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Covid-19: देश पर मंडरा रहा है शिशु मृत्यु दर बढ़ने का खतरा

आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और आशा वर्कर्स कोरोना वायरस के रोकथाम से जुड़े कामों में जुटी हुई हैं। लिहाजा, गरीब बच्चों का टीकाकरण और पोषण का बुनियादी काम प्रभावित हो रहा है। लॉकडाउन की वजह से आंगनवाड़ी केंद्र कुछ समय से बंद हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि लंबे समय तक यही स्थिति रही, तो आगे चलकर छोटे बच्चों और गर्भवती महिलाओं की सेहत को लेकर नतीजे़ खराब मिल सकते हैं। देश की शिशु मृत्यु दर भी प्रभावित हो सकती है।

टीकाकरण का अभियान हुआ है प्रभावित

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक, लॉकडाउन के दौरान आंगनवाड़ी कार्यकर्ता घर-घर जाकर आईसीडीएस लाभार्थियों के घर पर सूखा राशन दाल, गेहूं आदि पहुंचाने की कोशिश कर रही हैं लेकिन टीकाकरण अभियान प्रमुख प्राइमरी स्वास्थ्य केंद्र तक सिमट गया है।

स्वास्थ्य के मुद्दों पर राजस्थान के सभी ज़िलों में काम कर रहे गैर-सरकारी संगठन एसआरकेपीएस की प्रोग्राम अधिकारी ज्योति चौधरी ने बताया कि यहां आंगनवाड़ी केंद्रों में टीकाकरण महीने के हर चौथे सोमवार और गुरुवार को होता था।

काम करती हुई आशा वर्कर्स, तस्वीर साभार: YKA यूज़र

इसके अलावा कार्यकर्ता भी घर-घर जाती थी लेकिन अब प्रमुख स्वास्थ्य केंद्रों में टीकाकरण हो रहा है। वह मानती हैं कि बच्चों को साथ लेकर दूर तक आना ग्रामीणों के लिए मुश्किल है।

दिल्ली, नोएडा और फरीबाद में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के साथ काम कर रहे संगठन मातृ सुधा के प्रमुख अरविंद सिंह ने कहा कि आंगनवाड़ी केंद्रों का रूटीन काम ठप हो गया है। सूखे राशन की आपूर्ति संतोषजनक नहीं है। समय पर टीकाकरण नहीं होने से आगे चलकर बच्चों की सेहत पर खराब असर हो सकता है।

प्रतीकात्मक तस्वीर

वह बताते हैं कि सूखे राशन के नाम पर कई जगह पंजीरी और मूंगफली भी बांटी जा रही हैं। इसे लेकर सरकार से शिकायत भी की गई है।
उधर देश में शिशु मृत्यु दर के ताज़ा आंकड़े भी इतने अच्छे नहीं है।

क्या कहते हैं शिशु मृत्यु दर के आंकड़े?

महारजिस्ट्रार एवं जनगणना आयुक्त की ओर से मई, 2020 में जारी सैम्पल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (एसआरएस) बुलेटिन के मुताबिक, साल 2018 की शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) प्रति एक हज़ार जन्मे बच्चों में 32 शिशुओं की मृत्यु है।

भले ही 10 सालों में शिशु मृत्यु दर में काफी कमी आई है लेकिन इसके बावजूद राष्ट्रीय स्तर पर हर 31 शिशुओं में से एक शिशु की जीवन के पहले पांच साल में ही मौत जाती है।

गाँव में हर 28 शिशुओं में एक और शहरों में हर 43 शिशुओं में एक शिशु की मृत्य जन्म लेने से एक साल के अंदर हो जाती है। वहीं, ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक मध्य प्रदेश में आईएमआर का यह आंकड़ा सबसे ज़्यादा 48, राजस्थान में 37 और छत्तीसगढ़ में 41 है।

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