलुओं को भी छूने की कोशिश की है, जो ये तय करते हैं कि क्या हम बेटियों को शिक्षित करना चाहते हैं?

किसी के साथ ज़बरदस्ती ना करें और ना ही अपना दबाव डालें। जितना हक एक पुरुष होने के नाते मुझे है जीने का उसी तरह उस महिला को भी हक है, जो आसमान में उड़ना चाह रही हैं। आप अपने घर की बेटियों और महिलाओं को मौका तो दें उनको खुद को प्रूव करने का। मुझे पूरा यकीन है आप निराश नहीं होंगे।

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