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“बढ़ती नफरत के दौर में देश कहीं दूसरे बंटवारे की तरफ तो नहीं बढ़ रहा है?”

आज हमारे देश के हालत किसी से छुपे नहीं है बढ़ती नफरत के दौर में देश कहीं दूसरे बंटवारे की तरफ तो नहीं बढ़ रहा है? क्या मुसलमान हिन्दुस्तान को चुनने की सज़ा भुगत रहा है? क्या हिन्दुस्तान ने मुसलमान के साथ अन्याय किया? ऐसे तमाम सवाल हैं जिनका जवाब हर मुसलमान ढूंढ रहा है और पूछता है कि क्या उनके दादा परदादा ने कोई गलती की थी?

मुसलमानों के प्रति नफरत का महौल आज से नहीं है, बल्कि कांग्रेस के दौर से ही बनाया गया है जिसका फायदा आज बीजेपी उठा रही है। लोगों में मुसलमानों के प्रति नफरत इस स्तर तक बढ़ गई है कि लोग उनके प्रति हिंसक रवैया तक अपना रहे हैं। हिन्दू राष्ट्र की कल्पना इसीलिए की जा रही है कि भारत को चंद लोगों के हाथ में सौंप दिया जाए।

सिर्फ चुनावी मौसम में किया जाता है याद

बीते सत्तर सालों को देखा जाए तो मुसलमानों को सिर्फ छला गया है, क्योंकि ना तो उनको समान भागीदारी मिली, ना ही उनको नौकरियों में जगह दी गई, ना ही सामाजिक सम्मान दिया गया, बल्कि हमेशा उनको यह एहसास कराया गया कि वह इस देश में मेहमान हैं।

मुसलमानों को यह वचन दिया गया था कि उनको इस देश में वह सब मिलेगा जो पाकिस्तान में नहीं मिलेगा लेकिन देश की राजनीति ने उनका इस्तेमाल सिर्फ वोट के लिए किया। चुनावों के वक्त वोटों की चाह में सिर्फ उनको लुभाया जाता है और बाद में उनको ही परेशान किया जाता है।

हर बार मुसलमान ही गुनहगार क्यों?

मामला बाबरी मस्जिद का हो या गुजरात के दंगों का या फिर हाल ही में हुए दिल्ली दंगों का हर बार सिर्फ मुसलमानों की लाशों पर ही नेताओं ने अपनी सरकार बनाई। मुसलमान और दलित ये दो सिर्फ ऐसे वर्ग हैं जिन्हें इस देश में हमेशा से प्रताड़ित किया जाता रहा है।

मुसलमानों को पल-पल पर उकसाया जाता है। हमेशा उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचाया जाता रहा है लेकिन फिर भी आज तक मुसलमान धैर्य की परीक्षा देता रहा है लेकिन कब तक? मुसलमानों को अगर को दलित कहें, तो कुछ गलत नहीं होगा क्योंकि उनको आज तक वही मिला है जो हिन्दू धर्म में दलित को मिला। अपमान और समाजिक बहिष्कार।

इसका जवाब मेरे हिसाब से ढूंढ़ना हो तो अपना सर न्यायपालिका की तरफ उठाकर देखिए? क्या न्यायपालिका ने कभी भी दलितों, वंचितों के साथ न्याय किया? फिर आप यह कैसे कह सकते हैं कि देश की न्यायपालिका मुसलमान को बराबरी का अधिकार दिलवाया है।

प्रतीकात्मक फोटो

इंसाफ के लिए देश का गरीब तबका दर-दर भटकता रहता है लेकिन उनको इन्साफ नहीं मिलता इसी कारण जब  लोगों का न्यायपालिका के ऊपर से विश्वास उठता है और वह खुद हथियार उठाते हैं। आज ही मैंने देखा कि राम मंदिर के बनाने की खुशी में लोग मुसलमानों के घर के सामने आतिशबाजी करके यह सन्देश दे रहे थे कि हमने तुमको हरा दिया।

जो लोग हिंसा कर रहे हैं, उन्हें ना तो हिन्दू धर्म का ज्ञान है और ना ही किसी और धर्म का ज्ञान लेकिन वह हिंसा इसीलिए करते हैं क्योंकि उनको एक प्रकार का सामजिक संरक्षण प्राप्त है और सामजिक संरक्षण से बड़ा कोई आरक्षण नहीं होता है। देश में अगर सभी नागरिक एक-दूसरे के प्रति यही रूख अपनाने लगे, तो यह एक बंटवारे की शुरुआत होगी और इसका जल्द ही भयानक परिणाम हम सबके सामने होगा।

लोकतंत्र की वास्तविक परिभाषा को समझने की है ज़रूरत

देश में चंद प्रतिशत लोगों ने कुछ ऐसे मुद्दे रच दिए हैं जिनका ना कोई ओर है और ना ही कोई छोर। जिस देश के सरकार की बुनियाद ही झूठ पर रखी गई हो तो इसका आकलन करना और भी आसान होगा। इस देश के संविधान की रक्षा नहीं की गई तोदेश जल्द ही एक नए युग में प्रवेश करेगा जिसमें सिर्फ पाखण्ड, अंधविश्वास और सिर्फ चंद लोगों का वर्चस्व रह जाएगा।

लोकतंत्र और राजतंत्र की वास्तविक परिभाषा यदि जन-जन तक नहीं पहुंची तो यह देश जल्द ही ऐसे राष्ट्र में परिवर्तित हो जाएगा जिसकी कल्पना करना मुश्किल है और इस देश का युवा एक ऐसे अन्धकार में पहुंच जाएगा जिससे निकलना पीढ़ियों तक संभव नहीं होगा।

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