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#BangaloreRiots: दंगों से हासिल आखिर क्या होता है?

हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। समाज में हर तत्व के भी दो आयाम होते हैं नकारात्मक या सकरात्मक। यही हाल आजकल सोशल मीडिया का है। फेसबुक और व्हाट्सएप्प भी इसी दायरे में आते हैं।

हम लोग जहां इससे बहुत कुछ सीखते हैं, वहीं कई लोग इससे समाज में अराजकता की आग को हवा भी देते हैं। देखते ही देखते यह आग भयावह रूप ले लेती है। इसी पर स्वर्गीय राहत इंदौरी साहब का एक शेर याद आता है;

“लगेगी आग तो आएंगे घर कई जद में,
यहां पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है”

बंगलौर में हुए दंगे में चली गई तीन लोगों की जान

फिलहाल देश क्या पूरा विश्व महामारी से जूझ रहा है। इस बीच भारत में कुछ लोग ऐसे हैं जो समाज में अराजकता फैला रहे हैं। यह लोग खाली बैठे रहते हैं और फसाद फैलाने के लिए हमेशा से तैयार रहते हैं।

बात करते हैं फिलहाल में हुए बैंगलोर के दंगों की। मंगलवार रात को हुए दंगों में तीन लोगों की जान तक चली गई है और नुकसान अलग से हुआ। आगजनी में कई वाहनों को फूंक दिया गया जो लोग मारे गए हैं उनका इन दंगों के अधार से कोई वास्ता नहीं था। मगर वह फिर भी दंगाइयों के भेंट चढ़ गए।

जिसने भी यह अपराध किया शायद वो पुलिस के दायरे से बाहर हो मगर जो तीन जानें गईं उनका क्या अपराध था। यहाँ इंसानियत का ख़ून किया जा रहा है। पुलिस कमिश्नर ने जानकारी देते हुए बताया कि नवीन समेत 110 लोगों को आगजनी, पथराव और पुलिस पर हमले करने के आरोप पर गिरफ्तार किया गया है।

सोशल मीडिया पोस्ट से भड़क गया दंगा

आरोपी की सोशल मीडिया पोस्ट के बाद आक्रोशित भीड़ ने डी.जे.हल्ली, के.जी. हल्ली, पुलिकेशिनगर और कवल बायरसेंड्रा में दंगा और आगजनी की।

प्रतीकात्मक तस्वीर

11 अगस्त 2020 को पुलकेशिनगर अखंड श्रीनिवास मूर्ति के निर्वाचन क्षेत्र से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राज्य विधायक के भतीजे ने कथित रूप से एक फेसबुक पोस्ट किया, इस पोस्ट को इस्लाम के पैगंबर मुहम्मद के प्रति अपमानजनक बताया गया। पोस्ट इस क्षेत्र में वायरल हो गई और लोग विधायक के निवास के पास इस बात के विरोध में इकट्ठा होने लगे।

पुलिस ने विधायक के भतीजे को हिरासत में लेने के लिए डीजे होली स्टेशन से दो टीमों को भेजा। पुलिस के अनुसार, रात 8 बजे के करीब कई छोटे-छोटे समूह कावल बाइरासंद्रा में पहुंचने शुरू हो गए थे, जिसके बाद सैकड़ों लोग सोशल मीडिया संदेश पोस्ट करने के लिए ज़िम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए डीजे हल्ली पुलिस स्टेशन के आसपास पहुंचने लगे।

पुलिस पर लगे आरोपी को बचाने के आरोप

डीजे हॉल में भीड़ में एसडीपीआई के सदस्य कथित रूप से मौजूद थे, जिन्होंने शिकायत दर्ज़ करने की कोशिश की लेकिन दावा किया कि पुलिस ऐसा करने से हिचक रही थी, जिससे भीड़ उत्तेजित हो गई थी।

बढ़ते तनाव के साथ, भीड़ ने पुलिस पर विधायक के भतीजे को बचाने का आरोप लगाना शुरू कर दिया, मांग की गई कि आरोपियों को उन्हें सौंप दिया जाए। इसी बीच उपद्रवियों द्वारा पुलिस पर हमला करने के लिए एक ग्रुप आगे बढ़ा जिससे बचने के लिए पुलिस ने आंसू गैस और डंडो का सहारा लिया।

प्रतीकात्मक तस्वीर, तस्वीर साभार: सोशल मीडिया

कर्नाटक सरकार ने संज्ञान लिया कि नुकसान पहुंचाने वाले लोगों की संपत्ति ज़ब्त कर उससे भरपाई कि जाएगी। आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया है। अब पुलिस की जांच चल रही है। पुलिस इन दंगों का आधार खोज रही है।

इस मामले में कर्नाटक सरकार को वह न्यायिक व्यवस्था को ध्यान में रखकर अपना निर्णय लेना चाहिए। जिससे सभी पक्षों को न्याय मिल सके।

धर्म नहीं सिखता है हिंसा के रास्ते पर चलना

किसी भी धर्म के लिए या किसी पैगम्बर, दूत, भगवान के विरोध में आपत्तिजनक टिप्पणी करना किसी भी तरह से किसी भी धर्म में मान्य नहीं है। मैं इस लड़ाई को धर्म की लड़ाई कभी नहीं बोल सकता, क्योंकि ना तो कुरान यह कहता है कि दूसरे के धर्म को गलत बोलो और ना ही हिन्दू धर्म की पवित्र ग्रन्थ में यह लिखा है कि आप दूसरे धर्म कि निंदा करो।

यहां पर लड़ाई है सोच, परवरिश और आपराधिक छवि की। जिस ओर हमारा समाज बढ़ रहा है, ऐसे में विकास की उम्मीद करना बेईमानी होगी। आजकल के युवा देश के लिए कम अपने काल्पनिक धार्मिक मापदण्डों को हथियार बनाकर समाज कि रीढ़ को नुकसान पहुंचा रहे हैं।

देश इस समय उस नाव पर सवार है जिसमें समाज के विषैले तत्वों ने छेद कर दिया है और अगर समय रहते इसको ठीक नहीं किया गया, तो देश को बचाने वाला कोई नहीं होगा। मुगल साम्राज्य में भी भारत की स्तिथि कुछ ऐसी ही थी जिसका फायदा उठाकर ब्रिटिश सरकार ने हमारी सोने की चिड़िया के पंखों को कतर दिया था।

संविधान से चलता है देश

मैं यही मानता हूं कि अगर देश को धार्मिकता के आधार पर चलाने की कोशिश कि गई तो हमारा देश एक दिन “दंगों का देश” बन जाएगा। संविधान का निर्माण क्यों किया गया? वह सिर्फ एक कागज़ का टुकड़ा भर नहीं है, बल्कि एक सम्पूर्ण देश को सम्भालने और नियमों को बनाने का एक प्रभावशाली स्त्रोत है।

भारत में साम्प्रदायिक दंगों पर नज़र डालें, तो पाएंगे कि कितने ही बेकसूरों का खून बहा, कितनी ही माँओं की गोद उजड़ी और कितने ही बच्चे अनाथ हो गए। आज़ादी से पहले 1946 में कोलकाता दंगा जिसमें 4000 हज़ार लोगों ने जान गंवाई थी।

इसमें हम यह नहीं कह सकते कि कितने मुस्लिमों को मारा गया या कितने हिन्दू मारे गए। यहां मानवता का कत्ल हुआ। उसके बाद 1986 में कश्मीरी पंडितों को उनके ही घरों से बाहर निकाल देने वाले मुस्लिम कट्टरपंथी समुदाय ने धावा बोला था। जिसमें 1000 जानें गईं और कई कश्मीरी पंडित बेघर हो गए थे। इसका आधार भी साम्प्रदायिक हिंसा ही था।

ऐसे में, मुम्बई दंगों से पूरा देश हिल गया था। 1992 के दिसम्बर से शुरू हुआ यह दंगा 1993 की जनवरी तक चला जिसका मुख्य कारण था बाबरी विध्वंस। इसमें भी सैकड़ों जानें गईं थीं। 2002 का गोधरा कांड आज भी दिल के जख्मों को कुरेद देता है। इस दंगे में भी करीब 2000 लोगों ने अपनी जान गंवाई थी।

कारसेवकों की ट्रेन पर हमले के बाद इस दंगे ने बहुत ही विकराल रूप ले लिया था। वहीं फिलहाल के दिनों में दिल्ली में हुए दंगों ने क्रूरता की सारी हदों को पार कर दिया था।

दंगों का हासिल आखिर क्या होता है?

इन सब दंगों से क्या हासिल हुआ? मौत, बेघरी, लाचारी, कोई मानसिक तौर पर कमज़ोर हुआ और कोई विकलांग हुआ। दंगे करने वाले भी इंसान और इसको भुगतने वाले भी इंसान। इन दंगों से इंसान अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मार रहा है और समाज को कमज़ोर कर रहा है।

जो दिमाग और ताकत हम दूसरे धर्मों की निंदा करने में गुज़ार देते हैं, अगर हम यही कोशिश अपने देश की सेवा के लिए या शिक्षा के लिए लगा दें तो देश का विकास कितना ऊंचा जाएगा। हम अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते। मगर इसमें एकता होनी चाहिए। धर्म को भूल कर पहले इंसान बनें और इंसानियत को कायम रखें।

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