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अंडमान निकोबार के आदिवासी लोगों के बीच पहुंचा कोरोना वायरस

अंडमान निकोबार भारत का एक महत्वपूर्ण द्वीपसमूह है। यहां कई प्रकार के छोटे-छोटे द्वीपसमूह हैं। इन द्वीपसमूहों में रहने वाली जनजाति आदिवासी समुदाय से संबंधित हैं। यहां ओंगे, जरावा, जांगिल, और सेंटिनेल्स भी शामिल है। इन सभी अंडमानी आदिवासियों के समूह को ‘ग्रेट अंडमनीज़’ बोला जाता है। यह लोग भी अंडमान के लोगों की तरह हैं, मगर इनकी संस्कृति और भौगोलिक स्थिति बिल्कुल अलग है।

अंडमान निकोबार में भी पहुंचा कोरोना वायरस

जब पूरा विश्व कोरोना की मार झेल रहा है, तो हमको यही लगता था। कहीं दूर आदिवासी, या कहीं टापू पर यह संक्रमण नहीं फैलेगा। यहां पर रहने वाले आदिवासियों की संख्या केवल 59 है। पहले यह 2,000 से लेकर 6,600 तक थे मगर मदिरापान, बीमारी, शिकार की कमी, कुपोषण के कारण यह लोग लुप्त होते जा रहे हैं।

इनमें से लगभग 10 लोगों में कोरोना का संक्रमण देखने को मिला। यह जनजाति दुर्लभ है। यहां यह बात संतोषजनक रही कि 10 में से 6 लोगों को अब संक्रमण से छुट्टी मिल चुकी है। उनको होम आइसोलेशन में भेज दिया गया है। बाकी 4 लोगों की हालत स्थिर है।

प्रतीकात्मक तस्वीर

अब यहां यह बात ध्यान देने वाली है कि इन जनजातियों में से कुछ आदिवासियों के ग्रुप ने खुद को बाहरी समाज से दूर किया हुआ है। जरावा और सेंटिनेल्स जनजातीय समूह जो बाहरी लोगों से इन्होंने अपना हर तरह का संबंध बाहरी दुनिया से काटा हुआ है।

विलुप्त होती जातियों के बीच कोरोना संक्रमण होना है चिंताजनक बात

इन हालातों में यह बहुत ही भयावह रूप ले सकता है। यदि इनमें से कोई संक्रमित होता है तो ऐसे में उनको बचाना नामुमकिन हो जाएगा। वह लोग बाहरी इंसान को देखते ही खत्म कर देते हैं। वर्ष 2018 में एक अमरीकी पत्रकार की हत्या कर दी थी।

यहां तक कि इन जनजातियों के लोगों ने हैलीकॉप्टर पर भी अपने तीरों का निशाना बनाया। ऐसे में अगर इस दुर्लभ जाति में किसी को कोरोना हो जाए, तो वहां की स्तिथि बेकाबू हो जाएगी और यह लुप्त होती प्रजाति बिल्कुल खत्म हो जाएगी।

पूरी दुनिया इस समय तरह तरह की चिकित्सकीय प्रक्रिया से गुज़र रही है। वहीं, ऐसे में कुछ ऐसी दुर्लभ जनजातियां भी होंगी जो मनुष्य तो हैं, मगर उनके पास आम मनुष्यों की तरह सुविधाएं नहीं हैं। आदिवासी कल्याण समिति को कुछ तो ठोस कदम उठाने होंगे जो बहुत ज़रूरी है।

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