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“काश हम बिहारी शब्द पर ना इतराकर बिहार के विकास में अपना योगदान देते”

बिहार मज़दूरों का राज्य है लेकिन यह अलग बात है कि बस मज़दूरी करने का तरीका बदल गया है और मज़दूरों का स्टैंडर्ड भी। कुछ लोग दिहाड़ी मज़दूरी करते हैं तो कुछ लोग बड़ी-बड़ी कंपनियों में बड़े पदों पर काम करते हैं लेकिन वह एक तरह की मज़दूरी ही तो है। फिर भी वह बिहार के विकास का हिस्सा नहीं बन पाते, क्योंकि बिहार की जगह कहीं और काम करते हैं।

बिहार के सौ साल के इतिहास में बस इतना ही बदलाव आया है कि आखिर भारत के सबसे पुराने विश्वविद्यालयों का घर बिहार, भारत के सबसे अनपढ़ राज्य में से एक कैसे बना?

भारत में अपनी तरह के सबसे अच्छे मौर्य साम्राज्य के जन्मस्थान की राजनीतिक स्थिति कैसे खराब हो गई? गंगा जैसी उपजाऊ ज़मीन होने के बावजूद बिहार कृषि क्षेत्र में इतना खराब प्रदर्शन क्यों कर रहा है? दुनिया को रास्ता दिखाने वाला आज खुद दुनिया में सबसे पीछे कैसे चला गया?

जब हमें कोई कुछ कहता है तो हम बिहारी का अभिमान लेकर चिल्लाने लगते हैं। आप सच-सच दिल से बताइएगा कि बिहार के पास है क्या? सिवाय यह कहने के कि वह जो इंसान है ना वह बिहार का है, उसकी पैदाइश बिहार की है।

हम सिर्फ बिहारी शब्द का ढिंडोरा पीटते रह गए

मानता हू्ं कि 1953-1991 की फ्रंट इक्वलाइज़ेशन नीति ने बिहार की खनिज संपदा के लाभ को हटा दिया। कोयला, लोहा, इस्पात और सीमेंट जैसे खनिजों की मालभाड़ा दरों को पूरे भारत में समान बनाया गया था। इसलिए किसी भी कंपनी को बिहार में स्थित होने की ज़रूरत नहीं थी, क्योंकि उसे भूमि का स्थान दिया गया था।

सरकार ने बिहार को औद्योगिकीकरण की अनुमति देने के बजाय तटीय राज्यों में कच्चे माल के परिवहन के लिए निवेश किया। बिहार के विभाजन के बाद सभी खनन क्षेत्र झारखंड में चले गए। जिससे बिहार की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ा लेकिन एक जो चीज़ हमारे पास थी, इंसानी दिमाग उन्हें भी जाने दिया गया। बाद में सिर्फ बिहारी शब्द का ढिंडोरा पीटते रह गए।

मैं हमेशा एक बहुत छोटी बात कहता हूं कि अब चिल्लाना बंद करो। बिहारी शब्द के झूठे अभिमान से बाहर निकल जाओ, खंडहरों की बातें करना छोड़ दो। नालंदा की बात करना छोड़ दो और आज पर ध्यान देना शुरू करो तभी आने वाला कल भी शुरक्षित होगा। वर्ना पूरी ज़िन्दगी बस हम सब बिहारी शब्द का ढिंडोरा पीटते रह जाएंगे और दुनिया बहुत आगे निकल जाएगी, रही बात हमारी तो हम बहुत पीछे रह जाएंगे।

बिहार दुनिया की सबसे उलझी हुई पहेली

आज बिहार दुनिया की सबसे उलझी हुई पहेली है, जहां नेता और अफसर दोनों ही विकास का बच्चा लेकर आते हैं लेकिन वह बच्चा जवान होने के बजाय बुढ़ा होकर मर जाता है। डेवलपमेंट काम करने से आता है और यह काम एकदम निष्पक्ष तरीके से करना चाहिए।

बिहार का विकास बाहर पढ़ने से नहीं होगा, दूसरे राज्य या मुल्क की फैक्ट्री में काम करने से नहीं होगा, बॉलीवुड की फिल्मों में काम करने से नहीं होगा, करोडों का विदेश में पैकेज उठाने से भी नहीं होगा! बिहार के विकास के लिए आपको पहले नीव रखनी होगी, किसी को अपना कैरियर, उम्र और पैसा सब दांव पर लगाना पड़ेगा।

आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत के दस में 6 सफल लोग चाहे वे स्टार्टअप में हों, मीडिया में हों, व्यापार में हों, इंजीनियर हों और साइंटिस्ट ही क्यों ना हो मगर बिहार के ही हैं। बिहार के होने के बावजूद वे इस राज्य के लिए कुछ भी नहीं हैं।

बिहार के विकास में उनका सहयोग कुछ भी नहीं है। इसलिए बिहार के होने और बिहार में होने का फर्क समझिए। बिहार में निवेश के तौर पर समय, उम्र, पैसा और विश्वास लगाइए। तभी बिहार की उन्नती हो सकती है।

हमें इस बात पर खुश नहीं होना है कि वह बिहार से है, बल्कि खुश होने का तरीका बदलिए कि वह बिहार में है। जो भी लोग बिहार में कुछ भी काम कर रहे हैं,  उन्हें सहयोग कीजिए और उनका मनोबल बढ़ाइए। आज से आप उनके बारे में बात करना शुरू कीजिए जो बिहार में हैं ना कि उनके बारे में जो बिहार से हैं।

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