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अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस: बिहार के युवा हर क्षेत्र में छोड़ रहे हैं अपनी छाप

“उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए” यह संदेश देने वाले स्वामी विवेकानंद जी का जन्म दिवस 12 जनवरी है। यह खास दिन पूरे देश में राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। साल से दशक बदला लेकिन युवाओं का योगदान आज भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना पहले था। शहर में कुछ ऐसे युवा हैं जिन्होंने अपने दम पर अपनी अलग पहचान बनायी। 

1999 से संयुक्त राष्ट्र ने प्रति वर्ष, 12 अगस्त को अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में घोषित किया है। अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस युवाओं की आवाज़ों, कामों, पहलों को मनाने और उनके सार्थक, सार्वभौमिक तथा समान जुड़ाव का अवसर देता है।

अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस 2020, “ग्लोबल एंगेजमेंट फॉर ग्लोबल एक्शन” का विषय उन तरीकों को उजागर करना चाहता है जिनमें स्थानीय, राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर युवाओं की व्यस्तता राष्ट्रीय और बहुपक्षीय संस्थानों और प्रक्रियाओं को आकर्षित एवं समृद्ध कर रही है। इसके साथ ही औपचारिक संस्थागत राजनीति में उनके प्रतिनिधित्व और जुड़ाव को बढ़ाया जा सकता है।

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, औपचारिक राजनीतिक तंत्र में युवाओं की भागीदारी को सक्षम करने से लोकतांत्रिक घाटे को कम करके बेहतर और अधिक स्थायी नीतियों में योगदान करके राजनीतिक प्रक्रियाओं की निष्पक्षता में वृद्धि होती है। यह प्रतीकात्मक महत्व भी है जो सार्वजनिक संस्थानों, विशेष रूप से युवाओं के बीच विश्वास को बहाल करने में और अधिक योगदान दे सकता है।

इसके अलावा, अधिकांश चुनौतियों का सामना मानवता को करना पड़ रहा है, जैसे कि कोविड-19 का प्रकोप और जलवायु परिवर्तन के लिए ठोस वैश्विक कार्रवाई और सार्थक जुड़ाव में युवा लोगों की भागीदारी को प्रभावी ढंग से संबोधित करने की आवश्यकता है।

बिहार की बात करें, तो बहुत कम ऐसे लोग हैं जिन्होंने यहीं रहकर बिहार की एक अलग छवि बनाई। आज इन युवाओं में कोई बिहार के लिए लोगों के लिए फैली रूढिबद्ध धारणा को तोड़ने पर कामकर रहा है, तो कोई गाँव में महिलाओं की सशक्तीकरण पर। यही नहीं कुछ तो स्टार्टअप को लेकर बेहतर माहौल तैयार कर रहे हैं। आज बिहार के कुछ ऐसे युवा भी हैं जिनका विकिपीडिया पर आपको ज़िक्र मिल जाएगा।

सोशल एंटरप्रिन्योरशिप और शिक्षा को बढ़ावा दे रहे रंजन मिस्री

पटना के रहने वाले 24 वर्षीय रंजन मिस्त्री भले ही कॉलेज ड्राप आउट हैं लेकिन अपने विज़न की वजह से शिक्षा के क्षेत्र में और सोशल एंटरप्रिन्योरशिप में अपना विशेष योगदान दे रहे हैं।

24 वर्षीय रंजन मिस्त्री, तस्वीर साभार: YKA यूज़र

मूल रूप से गया के रहने वाले रंजन बताते हैं कि उनका इलाका नक्सल बेल्ट में था। उस वक्त उन्होंने गाँव में बच्चों को पढ़ाई के लिए टीचर्स मुहैया करवाया। वह बिहार के पहले युवा थे जिन्हें फोर्ब्स एशिया अंडर 30 में सेमिफाइनेलिस्ट के तौर पर नोमिनेट किया गया था। 

उन्होंने एनएक्सटी 100 प्रोग्राम लांच किया जिसमें वे 100 एंटरप्रिन्योर को खुद ही ट्रेनिंग देंगे वो भी फ्री ऑफ कॉस्ट। उन्होंने विश्वविद्यालय स्तर पर इन्क्यूबेशन सेंटर और उद्यमिता सेल खोलने के प्रस्ताव को डिज़ाइन और प्रस्तावित किया। इसे पटना विश्वविद्यालय में पटना यूनिवर्सिटी इन्क्यूबेशन हब के नाम से खोला गया है।

अभी बिहार में रोबोटिक्स रिसर्च सेंटर खोलने के लिए प्रस्ताव दिया है। रंजन की प्रोफाइल आपको आसानी से विकिपीडिया पर मिल जाएगी। प्रोफाइल में आपको इनके काम से जुड़े कई लिंक भी मिलेंगे जिससे इनके काम करने के तरीके और विज़न का पता चलता है। शायद इसलिए इन्हें बिहार का थिंक टैंक भी कहा जाता है।

ट्रांसजेंडर कम्युनिटी के बीच बांटा मधुबनी मास्क

दिनकर गोलंबर की रहने वाली सिनी सोशिया आर्ट एंड क्राफ्ट से जुड़ी हुई हैं। वह मधुबनी पेंटिंग और मंडाला आर्ट से जुड़े कई सारे ड्रेसेज़ तैयार करती हैं। लॉकडाउन के दौरान इन्होंने कई लोगों के बीच मधुबनी पेंटिंग, कोटेशन और कार्टून कैरेक्टर से जुड़ा मास्क तैयार किया है।

सिन्नी बताती हैं कि कोविड के इस दौर में जितना हो सके लोगों की मदद करनी चाहिए। ऐसे में, उन्होंने कुछ मास्क लोगों के बीच बांटा। वहीं कुछ मास्क का डिज़ाइन ऑर्डर पर तैयार कर अलग-अलग जगहों और शहरों में भी भेजा है। 

लोगों के बीच बांटा गया मास्क, तस्वीर साभार: YKA यूज़र

मई में उन्होंने 300 मास्क ट्रांसजेंडर कम्युनिटी के लोगों के बीच बांटा है। वहीं झंझारपुर के मुखिया की ओर से मिला हज़ार मास्क का आॉर्डर भी पूरा किया। पटना के केक शॉप मॉज़िनिज़ के लिए भी मास्क तैयार किया, जबकि रेलवे की ओर से भी उन्हें मधुबनी मास्क का ऑर्डर मिला।

इसके अलावा उन्हें एफबी, इंस्टाग्राम और वाट्सएप के ज़रिए दिल्ली और भोपाल से भी मुधुबना मास्क को लेकर ऑर्डर मिल रहे हैं। जिसे उनकी ओर से समय पर डिलिवर भी किया गया है। वह अपने घर के आस-पास रहने वाले कई लोगों और बच्चों को भी मास्क बांट चुकी हैं।

मेन्सट्रुअल हाइजिन के प्रति जागरूक करने के साथ बांट रही सैनेटरी नैपकिन

मार्च के महीने से ही चल रहा कोविड-19 का दौर अब तक समाप्त नहीं हुआ है। इस दौरान लोगों ने मदद के लिए हाथ भी बढ़ाए लेकिन महिलाओं के माहवारी के दौरान होने वाली दिक्कतों के बारे में बहुत कम लोगों का ध्यान आकर्षित हुआ।

आशियाना की रहने वाली नेहा सिंह ने पिछले तीन महीनों में ना सिर्फ मेन्सट्रुअल हाइज़ीन के प्रति गाँव-गाँव जाकर जागरूकता फैलाई, बल्कि महिलाओं को सैनेटरी नैपकिन्स भी मुहैय्या करवाया। 

सीएनएलयू से पढ़ाई कर चुकी नेहा ने महामारी के दौरान विभिन्न शहरों और गाँव में रहने वाली महिलओं के लिए “ब्लीडिंग ब्लूज़” नाम के कैंपेन की शुरुआत की है।

महामारी के महिलाओं को उपलब्ध कराया पैड, तस्वीर साभार: YKA यूज़र

इस कैंपेन के ज़रिए वह गाँवों से जुड़ी महिलाओं की लिस्ट तैयार करती हैं। फिर इन महिलाओं को सैनेटरी नैपकिन दी जाती है। अब तक इन्होंने नवादा, पटना, वैशाली, दिल्ली, विशाखापत्तनम जैसी जगहों पर 950 से ज़्यादा सैनेटरी नैपकिन बांट चुकी हैं।

नेहा बताती हैं कि उनका मकसद महिलाओं को मेन्ट्रुअल हाइज़ीन के प्रति सजग करने के साथ कपड़ा और अन्य चीज़ों के बजाय पैड के इस्तेमाल को बढ़ावा देना है। वे बताती हैं कि उनका कैंपेन सिर्फ महामारी तक सीमित रहने वाला नहीं है, बल्कि वह इन महिलाओं को पूरे साल तक सैनेटरी नैपकिन देने का संकल्प कर चुकी हैं। 

शुरुआत में कैंपेन को लेकर परेशानी आई उस वक्त उन्होंने गाँव से जुड़े लोगों की मदद ली। धीरे-धीरे महिलाओं को एकत्रित कर अपने कैंपेन से जोड़ा। जिन गाँव के महिलाओं की मदद की गई उनकी लिस्ट तैयार की जाती है। ताकि इन महिलाओं को हर महीने सैनेटरी नैपकिन दी जा सके।

कैंपेन तो शुरु हो गया लेकिन सबसे बड़ी समस्या फंड को लेकर आ रही थी। ऐसे में, उन्होंने फंड एकत्रित करने के लिए पीएडी (पैड एक्सेसीबिलिटी ड्राइव) नाम के इंस्टाग्राम पेज की शुरुआत की। इस पेज पर लोग अपनी इच्छा अनुसार डोनेशन कर सकते हैं। इस पेज पर कई लोग मदद कर रहे हैं और यह मुहिम जारी है।

भोजपुरी गाने की छवि बदलने की ओर प्रभाकर की जारी मुहीम

सहीयारा गाँव भोजपुर आरा के रहने वाले प्रभाकर पांडे 2006 से भोजपुरी गानों के प्रति लोगों का नज़रिया बदलने पर काम कर रहे हैं। वह बताते हैं कि भोजपुरी और अश्लीलता दोनों एक-दूसरे का पर्याय बन चुके हैं। इस छवि को तोड़ना बेहद ज़रूरी है। उन्होंने टीवी के विभिन्न मंचों पर भोजपुरी गायकी को बखूबी पेश किया है। 

भोजपुर आरा के रहने वाले प्रभाकर पांडे, तस्वीर साभार: YKA यूज़र

इन्होंने ज़ीटीवी बांग्ला का सारेगमापा, बिग गंगा, महुआ टीवी,बेजोड़ चैनल आदि पर भोजपुरी गानों को प्रमोट कर उसकी छवि बदलने की कोशिश की है। 

साल 2010 में उनकी मुलाकात नीतिन चंद्रा से हुई जिसके बाद उन्होंने फिल्म देशवा में भोजपुरी गाने को गाया। यही नहीं आज की जेनेरेशन को भोजपुरी से जोड़े रखने के लिए उन्होंने कंटेंपररी भोजपुरी गाने की शुरुआत की है। उन्होंने भोजपुरी फिल्म पपीहरा में भी गाया है। भिखारी ठाकुर के विदेशिया के गीतों की सीरीज़ बना रहे हैं। जिसका पहला गीत हाल ही में रिलीज़ हुआ है। 

उनका मकसद लोगों के दिमाग में भोजपुरी गीतों के प्रति अश्लीलता को सादगी में बदलना है, क्योंकि यह लोकभाषा है। सन् 1911 में रघुवीर नारायण द्वारा लिखित सुंदर सुभूमि गाने को अभी उनके के साथ दस गायकों ने गाया है जो दस अगस्त को बेजोड़ चैनल पर रिलीज़ किया गया है।

रूढिबद्ध धारणा को तोड़ने पर काम कर रहे हैं बश्शार

पटना बीट्स के फाउंडर बश्शार हबीबुल्लाह बताते हैं,

बिहार को लेकर बिहार के बाहर लोगों में कई तरह की भ्रांतियां हैं। हम सभी एक ही देश के रहने वाले हैं, तो बिहारी लोगों को उपेक्षा के नज़र से क्यों देखा जाता है? बाहर जाने पर बिहारी होने को छिपाना पड़ता है। ऐसे में, मैंने पटना बीट्स नाम का ब्लॉग बनाया जिसमें मैंने और मेरी टीम ने बिहार के उन युवाओं की कहानियों को दर्शाया जिसने बिहार के प्रति लोगों का नज़रिया बदला है। 

पटना बीट्स के फाउंडर बश्शार हबीबुल्लाह, तस्वीर साभार: YKA यूज़र

बश्शार कहते हैं कि इसके साथ ही मैंने बिहार की संस्कृति और लाइफस्टाइल से जुड़े मर्चेंडाइज़ प्रॉडक्ट भी लांच किया। जिससे लोगों को बिहारी होने की आइडेंटिटी छिपाने के बजाय गर्व से इसे बोलने की मुहीम छेड़ी जिसे काफी सराहा गया।

सिर्फ बिहार में ही नहीं बल्कि दिल्ली, बैंगलुरू, मुंबई आदि शहरों में रह रहे बिहार के लोगों ने इसका बखूबी इस्तेमाल किया। अब यह एक तरह से ट्रेंड सेंटर हो चुका है और हम बिहार की छवि बदलने में कुछ हद तक कामयाब भी रहे हैं। विकिपीडिया पर इनके काम से जुड़ी जानकारी मौजूद हैं।

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